मेरे दोस्त ऋषि शर्मा जी का कहना है कि मैं अंग्रेजी वाले प्रश्न और उत्तर को हिन्दी में लिखूं। श्रीमति एननिजवी रिजवी का कहना है कि मैं थोड़ी मुश्किल हिन्दी लिखता हूं। दोनों के हुक्म का पालन करने की कोशिश करूंगा।
फेसबुक पर मेरे मित्र प्रिंस महाजन इस्लाम और मुसलमानों को लेकर मन की बात लिखते हैं। यह सत्य की खोज हेतु उनकी जिज्ञासा को दर्शाता है। मेरे एक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए प्रिंस महाजन ने लिखाः-
‘‘मक्का को दुनिया इस्लाम का तीर्थस्थल मानते हैं दरअसल उसके बारे में कुछ लोगों का मानना है कि आज से हजारों साल पहले वह हिंदुओं का तीर्थस्थल था। कहा जाता है कि यहां भगवान मक्केश्वर महादेव का मंदिर हुआ करता था। कुछ लोगों का यह दावा है कि वहां पर आज भी महादेव का शिवलिंग मौजूद है। एक मान्यता के अनुसार जो भी मुस्लिम वहां हज के लिए जाता है वो वहां संगे अस्वाद मानकर इसी शिवलिंग को चूमते हैं। ये यहां कहां से आया - इस शिवलिंग के विराजमान होने के पीछे जो कथा है वो ये है कि भोलेनाथ ने रावण की तपस्या से खुश होकर लड़ाई जीतने का आशीर्वाद देते हुए ये शिवलिंग दिया और कहा कि इसे जहां भी तुम धरती पर रखोगे ये वहीं सदा-सदा के लिए स्थापित हो जाएगा। जब रावण आसमान के रास्ते अपने महल लंका की ओर जा रहा था तो रास्ते में उसे अचानक पेशाब आई जिसके चलते उसे वह शिवलिंग किसी को पकड़वाना पड़ा। जिसे वह शिवलिंग पकड़ने के लिए दिया वो देवताओं के ही पक्ष का था क्योंकि ये शिवलिंग यदि लंका में स्थापित हो जाता तो देवता रावण से कभी विजयी नहीं होते। इसलिए ये शिवलिंग रावण से लेकर उसी स्थान पर रखना पड़ा और ये शिवलिंग हमेशा के लिए यहां स्थापित हो गया। ये जगह और कोई नहीं मक्का ही थी। शिव की संगिनी गंगा भी यहां मौजूद है- भगवान शिव और गंगा का साथ एक रहा है। जहां शिव होंगे वहां पावन गंगा और चंद्रमा अवश्य मौजूद होंगे। ठीक इसी तरह काबा में एक झील भी बहती है। जिसके पानी को यहां के लोग बहुत ही पाक मानते हैं। जिसे ये अबे जम-जम कहते हैं, जिसका अर्थ पाक होता है।’’
प्रिंस महाजन जी, एक और पोस्ट में मैंने लिखा था कि वेद भी हम मुसलमानों की ही किताब है, भले ही मुसलमान मानें या नहीं, तो आप को अचंभा हुआ था। आप का यह लेख दर्शाता है कि देवता भी चाहते थे कि तीर्थस्थल वहीं पर स्थापित हो जहां अहलेबैत के नूर को मानव शरीर में अवतरित होना था। यही तो मैं भी अपने लेखों में बार बार कह रहा हूं कि सारे वेद हम को यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि दिव्य अर्थात नूर से जो देवता अर्थात 14 मनु बने थे, वे अलग अलग समय में धरती पर मानव शरीर में अवतरित होते रहे और आखिरकार 14 के 14 एक के बाद एक अरब की धरती पर मानव शरीर में अवतरित हुए और अहलेबैत कहलाए।
काबे और शिव मंदिर को लेकर जो प्रश्न आप ने किया है यही प्रश्न दिसम्बर 2013 में मेरे मित्र सैबी गांगुली ने किया था। उस समय मैं ने जो उत्तर दिया था वह मैं आप के लिए दुबारा पोस्ट कर रहा हूं। पढि़ए पहले सैबी गांगुली का प्रश्न और फिर मेरा उत्तर। उत्तर लंबा हो जाने का खेद है।
मेरे मित्र सैबी गांगुली ने सवाल किया था कि ‘‘मैं पूछना चाहता हूं कि आप बताएं किः-
1. काबा के एक शिलालेख में महादेव और राजा विक्रामादित्य का उल्लेख
2. पैगम्बर मौहम्मद के एक चाचा जो उन्हें नबी नहीं मानते थे ने एक कविता ‘सैर-उल-ओकुल’’ में भारत को पृथ्वी पर सबसे पवित्र स्थान क्हा है। यह कविता इस्तांबुल की एक इस्लामिक लाईब्रेरी में मौजूद है।
3. काबे की तीर्थयात्रा अरबों में पैगम्बर मौहम्मद के जन्म से पहले से होती थी। और हालांकि उन्होंने इस प्रथा को बदल कर मक्का से येरूश्लम की ओर इबादत का मरकज कर दिया लेकिन फिर इसे बदल कर काबे की ओर इबादत शुरू की और केवल मूर्तिपूजा को छोड़ कर हिन्दू और हिन्दुओं जैसे बुतपरस्तों की प्रथाओं को जारी रखा। यहां तक कि हज पर तुम जो कपड़े पहनते हो वे भी हिन्दु ऋषियों द्वारा पहने जा रहे कपड़ों के समान होते हैं।
