आम आमदी पार्टी के कुमार विश्वास ने एक भाषण में पैगम्बर मौहम्मद के नाती और अली और फातिमा के दूसरे बेटे हुसैन की शहादत की याद मना रहे लोगों पर टिप्पणी की तो हर मुसलमान को लगा कि यदि कुमार विश्वास ऐसा बोलने से परहेज करते तो बेहतर होता। यदि कुमार विश्वास को पता होता कि वेद और उपनिष्द हुसैन के बारे में क्या कहते हैं तो शायद वह इस प्रकार की टिप्पणी करने से परहेज करते।
कुमार विश्वास और तमाम हिन्दुओं के लिए यह जानना आवश्यक है कि वेद और उपनिषद हुसैन के बारे में क्या कह रहे हैं। ऐसा इस लिए भी आवश्यक है क्योंकि हिन्दुओं को पता होना चाहिए कि जिन किताबों को वह आसमानी मानते हैं और उन किताबों पर ही अपने धर्म और आस्था की बुनियाद रखते हैं, वह दरअस्ल क्या कह रही हैं।
ओं विष्वानि देव सवितर्दुरितान् िपरासुवा यद् भंद्र तन्न् आसुव।।
एकदम साफ है कि कुरान, गीता, उपनिषद और वेद में क्या बात हो रहीे है यह उसी को समझ में आ सकता है जिसको परमात्मा सद्बृद्धि दे। यही कारण है कि बहुतेरे लोग जो अपने को इन आसमानी किताबों का जानकार समझते हैं वह जानते ही नहीं कि इनमें क्या बात हो रही है।
जो कुरान कह रहा है वही मैत्री उपनिषद भी कहता है। देखिएः
कुमार विश्वास जी, हमारे बुजुर्गों ने कावडि़यों द्वारा गंगा तक जाकर पानी लाने की प्रथा इसी याद को बनाए रखने के लिए बनाई थी कि हुसैन का छह महिने का बच्चा तीन दिन का भूखा प्यासा मारा जाएगा परन्तु यदि हम रहे तो हम उसके लिए पानी लाने की चेष्टा करेंगे। हमारे बुजुर्गो ने हर ब्रहमण को कपड़े के अन्दर जनेउ पहनाने की प्रथा इसलिए प्रारंभ की ताकि ब्रहमण समय के साथ भूल न जाएं कि ईश्वर के प्रिय कुछ देवता हैं जो पृथ्वी और स्वर्ग के बीच में रस्सी का काम करते हैं और उनके मार्ग पर चलकर ही हम मोक्ष के मार्ग पर आ सकते हैं। परन्तु गीता और वेदों के कमेंटेटरों ने उसमें वह फलसफियाना बातें खोज निकालीं जिनका हमारी जिन्दगी से, हमें पाप, बुराईयों और कठिनाईयों से बचाने में और हमें अच्छाई और सत्य मार्ग पर चलाने में कोई रोल नहीं था और उन देवताओं को भुला दिया जो ईश्वर और परमात्मा के प्रिय हैं और जिनका लक्ष्य ही मानव जाति को सत्य मार्ग अर्थात एक ईश्वर के मार्ग पर लाना है और जिसके लिए वह हर समय कोशिश करते रहे यहां तक कि अग्नि देव जो मानव शरीर में आने के बाद हुसैन कहलाए, उन्होंने अपनी, अपने रिश्ते नातेदारों की, अपने दोस्तों की और अपनी औलाद की कुरबानी पेश की ताकि वह सत्य मार्ग धूमिल न हो सके जिसपर चलकर हमें मोक्ष प्राप्ति होना है।
कुमार विश्वास और तमाम हिन्दुओं के लिए यह जानना आवश्यक है कि वेद और उपनिषद हुसैन के बारे में क्या कह रहे हैं। ऐसा इस लिए भी आवश्यक है क्योंकि हिन्दुओं को पता होना चाहिए कि जिन किताबों को वह आसमानी मानते हैं और उन किताबों पर ही अपने धर्म और आस्था की बुनियाद रखते हैं, वह दरअस्ल क्या कह रही हैं।
“O All-creating Deva please sweep
away from us all sins, vices and miseries and grant us all that is beneficial
and auspicious.”
