Monday 3 February 2014

गीता में परमात्मा कहता है



गीता में परमात्मा कहता है कि कभी भी ऐसा नहीं था कि मैं नहीं था और ही यह मनुष्यों के सरदार। साफ है कि मनु या देवता की बात हो रही है जो progenitors of mankind कहलाते हैं और गीता ने उन्हें chiefs of men कहा है। दूसरी ओर मुसलमान मानते हैं कि अहलेबैत तमाम इंसानों के सरदार हैं जिनका नूर आदम से भी हजारों साल पहले पैदा किया गया था ताकि वह अपने रब की इबादत करें और सब को उसकी इबादत की ओर ले जाएं।

गीता का छंद II:12-15  कहता हैः

“Further, never was I non-existent, nor you nor these chiefs of men; neither shall we, all of us, ever cease becoming hereafter.


कुरान ने गीता के इन सरदारों को बड़े लोग कहा है। कुरान से साफ है कि यह उस समय भी थे जब आदम को पैदा किया गया। पैगम्बर मौहम्मद ने कहा कि मेरा नूर उस समय भी था जब आदम पानी और मिट्टी से बनाए जा रहे थे।

उपनिषद और वेद भी देवताओं के लिए वही उपाधियां प्रयोग में लाए हैं जो इस्लामी हदीसें बताती हैं। आईए सुलतानुल उलमा मौलवी सैयद गुलाम हुसैन रज़ा आका मुजतहिद की किताब नहजुल असरार का एक खुतबा पेश करते हैं। नहजुल असरार पाकिस्तान से छपी किताब है जिसमें हजरत अली के वह खुतबात, इरशादात, एहतजाजात और कलमात हैं जो नहजुल बलागा में नहीं हैं और उलमाए आलाम के मुसदेक़ा मुसतनद कुतुब से जमा किए गए हैं। उर्दू गाढ़ी ज़रूर है पर यदि आप पढ़ेंगे तो आप को पता चलेगा कि यही सब कुद उपनिषद में भी कहा गया है।

इस किताब का पहला बाब ‘‘खिलकते नूरे मौहम्म्दी हिजाबात’’ के नाम से है जिसमें मौहम्मद के नूर का आदम से कई हजार साल पहले पैदा किया जाना और उस नूर का पैदा होने पर खुदा की इबादत में लग जाना और अर्श और कुर्सी का उससे रिश्ता और आदम में उस नूर का दाखिल होना साबित है। पढि़एः

हजरत जाफरे सादिक से रिवायत है कि हजरत अली ने फरमायाः
तहकीक के खुदाए बुजुर्ग--बरतर ने नूरे मौहम्मदी को आसमानों, जमीन, अर्श कुर्सी, लौह--कलम और जन्नत और जहन्नुम की खिलकत से पहले और आदम नूह, इब्राहीम इसहाक याकूब की खिलकत से पहले हस्बे इरशदे बारी कि हमने उनको सिराते मुस्तकीम की तरह हिदायत की नीज़ तमाम अंबिया की खिलक़त से चार लाख चैबीस हजार साल कब्ल पैदा किया और उस नूर के साथ खुदा वंदे तआला ने बारह हिजाब यानी हिजाबे कुदरत, हिजाब अजमत, हिजाबे मन्नत, हिजाबे रहमत, हिजाबे सआदत, हिजाबे करामत, हिजाबे मंजि़लत, हिजाबे हिदायत, हिजाबे नुबूवत, हिजाबे रफअत, हिजाबे हैबत और हिजाबे शफाअत खल्क फरमाए। फिर नूरे मौहम्मद को हिजाबे कुदरत में बारह हजार साल कयाम अता फरमाया, जहां वो सुब्हानल्लाहे रब्बियल आला कहता रहा और हिजाबे अज़मत में ग्यारह हजार साल रहा जहां वो सुब्हाना आलिमुस सरा कहता रहा और हिजाबे मन्नत में दस हजार साल रहा जहां वो सुब्हानुहू मन होवा कायम ला हू कहता रहा। और हिजाबे रहमत में नौ हजार साल सुब्हानुहुर रफी अल आला कहता रहा और हिजाबे सआदत में आठ हजार साल सुब्हानुहू मन हो वल अत्मुल यस बहू कहता रहा। और हिजाबे करामत में सात हजार साल रहा। जहां वो सुब्हानुहू मन हो गनीयुल यफतक़र कहता रहा और हिजाबे मंजि़लत में छह हजार साल सुब्हानुहू रब्बियल आलल करीम कहता रहा और हिजाबे हिदायत में पांच हजार साल रहा जहां वो सुब्हाना जिल अर्शुल अजीम कहता रहा। और हिजाबे नुबूवत में चार हजार साल सुब्हानुहू रब्बिल इज्जते अमा यसेफून और हिजाबे रफअत में तीन हजार साल सुब्हानुहू जिल मुल्के वल मलकूत कहता रह और हिजाबे हैबत में दो हजार साल सुब्हानल्लाहे बेहम्दे कहता रहा और हिजाबे शफाअत में एक हजार साल रहा जहां वो सुब्हाना रब्बियल अजीमे बेहम्दे कहता रहा। फिर खुदाए अज़्ज़ोजल ने उनके नाम को लौह पर जाहिर किया जहां ये चार हजार साल दरखशां रहा। फिर उस नूर को अर्श पर जाहिर किया और ये सात अर्श पर सात हजार साल साबित रहा यहां तक कि खुदा ने उसको सुल्बे आदम में करार दिया।’’

बहरूल मआरिफ सफहा 273 से ये खुतबा लिया गया है। इससे जाहिर होता है कि नूर का काम हर वक्त इबादत करना है। एक उपनिषद कहता है कि उसको जैसे ही पैदा किया गया उसने इबादत शुरू कर दी और उसने चाहा कि इबादत करने वाले ज्यादा हों तो और देवता पैदा हुए और आखिर में आदम को पैदा किया गया।

यहां पर सालों का जो वर्णन है उसमें यह कहीं भी नहीं लिखा कि एक साल कितना लंबा था क्यूंकि यह उस समय का वर्णन है जब आसमान जमीन थे, सूरज चांद थे। इससे साफ है कि ये हमारे सालों जैसे सूरज के चक्कर या चंद्रमा के चक्कर की बुनियाद पर बनाया गया साल नही है। गीता और पुराण भी कहते हैं कि इस ईश्वर का एक साल कितना लंबा होता है और एक दिन को अल्लाह के द्वारा बनाई गई एक के बाद एक 1000 खिलकतों के बराबर बताया है और बताया है कि यह इस दिन की 994वीं खिलकत है। अर्थात इससे पहले 993 आदम इसी दिन में चुके हैं। हजरत अली का खुतबा बताता है कि मौहम्मद का नूर इस सब से बहुत पहले बनाया गया था। हजरत अली का खुतबा बताता है कि मौहम्मद का नूर इस सब से बहुत पहले बनाया गया था। इस पहले नूर का अर्श और कुर्सी से रिश्ता, नूरे मौहम्मद का आदम से रिश्ता और यह सब कुछ पहले से ही लिख रहा है। उपनिषद, गीता औरे वेद भी यही कछ कर रहे हैं।

आप पूछेंगे अली को यह सब कुछ कैसे पता। अली भी उसी नूर का हिस्सा हैं जो सबसे पहले खल्क़ हुआ था। यह नूर इबादत करने और इबादत की ओर हमें रागिब करने के काम में लगा है।

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