4. किन अकली दलीलों की बुनियाद पर आप कहते हैं कि कुरान जो आज हम जानते हैं वह वही है जो अल्लाह ने जिबरील के माध्यम से पैगम्बर मौहम्मद को बताया था? आप जानते हैं कि कई कुरान प्रचलित थे जिन्हें खलीफा उस्मान ने जलवा दिया और केवल एक ही कुरान रहने दिया जिस के कारण आएशा गुस्सा हो गईं और आखिरकार उस्मान को इसी कारण मारा गया। इस वजह से हमें पता नहीं है कि असली कुरान कौन सा था।’’
मेरे प्यारे सैबी,
इससे पहले कि मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देना शुरू करूं, हर प्वाईंट का अलग अलग जैसा कि आप चाहते हैं, मैं चाहता हूं कि आप मेरे फेसबुक पेज के स्लोगन की ओर जाएं जो कहता है कि सारी इंसानियत का खुदा एक ही है और हम उसकी इबादत के लिए पैदा किये गये हैं। सारे धर्म दरअस्ल उस एक सीधे रास्ते को न समझ पाने और उससे भटक कर बने हैं जो इस काएनात यानी सृष्टि के एक खुदा तक हम को पहुंचाता था।’
क्योंकि आपके चार सवालों में से एक सवाल अरब में पैगम्बर मौहम्मद के आने से पहले वेदिक धर्म के पालन की ओर इशारा करता है और आप महादेव का काबे से रिश्ता बताते हैं और कहते हैं कि काबा दरअस्ल हिन्दुओं का मंदिर था जिसमें हिन्दू भगवानों की मूर्तियां रखी थीं और पैगम्बर मौहम्मद के चाचा का उल्लेख करते हैं जो शिव के भक्त थे, मैं इस विषय को थोड़ा और बढ़ाना चाहूंगा ताकि वे प्वाईंट भी इसमें सम्मिलित हो जाएं जो कई दूसरे लोग काबे और मक्के से हिन्दू रिश्ते को जोड़ते हुए कहते हैं।
लेकिन कुछ भी लिखने से पहले मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि जो भी अपने धर्म को दूसरे धर्म पर से श्रेष्ठ मानता है और चाहता है कि तमाम दूसरे धर्मों के मानने वाले उसके धर्म को ही सही मान लें वह स्वयं ईगो का शिकार है और अकल का इस्तेमाल करके ईश्वर के रास्ते को पहचानने और उसपर चलने में रूचि नहीं रखता। यदि आप सत्य मार्ग को पहचानना चाहते हैं तो आपको इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि आप हर बात को अकल की कसौटी पर परखेंगे और यदि पहले से बनी मान्यताएं टूटती नजर आएं तो उनका त्याग करने को भी तैयार रहेंगे। मैं मौहम्मद अलवी यदि सत्यमार्ग को पहचान सका तो केवल इसलिए कि मैंने बचपन से पैदा की गई मान्यताओं में बंध कर सत्यमार्ग की तलाश करने की कोशिश नहीं की और हर वह किताब जिसको उसके अनुयायी आसमानी मानते हैं उसको मैंने अपनी किताब समझ कर पढ़ने की कोशिश की।
काबा और मक्का का महादेव और वेदों से रिश्ता
बहुतेरे हिन्दू कहते हैं कि पैगम्बर मौहम्मद और इस्लाम के आने से कई सदियों पहले अरब यानी अरबिस्तान वैदिक सभ्यता का गढ़ था। वह यह भी कहते हैं कि पैगम्बर मौहम्मद और इस्लाम इस अजीम सभ्यता के बिखरने का कारण बने।
यह कहा जाता है कि अरबिस्तान संस्कृत शब्द अर्वस्थान का बिगड़ा रूप है जिसका अर्थ होता है ‘घोड़ों का स्थान’ क्योंकि उस इलाके के लोग बड़े शानदार घोड़े रखा करते थे। ‘अर्व’ मतलब ‘घोड़ा’ और ‘स्थान’ मतलब ‘जगह’। यह भी क्हा जाता है कि वहां रहने वाले लोग सैमिटिक थे जो संस्कृत शब्द स्मृतिक से बना है। उस समय के अरब वेदिक स्मृति जैसे मनुस्मृति को मानते थे और यही शब्द बिगड़ कर सैमिटिक हो गया।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उस समय उनकी भाषा संस्कृत थी जो बिगड़ कर अरबी भाषा हो गई। इसका सबूत यह है कि संस्कृत से लिए गये हजारों शब्द आज भी अरबी भाषा में पाये जाते हैं। इस विषय पर अरबों का मानना है कि वे सैमिटिक जरूर हैं परन्तु उनकी जबान अरबी ही अस्ल जबान थी जो बिगड़ कर संस्कृत हो गयी। इसके सबूत में वे कहते हैं कि आर्य लोग अरब की ओर से हिन्दुस्तान में दाखिल हुए थे। पैगम्बर मौहम्मद का समय आने तक अरबों ने अपनी जबान यानी भाषा को इतना विकसित कर लिया था कि वे अपने आगे सारे विश्व के लोगों को अजम यानी गूंगा कहा करते थे। वे इस पर गर्व किया करते थे और अरब रोजमर्रा की जबान में भी कविता की तर्ज पर बात किया करते थे। इस बहस को अलग रखते हुए हम इस नतीजे पर तो जरूर पहुंच सकते हैं कि अरबी और संस्कृत भाषा का स्त्रोत एक ही है और दोनों जबानों में अनगिनत समानताएं आज भी देखी जा सकती हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि उस समय के लोग भारत को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भूमि के रूप में देखते थे। उस समय की एक कविता चारों वेदों का भी उल्लेख करती है।