यह बड़े खेद का विषय है कि जहां एक ओर वेद, उपनिषद और गीता बार बार देवताओं का उल्लेख कर रहे हैं और देवताओं का आहवान कर रहे हैं कि वे हमारे पाप, बुराईयों और कठिनाईयों को दूर करें और हमें वह सब कुछ प्रदान करें जो हमारे लिए बेहतरी का कारण हो, उन्हीं वेद, उपनिषद और गीता को मानने वाले जानते ही नहीं कि यह आसमानी किताबें क्या कह रही हैं। दिल पर हाथ रखकर बताईए कि यदि हम इन किताबों को परमात्मा की ओर से मानते हैं तो हमें क्या हक बनता है कि हम इसको अपने अर्थ पहनाएं। हमें चाहिए कि यह जानने की कोशिश करें की परमात्मा हमसे क्या कहना चाह रहा है। और जब जान लें कि परमात्मा क्या कह रहा है तो फिर आंख बंद करके उसकी मानें, अपनी न चलाएं। अफसोस की बात यह है कि हम परमात्मा से वही कहलाना चाहते हैं जो हमारा मन कहता है।
जिस परमात्मा ने हमें पृथ्वी पर वास करने भेजा उसने हमें मार्ग भी दिखाया ताकि हम पाप, बुराईयों और कठिनाईयों से बचे रह सकें और उस सत्य मार्ग अर्थात सिरात-ए-मुस्तकीम पर चलकर अपने लिए हर प्रकार की बेहतरी और अच्छाई की प्राप्ती करें और इस पृथ्वी वास ने निकल कर आत्मा को परमात्मा तक पहुंचा सकें। जो अच्छी और आज्ञाकारी आत्माएं थीं, वह वेद आने के पश्चात तुरन्त उसके बताए मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त कर चुकीं। मोक्ष प्राप्ति ही उद्देश्य है इसलिए वह आत्माएं फिर इस पृथ्वी पर लौट कर नहीं आईं। बची रह गईं वह आत्माएं जो वेदों की शिक्षा को समझ ही नहीं पाई तो उन पर चलती कैसे? यही कारण है कि आज तक हमारी आत्माएं एक शरीर से दूसरे शरीर में इसी पृथ्वी पर विचर रही हैं। अब इस पर आप को शंका नहीं होना चाहिए कि क्यों आज के वेदों के जानकार कभी उसमें देवताओं का उल्लेख आने पर कहते हैं कि यह अग्नि की बात हो रही है, कभी कहते हैं कि यह आकाश की बात हो रही है, कभी कहते हैं कि यह स्टीम इंजन की बात हो रही है और कभी कहते हैं कि यह ईश्वर की बात हो रही है परन्तु उन देवताओं को नकार देते हैं जो परमात्मा के प्रिय हैं क्योंकि वह जानते ही नहीं कि वह देवता कौन हैं जिनके मार्ग पर चलकर हर बुराई और कठिनाई से राहत और इस दुनिया और अगली दुनिया की हर अच्छाई और बेहतरी हमें मिलती है। मोक्ष भी इन्हीं के रास्ते पर आकर मिलता है।
The
Holy Quran says:
He grants wisdom to whom He pleases,
and whoever is granted wisdom, he indeed is given a great good and none but men
of understanding mind.
