Sunday 29 September 2013

मेरे मित्रों, तुम्हें पता होना चाहिए


मेरे मित्रों, तुम्हें पता होना चाहिए कि ईश्वर की इस सृष्टि में नूर और जुलमत - दो ताकतें - हैं। नूर अर्थात देवताओं के रास्ते पर चलकर मोक्ष है, निजात है। जुलमत अर्थात शैतानी ताकतें कभी भी नहीं चाहती कि मानव जाति ईश्वरीय मार्ग पर आए जब्कि नूर निरंतर कोशिश में है कि मानवता को राह दिखाए ताकि वह ईश्वरीय मार्ग पर चलकर पृथ्वीवास से निकल सके। जब जब परमात्मा की ओर से अवतार आए, जुलमत ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि लोग अवतारों के जान के दुश्मन हो गये। उनके रास्ते में बाधाएं आईं। उनकी शिक्षा को मानने वालों को सताया गया, मारा गया यहां तक की उनकी शिक्षा धूमिल हो गई। मैं बार बार यह साबित कर रहा हूं कि कुछ शिक्षा ऐसी है जिसको हर जमाने में मिटाने के लिए जुलमत लगी रही। यहां तक कि उपनिषद और वेद भी मान रहे हैं कि कुछ ज्ञान ऐसा था जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही थी। एक जगह तो यह तक क्हा गया कि यह ज्ञान इंद्र के जीवन से संबंधित है। दरअस्ल यह ज्ञान उन देवताओं से संबंधित है जिन में इंद्र मुख्य देवता हैं। इन देवताओं के रास्ते पर मोक्ष है, हमारा उद्धार है। इसके लिए आवश्यक है कि हम इनको पहचानें, ईश्वर की सृष्टि में इनके रोल को जानें और इनकी असली शिक्षा का ज्ञान हो।

उपनिषद में अनेक जगह दर्ज है कि यह ज्ञान कितना महत्व रखता है। परन्तु यह भी जगह जगह लिखा है कि इस ज्ञान को छिपाने की कोशिश की जाएगी। उस समय के हमारे आदरणीय पूर्वज इस बात को भली भांति जानते थे। वेद बार बार बता रहे थे कि यह देवता ही हमारे और परमात्मा के दरमियान की रस्सी हैं। इनके अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं परमात्मा तक पहुंचने का। हमारे पूर्वज यह भी जानते थे कि वेद की शिक्षा में खोट पैदा करने की कोशिश की जाएगी। यही कारण है कि उन्होंने वेद के मंत्रों में पूजा पाठ से जोड़ दिया। कोई मंत्र विवाह के उपलक्ष्य पर पढ़ा जाने लगा तो कोई मरने के मौके पर। इसका लाभ यह हुआ कि पंडितों को मंत्र ऐसा रट गए कि खराब से खराब समय से गुजरने के बावजूद वह बचे रह गए। आज भले ही देवताओं के बारे में जानकारी समाप्त हो गई है, आज भले ही वेदों की पथभ्रष्ट करने वाली कमेंटरी सामने हैं परन्तु रटे हुए मंत्र किताब की शक्ल ले चुके हैं जिनसे किसी भी समय अकल का प्रयोग कर हम सही मार्ग को समझ सकते हैं। जब हमारे पूवर्जों ने देखा कि उन देवताओं की जानकारी मिटती जा रही है जिनको आने वाले समय में हमारा मार्गदर्शन करने आना है और जो हमारे और परमात्मा के दरमियान कड़ी हैं तो उन्होंने कपड़ों के भीतर रस्सी रूपी जनेउ पहनने की प्रथा का आविश्कार किया ताकि जागते हुए दिमाग आने वाले समय में सोचें कि आखिर हमारे पूवर्जों ने जनेउ पहनने की प्रथा क्यों बनाई। मैं यह भी लिख चुका हूं कि गंगा से पानी भर कर लाने की प्रथा भी इसी कड़ी का हिस्सा थी। 

 हर जमाने में और विश्व के हर हिस्से में जब जब परमात्मा ने इन देवताओं को पहचनवाना चाहा, शैतान ने उस शिक्षा में खोट पैदा कर दी। आज मैं फिर तुम्हें उन देवताओं की वास्तविकता से अवगत करा रहा हूं। इस धरती का अंत करीब है और यदि तुम ने सत्य नहीं जाना तो अंधकारमय जीवन के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं बचेगा। इसलिए तुम से कहता हूं, यदि यहां पर दी जा रही जानकारी को सत्य मानते हो तो इसे अपने कम्पयूटर में कापी कर लो। ऐसा हो यह जानकारी नष्ट हो जाए और तुम फिर अंधकार में चले जाओ। आज इसी समय मेरी हर पोस्ट की कापी अपने पास सुरक्षित करो।

 अगले एक दो दिन में मैं तुम्हारे सामने कुछ अन्य तथ्य पेश करूंगा जो तुम्हें इस ज्ञान को समझने में और अधिक मदद देगा। प्रतीक्षा करो!