"Aya muwarekal araj yushaiya noha
minar HIND-e
Wa aradakallaha
manyonaifail jikaratun"
‘हे हिन्द की दिव्य भूमि कैसी धन्य तू है क्यूंकि तुम्हें चुना गया है परमेश्वर द्वारा, तू ज्ञान की धनी है।’
"Wahalatijali Yatun ainana sahabi
akha-atun jikra Wahajayhi yonajjalur
-rasu minal HINDATUN "
‘वह ईश्वरीय ज्ञान जो चार ज्योतियों के माध्यम से इतने तेज के साथ चमकता है जिसको भारतीय संतों ने चैगुना ज्योतिवान कर दिया है।’
"Yakuloonallaha ya ahal araf alameen
kullahum
Fattabe-u jikaratul VEDA bukkun
malam yonajjaylatun"
‘ईश्वर चाहता है कि सभी मनुष्य वेदों में दिखाये गये दिव्य पथ का अनुसरण करें।’
"Wahowa alamus SAMA wal YAJUR
minallahay Tanajeelan
Fa-e-noma ya akhigo mutiabay-an
Yobassheriyona jatun"
‘नूरानी ज्ञान से सम्पूर्ण सम और यजुर मनुष्य को दिये गये हैं, इसलिए भाईयों वेदों का सम्मान और अनुसरण करो जो मोक्ष यानी निजात की राह दिखाने वाले हैं।’
"Wa-isa nain huma RIG ATHAR nasayhin
Ka-a-Khuwatun
Wa asant Ala-udan wabowa masha -e-ratun"
‘दो अन्य ऋग और अथर हमें सिखाते हैं भाईचारा और यकजहती, जिनके नूर की छाया में आकर जुलमत यानी अंधकार हमेशा के लिये दूर हो जाता है।’
यह कविता लबी बिन अख्ताब बिन तुरफा ने लिखी थी जो अरब में 1850 ईसा पूर्व के लगभग रहता था। यह पैगम्बर मौहम्मद से करीब 2300 साल पूर्व था। यह कविता सैर उल ओकुल में मौजूद है। इसका 1742 ईस्वी में तुरकी के सुलतान सलीम के हुक्म पर संकलन किया गया था और यह तुरकी के इस्तांबुल शहर की मकतबे सुलतानिया लाईब्रेरी में मौजूद है।
यह कविता सबूत के रूप में पेश की जाती है कि वेद ही वे आसमानी किताबें थीं जिनको 1800 ईसा पूर्व के अरब लोग मानते थे। सैर उल ओकुल के पृष्ठ 315 पर राजा विक्रामादित्य के शिलालेख का उल्लेख है जो स्वर्ण प्लेट पर लिखकर मक्का में काबा के अन्दर लगा हुआ था। यह कविता जिररहम बिनतोई द्वारा लिखी गयी है जो पैगम्बर मौहम्मद से 165 वर्ष पूर्व रहता था और यह राजा विक्रामादित्य की तारीफ यानी प्रशंसा में लिखी गयी है जो बिनतोई से करीब 500 साल पहले थे। इस शिलालेख का अनुवाद यह हैः-
‘किसमत वाले हैं वे जो राजा विक्रम के राज्य में पैदा हुए और जिन्दगी गुजारी। वह एक महान, उदार और कर्तव्य परायण शासक था जो प्रजा के कल्याण के लिये समर्पित था। लेकिन उस समय हम अरब ईश्वर को भुलाये, कामुक सुख में खोये हुये थे। साजिश रचना और जुल्म करना आम बात थी। अज्ञान का अंधकार हमारे देश पर छा चुका था। जिस प्रकार एक भेड़ का बच्चा क्रूर भेडि़ये के पंजे में अपने जीवन के लिये संघर्ष करता है हम अरबों को अंधेरे ने जकड़ा हुआ था। समूचे देश को अंधेरे ने जकड़ा हुआ था जो इतना गहरा था जैसे नये चंाद की रात को होता है। परन्तु वर्तमान सुबह और ज्ञान की सुखद रौशनी महान राजा विक्रमादित्य की कोशिशों का परिणाम था जिनकी उदार निगाहों से हम विदेशी भी बचे नहीं रहे। उन्होंने हमारे बीच अपने पवित्र धर्म को फैलाया और हमारे बीच उन विद्वानों को भेजा जिनकी चमक उनके देश से हमारे देश को प्रजव्लित करती थी। उन विद्वानों का परोपकार था कि हम एक बार फिर ईश्वर की उपस्थिति को पहचान पाये; उन्होंने खुदा की पवित्र उपस्थिति से हम को रूशिनास कराया और हम को सत्य मार्ग पर लगाया। वे अपने देश से हमारे देश विक्रमादित्य के हुक्म पर आये थे ताकि अपने धर्म का प्रचार कर सकें और हमें शिक्षित कर सकें।’
इस शिलालेख से निम्नलिखित निष्कर्श निकाले जा सकते हैंः-
1. प्राचीन भारतीयों ने अरब की पूर्वी सरहदों तक अपने साम्राज्य को फैला लिया था और विक्रामादित्य पहला भारतीय राजा था जिसने अरब को अपने साम्राज्य में शामिल किया।