एकदम साफ है कि कुरान, गीता, उपनिषद और वेद में क्या बात हो रहीे है यह उसी को समझ में आ सकता है जिसको परमात्मा सद्बृद्धि दे। यही कारण है कि बहुतेरे लोग जो अपने को इन आसमानी किताबों का जानकार समझते हैं वह जानते ही नहीं कि इनमें क्या बात हो रही है।
जो कुरान कह रहा है वही मैत्री उपनिषद भी कहता है। देखिएः
VII.8
says:
Now
then, the hindrances to knowledge, O King. This is indeed the source of the net
of delusion, the association of one who is worthy of heaven with those who are
not worthy of heaven, that is it. Though it is said there is a grove before
them they cling to a low shrub. Now there are some who are always hilarious,
always abroad, always begging, always making a living by handicraft. And others
are who are beggars in town, who perform sacrifices, for the unworthy, who are
the disciples of Sudras and who, though Sudras, are learned in the scriptures.
And others there are who are wicked, who wear their hair in a twisted knot, who
are dancers, who are mercenaries, traveling mendicants, actors, those who have
been degraded in the king’s service. And others there are who, for money,
profess they can allay (the evil influences) of Yaksas (sprites), Raksasas
(ogres), ghosts, goblins, devils, serpents, imps and the like. And others there
are who, under false pretexts, wear the read rope, earrings and skulls. And
others there are who love to distract the believers in the Veda by the jugglery
of false arguments, comparisons and paralogisms, with these one should not
associate. These creature, evidently, are thieves and unworthy of heaven. For
this has it been said: The world bewildered by doctrines that deny the self, by
false comparisons and proofs does not discern the difference between wisdom and
knowledge.
यह पढ़कर पंडित महेंद्र पाल आर्य और उनके अनेक साथी जो मुसलमानों का उपहास उड़ाते हैं कि इनके यहां जन्नत और जहन्नुम की मान्यता है जिसको किसी ने आज तक नहीं देखा बताएं कि क्या मैत्री उपनिषद स्वर्ग और नर्क की बात नहीं कर रहा? साफ शब्दों में क्हा जा रहा है कि कैसे लोग वेदों में बड़ी बड़ी खूबसूरत बातें ढूंढा करते थे परन्तु वह भटके हुए लोग थे। ईश्वर की ओर से भेजी गई पुस्तक वह फलसफियाना बातें बताने के लिए नहीं आई थी जो कुछ को समझ में आए और बहुतेरों को समझ में न आए बल्कि ईश्वर की ओर से आने वाली किताब साफ और आसान शब्दों में वह मार्ग प्रशस्त करने के लिए आई जिसे आम इंसान भी समझ सकता है। सच्चाई केवल यह है कि वेद और उपनिषद उन 14 देवताओं अर्थात 14 मनु अथार्त 14 अहलेबैत को पहचनवाने आई थीं जिनके मार्ग पर चलकर हम हर बुराई, हर पाप और हर कठिनाई से बचे रह सकते हैं और हर अच्छाई को प्राप्त कर सकते हैं। यह 14 अहलेबैत वह हैं जिनके लिए कुरान कह रहा है कि यह हर बुराई से पाक हैं और इन्हीं के रास्ते पर चलकर हमें तमाम नेयमतें मिल सकती हैं। कुमार विश्वास जी, देवता नूर रूप में अति शक्तिशाली हैं, यही कारण है कि वेद उन्हें “O