2. अरबों का उससे पहले जो भी धर्म रहा हो, विक्रामादित्य ने वेदों पर आधारित धर्म का अरब में न केवल प्रचार किया बल्कि फैलाने में सफल रहा।
3. भारतीय विद्वानों से यहां की कला और विज्ञान का ज्ञान अरबों को सीधे प्रदान करने के लिए अकादमियों और सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना की। इसलिए यह विश्वास कि अरबों ने अपने अथक प्रयासों से अपने आप को भारतीय ज्ञान से अवगत कराया गलत है।
राजा विक्रमादित्य को महादेव -शिव- के लिए अपनी महान भक्ति के लिए जाना चाहता था। भारत का उज्जैन शहर जो विक्रमादित्य की राजधानी थी महांकाल यानी शंकर यानी शिव के मंदिर के लिये प्रसिद्ध है जिसको विक्रमादित्य ने बनवाया था। विक्रमादित्य के काबा में शिलालेख के अनुसार विक्रमादित्य ने अरब में वैदिक धर्म का प्रसार किया था। इससे जाहिर होता है कि अरब दुनिया वैदिक देवी देवताओं के बारे में अवगत हुई होगी। यह भी कहा जाता है कि आज तक काबे की दीवार पर कई शिलालेख मौजूद हैं जिन में कुछ संस्कृत में हैं पर वे क्या हैं इसके अध्ययन की किसी को अनुमति नहीं दी जाती। यह भी कहा जाता है कि इनमें से कुछ शिलालेखों पर गीता के पद लिखे हैं।
यह भी कहा जाता है कि उमर बिन हश्शाम जो पैगम्बर मौहम्मद के चाचा थे शिव भक्त थे।
अपनी पुस्तक औरिजींस में सर डब्लू डरम्मंड लिखते हैंः
‘जब अब्राहम को खुदा की ओर से संदेश मिला, उस समय तक Tsabaism समूचे विश्व का धर्म था; उनके सिद्धांत शायद विश्व की तमाम सभ्यताओं में फैले हुये थे।’
डरम्मंड का मानना है कि Tsabaism दरअस्ल Shaivism शब्द का बिगड़ा रूप है। पृष्ठ 439 पर सर डरम्मंड इस्लाम से पहले के अरबों के खुदाओं के नाम लिखते हैं जो उन 360 बुतों में थे जिनको पैगम्बर मौहम्मद ने फतहे मक्का के बाद काबा से बाहर कर दिया था। कुछ बुतों के अरबी, संस्कृत और अंग्रेजी नाम निम्नलिखित हैंः-
Arabic Sanskrit English
Al-Dsaizan Shani Saturn
Al-Ozi or Ozza Oorja Divine energy
Al-Sharak Shukra Venus
Auds Uddhav -
Bag Bhagwan God
Bajar Vajra Indra's thunderbolt
Kabar Kuber God of wealth
Dar Indra King of gods
Dua Shara Deveshwar Lord of the gods
Habal Bahubali Lord of strength
Madan Madan God of love
Manaph Manu First Man
Manat Somnath Lord Shiv
Obodes Bhoodev Earth
Razeah Rajesh King of kings
Sair Shree Goddess of wealth
Sakiah Shakrah Indra
Sawara Shiva Eshwar God Shiva
Yauk Yaksha Divine being
Wad Budh Mercury
यह भी दावा किया जाता है कि काबा पूर्व में वेदिक मंदिर था। प्राचीन वेदिक शास्त्र हरिहरेश्वर महातमया कहता है कि लार्ड विष्णू के नक्शेकदम मक्का को पाकीजगी बख्श्ते हैं। यह भी कहा जाता है कि मुसलमान काबा को हरम कहते हैं जो संस्कृत शब्द हरियम से बना है जिसका अर्थ लार्ड हरि अर्थात लार्ड विष्णू का स्थान है। प्रासंगिक छंद पढि़येः-
"Ekam Padam Gayayantu
MAKKAYAANTU Dwitiyakam
Tritiyam Sthapitam
Divyam Muktyai Shuklasya Sannidhau"
यह भी दावा किया जाता है कि जब पैगम्बर मौहम्मद और अली ने काबा से बुतों को बाहर किया तो उन्होंने एक काला पत्थर - संगे असवद - को वैसे ही छोड़ दिया। यह कहा जाता है कि काला पत्थर शिव का निशान है और इसी कारण इसको छोड़ दिया गया जो आज भी काबा की दक्षिण पूर्वी दीवार के पास मौजूद है।
एक अन्य जगह लिखा है कि ‘‘विश्व भर से मुसलमान काबा में मकामे इब्राहीम की जियारत करने आते हैं। यह दरअस्ल ब्रहमा की कुर्सी है। शब्द इब्राहीम दरअस्ल ब्रहमा का बिगड़ा रूप है। अष्टकोणीय ग्रिल जो कि एक वेदिक डिजाईन है उन पाक निशानों को महफूज करते हैं; यह 2000 मिलियन वर्ष पहले इस सृष्टि की रचना को दर्शाता है। मुसलमानों के कब्जे में आने से पूर्व यह वेदिक ट्र्नििटी का एक अंतरराष्ट्र्ीय मंदिर था।’
यही लेख कहता हैः ‘‘मुस्लिम शहरों मक्का और मदीना के नाम दरअस्ल संस्कृत शब्द मखः-मदीनी से बने हैं जिसका अर्थ होता है आग को पूजने वालों की धरती। इन शहरों के प्राचीन नाम माहकोरव और यस्तरब थे जो संस्कृत शब्द महादेव और यात्रा-स्थान से बने हैं।
यह लेख आगे कहता हैः ‘‘एनसिक्लाईपीडिया इस्लामिया इसको मानता है जब वह कहता हैः ‘मौहम्मद के दादा और चाचा आदि काबा के वंशानुगत पुजारी थे जिसमें 360 बुत रखे थे!’’ और लिखता हैः ‘‘हमें यह तो पता ही है कि काबा में पूजा की जो केंद्रीय वस्तु बचती है वह शिवलिंग है। इसको वहां इसलिए रहने दिया गया क्योंकि यह मौहम्मद के परिवार का चेहराविहीन परिवारिक देवता था। लार्ड शिव का एक नाम महादेव है जिसके अर्थ होते हैं ‘देवों का देव’ और इसलिए यह मुमकिन है कि मुहम्मद का नाम महादेव से बना हो। यह संभव दिखाई देता है क्योंकि अरबों में आज भी महादेवी संप्रदाय है।’’
मौहम्मद अलवी यहां से लिखना प्रारंभ करता हैः यह वो तर्क हैं जो दिये जाते हैं यह साबित करने के लिए कि वैदिक संस्कृति अरबिस्तान तक फैली हुई थी और काबा दरअस्ल हिन्दू मंदिर था। मेरा मानना है कि यदि काबा भारत के समीप या भारत में होता और मौहम्मद ने अपनी शिक्षा को काबा से प्रारंभ किया होता जैसा कि उन्होंने किया, तो इतने सारे रिश्ते जो काबा और मौहम्मद के पूर्वजों को वैदिक धर्म से जोड़ते हैं, हम भारतीयों ने अवश्य ही मौहम्मद को अपनों में से एक मान लिया होता, जैसे वे महावीर, बुद्ध और नानक को मानते हैं। आज भी तमाम भारतवासी महावीर, बुद्ध और नानक को इज्जत से देखते हैं हालांकि इन तीनों ने जिस मार्ग को दिखाया वह हिन्दुओं से निकल कर अलग धर्म बन गया। इन धर्मों के मानने वाले कोई कसर नहीं छोड़ते यह बताने के लिए कि वे अलग धर्म हैं, हिन्दुओं से अलग हैं, परन्तु इन धर्मों के स्थापकों को हिन्दु आज भी आदर से देखते हैं। यहां तक कि साई बाबा को, जिनके मानने वालों ने धीरे धीरे एक पूरे पंथ की स्थापना कर दी जो कि सनातन धर्म से बिलकुल भिन्न है, को भी अपना ही मानते हैं। परन्तु क्या कारण है कि मौहम्मद को एक खलनायक के रूप में चित्रित किया जाता है जिन्होंने काबा से जो एक हिन्दु मंदिर था मूर्तियों को निकाल कर मुस्लिम पूजा स्थल बना डाला? कृष्ण ने भी तो यही किया था जो मौहम्मद ने किया। कृष्ण ने उन लोगों के खिलाफ युद्ध लड़ा था जो वेदिक देवताओं की पूजा करने लगे थे। इसके क्या कारण हैं इसपर हम बाद में वापिस आयेंगे। इस समय हम काबा और मौहम्मद के विषय में हिन्दूओं में प्रचलित मान्यताओं की बात कर रहे हैं इसलिए अपनी बात को साबित करने के लिए हम हिन्दुओं की ही किताबों - वेद, उपनिषद और गीता - का अधिक सहारा लेंगे।
सच्चाई यह है कि जो कुछ भी उपर लिखा गया है वह मौहम्मद अलवी ने वेद, उपनिषद और गीता को जिस तरह समझा पूरी तरह उसके अनुरूप है। अपने अध्ययन और अनुसंधान के बल पर मैं बार बार साबित कर रहा हूं कि वेदों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि कुल 14 देवता हैं जिनमें 13 देव और 1 देवी हैं और यही 14 मनु भी हैं जिनके केवल 7 नाम हैं; इनको आने वाले समय में एक के बाद एक मानव शरीर में पृथ्वी पर आना था। देवता शब्द ‘दिव्य’ यानी ‘नूर’ से बना है। इन देवताओं का खुदा की इस सृष्टि मे बतौर नूर बहुत ही महान रोल है; यही ईष्वर यानी अल्लाह की इस सृष्टि को चलाने वाले हैं। वेदों ने इनके नाम नहीं बताये लेकिन पर्याप्त सबूत छोड़ दिये हैं कि वेदों के पढ़ने वाले पहचान लें कि यह ईश्वर की ओर से नियुक्त पथप्रदर्शक कब और कहां पर मानव शरीर में आएंगे। अधिक जानकारी के लिए मेरी पोस्ट “The True Content of the Vedas” पढें। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब मैं वेदों से यही साबित करूं तो आप में से कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि मैं अपनी मर्जी से वेदों में मौहम्मद की मौजूदगी साबित कर रहा हूं जब्कि ऐसा है नहीं और दूसरे समय पर आप में से ही कुछ लोग कहते हैं कि वैदिक शास्त्र हरिहरेश्वर महातमया कहता है कि लार्ड विष्णू के नक्शेकदम मक्का को पाकीजगी बख्श्ते हैं। मैंने अपने एक लेख में ऋगवेद से दिखाया कि वह साफ शब्दों में कह रहा है कि देवता जिस पवित्र भूमि पर मानव शरीर में आएंगे उसका नाम मखः है। वेद उस स्थान को middle country अर्थात मध्य भूमि बताता है और कहता है कि वह secret place अर्थात छिपा हुआ स्थान होगा। अरब से ज्यादा छिपी हुई जगह कौन हो सकती थी जो उस समय के तमाम मुख्य मार्गों से परे बसा एक स्थान था जहां जाने के लिए रेगिस्तान से गुजरना पड़ता था। मक्का के इलाके को आज भी middle east कहा जाता है परन्तु अमरीका की खोज के पहले यह उस समय की जानी मानी धरती के केंद्र में स्थित था। यह भी कहा जाता है कि जिस समय धरती पर केवल पानी था उस समय जिस स्थान से धरती जमना शुरू हुई थी वह स्थान मक्का है।