all-creating deva” कह कर बुला रहे हैं। जब वे मानव शरीर में आए तो आम इंसानों की तरह जिन्दगी गुजारी परन्तु समय समय पर वह ऐसा कुछ करते रहे कि हम उन्हें पहचान सकें। इंद्र देव मानव शरीर में धरती पर आए तो मौहम्मद कहलाए और अग्नि देव जब मानव शरीर में पृथ्वी पर आए तो हुसैन कहलाए। मुसलमान लाख बुरे सही, हुसैन का ईश्वरीय सृष्टि में असली मकाम जान रहे हों या नहीं, परन्तु उन्हीं अग्नि देव को याद करते हैं जिनके मार्ग पर चलकर इस दुनिया और इसकी अगली दुनिया की तमाम नेयमतें प्राप्त होती हैं। कुमार विश्वास जी आप इस बात का उपहास उड़ा रहे हैं कि मुसलमान 1400 साल बाद भी हुसैन और उनके साथियों की कर्ब-ओ-बला की धरती पर दी गई कुरबानी को ऐसे याद करते हैं जैसे यह कल की ही घटना हो। मैं आपको बता दूं कि कर्ब-ओ-बला की घटना से 3000-3500 वर्ष पूर्व ही वेदों ने इस घटना का उल्लेख कर दिया था। कुमार विश्वास जी, आप को यह बड़ा हास्यप्रद लगता है कि मुसलमान करबला की कुरबानी को याद करके कहते हैं कि ‘‘हुसैन, हम नहीं थे वर्ना हम आपका साथ देतें’’। क्या आपने कर्ब-ओ-बला में ईश्वर के मार्ग में दी गई कुरबानियों को सुना भी है? जब इन कुरबानियों के बारे में सुनते हैं, ऐसा दर्द उठता है जैसे इन्हें पहली बार सुन रहे हैं। यह कुरबानियां ऐसी ही थीं कि इस घटना से 3000-3500 वर्ष पूर्व वेदों ने भी अग्नि देव द्वारा मनुष्य शरीर में धरती पर आने के बाद दी गई कुरबानियों का बार बार उल्लेख किया है। वेदों में उस समय के लोग ईश्वर से प्रार्थना करते थे कि काश हम उस समय रहें जब अग्नि देव धरती पर मानव शरीर में आएं और दुश्मन उन्हें घेर लें। यहां तक कहते थे कि हम आप के लिए अपनी जानों की आहुति दे देंगे, अग्नि देव, हम आप के आगे ढाल बनकर खड़े हो जाएंगे, जब आप आएंगे। खेद का विषय यह है कि जब अग्नि देव मानव शरीर में आए तो उस समय के सनातन धर्मी उन्हें पहचान ही न पाएं।
कुमार विश्वास जी, हमारे बुजुर्गों ने कावडि़यों द्वारा गंगा तक जाकर पानी लाने की प्रथा इसी याद को बनाए रखने के लिए बनाई थी कि हुसैन का छह महिने का बच्चा तीन दिन का भूखा प्यासा मारा जाएगा परन्तु यदि हम रहे तो हम उसके लिए पानी लाने की चेष्टा करेंगे। हमारे बुजुर्गो ने हर ब्रहमण को कपड़े के अन्दर जनेउ पहनाने की प्रथा इसलिए प्रारंभ की ताकि ब्रहमण समय के साथ भूल न जाएं कि ईश्वर के प्रिय कुछ देवता हैं जो पृथ्वी और स्वर्ग के बीच में रस्सी का काम करते हैं और उनके मार्ग पर चलकर ही हम मोक्ष के मार्ग पर आ सकते हैं। परन्तु गीता और वेदों के कमेंटेटरों ने उसमें वह फलसफियाना बातें खोज निकालीं जिनका हमारी जिन्दगी से, हमें पाप, बुराईयों और कठिनाईयों से बचाने में और हमें अच्छाई और सत्य मार्ग पर चलाने में कोई रोल नहीं था और उन देवताओं को भुला दिया जो ईश्वर और परमात्मा के प्रिय हैं और जिनका लक्ष्य ही मानव जाति को सत्य मार्ग अर्थात एक ईश्वर के मार्ग पर लाना है और जिसके लिए वह हर समय कोशिश करते रहे यहां तक कि अग्नि देव जो मानव शरीर में आने के बाद हुसैन कहलाए, उन्होंने अपनी, अपने रिश्ते नातेदारों की, अपने दोस्तों की और अपनी औलाद की कुरबानी पेश की ताकि वह सत्य मार्ग धूमिल न हो सके जिसपर चलकर हमें मोक्ष प्राप्ति होना है।
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