जैसा कि हमने देखा है कि वैदिक शास्त्र हरिहरेश्वर महातमया को सबूत के रूप में पेश किया जाता है कि काबा एक हिन्दू मंदिर था। यह कहा जाता है कि यह शास्त्र बताता है कि लार्ड विष्णू के नक्शेकदम मक्का को पाकीजगी बख्श्ते हैं। प्रासंगिक छंद कहता हैः
"Ekam Padam Gayayantu
MAKKAYAANTU Dwitiyakam
Tritiyam Sthapitam
Divyam Muktyai Shuklasya Sannidhau"
जिसको संस्कृत नहीं आती उसको भी इस छंद में साफ तौर पर दिखाई दे जायेगा कि लार्ड विष्णू के नक्शेकदम देवताओं यानी नूरानी हस्तियों के रूप में - देखिये शब्द ‘दिवयम’ यानी नूर - मनुष्य शरीर में जन्म लेंगे।
एक और आसमानी किताब, कुरान, ने मक्का को बैतुल्लाह अर्थात खुदा का घर कहा है और जो 14 नूरानी हस्तियां काबा के करीब मानव शरीर में जन्म लेंगी उनको अहलेबैत - यानी खुदा के ‘घर के लोग’ बताया है और मैं बार बार यह साबित करने की कोशिश कर रहा हूं कि विष्णू के अंग्रेजी में मायनी Manifest Self के होते हैं जिसको अरबी में कुरान ने वजहल्लाह अर्थात अल्लाह का चेहरा कहा। इससे अहलेबैत का विष्णू यानी वजहल्लाह से रिश्ता साबित होता है।
मैंने उपनिषद, वेद और गीता से अनेक उदाहरण दिए हैं और अनगिनत और दे सकता हूं यह साबित करने के लिए कि देवताओं को आने वाले समय में धरती पर अवतरित होना था; उन्होंने मक्का के पास मानव शरीर में जन्म लिया और अहलेबैत कहलाए। ऋगवेद पुस्तक एक का पांचवां और छठा भजन उदाहरण के रूप में पेश है।
यह भजन इंद्रदेव को समर्पित है। इस भजन का पहला मंत्र स्पष्ट रूप से कहता है कि जो कोई भी प्रशंसा के योग्य बनने की इच्छा रखता है, एक साथ बैठे और इंद्रदेव की महिमा गाए। ऐसा करने वाले को - मोक्ष के माध्यम से - मुक्ति मिलेगी।
यह इंद्रदेव का मोक्ष यानी मुक्ति में रोल एक बार फिर दर्शाता है। आज जिन लोगों को पता ही नहीं इंद्रदेव कौन हैं वे मुक्ति कैसे पाएंगे। मैं साबित करता आ रहा हूं कि इंद्रदेव जब मानव शरीर में आए तो मौहम्मद कहलाए। शब्द ‘मौहम्मद’ का अर्थ है ‘जिसकी प्रशंसा की जाए’ और वेद कहता है कि यदि आप प्रशंसा के योग्य बनने की इच्छा रखते हैं तो इंद्रदेव की प्रशंसा के गान गाएं।
इसी प्रकार, दूसरे सब से महत्वपूर्ण देव वायुदेव को रूद्र और मरूत के मुखिया और शिव भी कहा जाता है। शिव को महादेव भी कहा जाता है। वायुदेव यानी शिव चमत्कारी ढंग से काबे के अन्दर पैदा हुए तो वह अली कहलाए।
अली 12 इमामों के सरदार हैं तो शिव 12 मरूत के सरदार हैं; 14 देवताओं में से 2 जो मरूत नहीं हैं वे मौहम्मद और उनकी बेटी फातिमा हैं। जब यह मानव शरीर में धरती पर आए तो इन 14 के केवल 7 नाम थे - मौहम्मद, अली, फातिमा, हसन, हुसैन, अली, मौहम्मद, जाफर, मूसा, अली, मौहम्मद, अली, हसन और मौहम्मद - जिनमें एक देवी फातिमा हैं। मौहम्मद ने कहा कि मेरा नूर तमाम मखलूक से पहले पैदा किया गया और कहा कि मैं और अली एक ही नूर के दो टुकड़े हैं। इसी तरह पिंगल और ब्रहदअराण्यका उपनिषद बताते हैं कि कैसे Manifest Self यानी विष्णू यानी वजहल्लाह ने सब से पहले ब्रहमा के एक नूर को पैदा किया जो दो नूर में विभाजित हुआ जो पहले नूर के समान थे। आगे चल कर उपनिषद 14 नूर बनने की बात करते हैं और कहते हैं कि यह सब एक समान हैं और उस पहले नूर के भी समान हैं जिससे इनका विभाजन हुआ। दूसरी तरफ मौहम्मद अपनी जिन्दगी में बार बार कहते रहे कि हम में से पहला मौहम्मद है, आखिरी मौहम्मद है, बीच वाला मौहम्मद है, सब के सब मौहम्मद हैं। मौहम्मद बार बार कहते रहे कि मैं और अली एक ही नूर के दो टुकड़े हैं और शतपथ ब्रहमण - 4.1.13.19 - कहता है कि ‘जो वायु है वह इंद्र है और जो इंद्र है वह वायु है’। सच्चाई यह है जो तर्क हम पेश कर रहे हैं उसको निष्कासित करके संस्कृत का कोई भी ज्ञानी शतपथ के इस श्लोक का अर्थ नहीं समझा सकता। इसी प्रकार जो मुसलमान अहलेबैत के नूरानी स्वरूप पर यकीन रखते हैं वे वेद पढ़े बिना उनका परमात्मा और खुदा से रिश्ता नहीं पहचान सकते।
हिन्दुओं को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि वे प्राचीन समय से देवताओं को पहचानते थे और उनकी मानव रूप में आने की प्रतीक्षा कर रहे थे जब्कि मुसलमानों ने उन्हें बहुत बाद में देखा जब देवता मानव शरीर में पृथ्वी पर जीवन व्यतीत कर रहे थे।
शतपथ ब्रहमण का मंत्र जो हमने पढ़ा वह दोनों नूर - इंद्र और शिव - के बराबर होने का उल्लेख कर रहा है जब्कि मानव शरीर में आने पर उनमें से एक को दूसरे से बड़ा रोल दिया गया। यह बराबरी मौहम्मद ने भी बताई जब उन्होंने कहा कि मैं और अली एक ही नूर के दो टुकड़े हैं। मुसलमानों के लिए वेदों को पढ़े बिना इस राज को समझना मुश्किल है क्योंकि जब यह देवता अहलेबैत की शकल में मानव शरीर में थे तो उन्होंने मौहम्मद को ज्यादा बड़े काम करते देखा। आप को यह जानकर भी अचंभा होगा कि ब्रहदअराण्यका उपनिषद ने यह तक बता दिया है कि दोनों का एक ही नूर से संबंध होने के बावजूद एक को दूसरे से बड़ा रोल निभाने को मिला। एक ही नूर से दोनों नूर पैदा हुए और तमाम सृष्टि और जीवों की खिलकत में इनका रोल था। पांचवे भजन का चैथा मंत्र इस बात की पुष्टि करता है कि इंद्रदेव की शक्ति और नूर इस ब्रहमाण्ड में काम कर रही है। आगे चलकर मंत्र 6 से 9 कहता है कि हालांकि यह देवता इतने ताकतवर हैं कि उनकी शक्ति और नूर पूरे ब्रहमाण्ड को संचालित कर रही है, उनका ज्ञान केवल बुद्धिमान लोगों को ही मिलता है। भजन का गायक यह दुआ करता है कि उसको ज्ञान प्राप्त हो, वह अन्य गुण प्राप्त करे और नेक कर्म करे।
जैसा हम जानते हैं यह भजन इंद्रदेव को समर्पित है और इसमें उनको देवताओं का आका कहा गया है। प्रख्यात वेदिक जानकार सयानाचार्य ने इंद्र को स्वर्ग में मौजूद अन्य देवी देवताओं का आका कहा है जो सोम रस पीया करते हैं। विल्सन और ग्रिफिथ ने भी इसी प्रकार वर्णित किया है। अफसोस की बात यह है कि जिन देवताओं का विवरण तमाम वेदों में भरा पड़ा है आज हम उनको ही नहीं पहचानते।
ऋगवेद का छठा भजन साफ शब्दों में बताता है कि इंद्रदेव और मरूत मखः नामी स्थान पर मानव शरीर में आएंगे। उपनिषदों के अपने अध्ययन से मैंने सिद्ध किया है कि वायुदेव और मुख्य मरूत एक ही हैं। यह भजन साफ शब्दों में ऐसे समय की बात कर रहा है जब यह महान हस्तियां, जो दयावान और अहिंसा के पालक होंगी - मानव रूप में - पृथ्वी पर अपनी चमक बिखेरने आएंगी। इस भजन का दूसरा मंत्र तो यहां तक कह रहा है कि जब इंद्रदेव और मरूत मानव शरीर में धरती पर आएंगे तो इंद्र के दो चहीते पुत्र - अश्विन यानी हसनैन यानी हसन और हुसैन - भी मानव शरीर में जीवन व्यापन करने आएंगे।
इस मंत्र का अनुवाद प्रोफैसर मैक्स म्यूलर ने इस प्रकार किया हैः
They harness to the chariot on each side his (Indra’s) two favourite boys, the brown the bold, who can carry the hero.
(VEDIC HYMNS PART I.P.14)
जब हम अहलेबैत की जिन्दगी को देखते हैं तो कई बार ऐसा लगता है कि मानो पृथ्वी पर मानव शरीर में पैदा होने पर ये देवता वेदों में की गई भविष्यवाणियों को सच करने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। हम देखते हैं कि मौहम्मद के दोनों कांधों पर दो बच्चे बैठे हैं। एक तरफ हसन और दूसरी तरफ हुसैन। हसन और हुसैन को एक साथ हसनैन कहा जाता है। दोनों ने अपने नाना मौहम्मद की जुल्फें पकड़ रखी हैं। इस तरह मौहम्मद मदीना के बाजार से गुजर रहे हैं। किसी ने कहा वाह कितनी बेहतरीर सवारी है। पैगम्बर मौहम्मद ने क्हाः ऐसा नहीं कहो, यह कहो कितने बेहतरीन सवार हैं।
क्या ऋगवेद का यह मंत्र उसी घटना की ओर इशारा नहीं कर रहा?
आगे बढ़ते हुए मंत्र तीन में कहा जाता है कि किस प्रकार जब ज्ञान का नूर आएगा तो अज्ञानता का अंधेरा दूर हो जाएगा। आम आदमियों से भी कहा जाता है कि वे अपनी ही भलाई के लिए इन देवताओं का साथ दें और कहा जाता है कि इन देवों को प्रकाश के रूप में पैदा किया गया जब कोई प्रकाश नहीं था और इनको प्रकट रूप दिया गया जब किसी प्रकार का स्वरूप बनाया ही नहीं गया था। यह भी कहा जाता है कि वे सूर्योदय के समय से हैं। आप को ज्ञात होगा कि वेदों में जब ‘दिन’ का प्रयोग हुआ है तो इसके मायनी ईश्वर के एक दिन के है। लिखा है कि ईश्वर के एक दिन में 1000 बार मानवता को पैदा किया जाता है। विष्णु पुराण में यह भी लिखा है कि हम जिस आदम की औलाद हैं वह ईश्वर के इस दिन की 994वीं खिलकत है। वेद कह रहा है कि यह देवता इस दिन के प्रारंभ में पैदा किए गए थे और इस ईश्वरीय दिन के अंत में फिर ईश्वर के उसी manifest self में विलीन हो जाएंगे। कुरान भी यही कहता दिखाई देता है जब वह कहता है कि जब कायनात यानी सृष्टि समेट ली जाएगी तो कुछ नहीं रह जाएगा सिवाह वजहल्लाह यानी अल्लाह के चेहरे के। हम पहले भी कह चुके हैं कि वजहल्लाह और “manifest self of God” यानी विष्णु के एक ही मायनी हैं। इससे यह बात साबित होती है कि यह देवता पिछली 993 खिलकतों में भी वही कार्य कर रहे थे जो यह इस ईश्वरीय दिन की 994वीं खिलकत में कर रहे हैं। विष्णु पुराण तो यहां तक लिखता है कि पिछली 7 खिलकतों में इनको किन किन नामों से जाना जाता था।
मौहम्मद का कथन भी पुष्टि करता है कि आदम के पैदा होते समय उनका कोई न कोई रोल था। वह कहते हैं कि ‘‘मैं उस वक्त भी नबी था जब आदम को पानी और मिट्टी से पैदा किया जा रहा था।’’ कुरान भी पहले मनुष्य आदम की पैदाईश के समय कुछ दैवीय शक्तियों की मौजूदगी की पुष्टि करता है।
आईए देखें प्रोफैसर मैक्स म्यूलर ने इस मंत्र का अनुवाद कैसे किया हैः
Thou who createst light where there was no light and form. O men! Where there was no form, hast been born together with the dawns.
ग्रिफिथ ने इस मंत्र का इस प्रकार अनुवाद किया हैः
Thou making light where no light was, and form O men, where form was not, wast born together with the Dawn.
ग्रिफिथ ने साफ शब्दों में लिखा है कि इस मंत्र में देवताओं के सृष्टि के प्रारंभ में एक साथ जन्म लेने की बात हो रही है। इन अनुवादों से साफ है कि वेदों के विभिन्न अनुवादक अस्ली अर्थ के कितने करीब हैं। लेकिन इसके बावजूद इन देवताओं की पहचान से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण लिंक न होने के कारण अंधकार में भटक रहे हैं।
ब्रहदअराण्यका उपनिष्द भी साफ शब्दों में कहता है कि पैदाईश के समय से ही उस Manifest Self ने ईश्वर की इबादत शुरू कर दी थी और इस वजह से आगे की सृष्टि को बनाने और उसके संचालन की जिम्मेदारी इनको सौंप दी गई। ब्रहदअराण्यका बताता है कि इनको 14 क्षेत्रों का हाकिम बना दिया गया। उपनिष्दों में बड़ी बहसें हैं कि यह 14 क्षेत्र क्या हैं। यह हमारे शरीर के अन्दर के विभिन्न हिस्से हैं या इस सृष्टि के 14 हिस्से। इनकी पैदाईश के बाद समूची सृष्टि की पैदाईश हुई। चाहे चंद्रमा, सूरज, सितारे हों या मनुष्य और अन्य जीव, सबकी पैदाईश इन्हीं के कारण हुई। आप को हैरानी होगी यह जान कर मुसलमान हदीसे किसा पढ़ते हैं जिनमें अल्लाह साफ अल्फाज में कहता है कि यह चांद, यह सितारे, सूरज आदि सब अल्लाह ने इन अहलेबैत की मौहब्बत में पैदा किए।
ऋगवेद के इस भजन का चैथा मंत्र साफ शब्दों में कहता है कि यह मरूत छोटे बच्चों के रूप में इस धरती पर एक बार फिर पैदा होंगे। देखिए प्रोफैसर मैक्स म्यूलर इस मंत्र का कैसे अनुवाद करते हैंः
The Maruts according to their want assumed again the form of new born babes.
(V.H. PAGE 141)
क्या कोई शक बाकी रह जाता है कि वेद इंद्र और मरूत की नूरानी स्वरूप से मानव स्वरूप में पैदा होने की बात कर रहे हैं। पहले उनके नूरानी स्वरूप में पैदा होने की बात की गई थी और कहा गया था कि वे दिन के प्रारंभ में पैदा हुए। और अब बच्चों की शक्ल में पैदा होने की बात हो रही है। शब्द again पर गौर करें। यानी ‘फिर से’ पैदा होंगे, इस बार छोटे बच्चों की शक्ल में यानी मानव रूप में। पुराण और उपनिषद में अनेक बार कहा गया है कि यह एक छिपे हुए स्थान पर जन्म लेंगे। यह मंत्र वह जगह भी बताता है जहां यह पैदा होंगे। संस्कृत में ‘गुहा’ शब्द का प्रयोग हुआ है। संस्कृत के विद्वानों का मानना है कि इसके मायनी ‘मध्य स्थान’ या ‘छिपा हुआ स्थान’ होते हैं।
देखिए मैक्स म्यूलर कैसे अनुवाद करते हैंः
Thou O Indra, with the Swift Maruts who break through the even strong hold, hast found even in their hiding place the bright ones.
मैक्स म्यूलर सही अर्थ तो नहीं समझ पाए परन्तु साफ है कि ‘मध्य स्थान’ वह ‘छिपी’ हुई जगह है जहां यह मरूत मानवरूप में पैदा होंगे। आज भी आप यूटयूब पर “Kaaba as centre of earth” टाईप करें तो आपको कई फिल्में यह साबित करती हुई दिखाई दे जाएंगी कि काबा दुनिया का मध्य स्थान किस प्रकार है।
मंत्र 6 उन हस्तियों के बारे में है जो जन्म लेंगी। यहां भी वे ईश्वर की इबादत को चरम बिंदू तक ले जाएंगे। ग्रिफिथ का अनुवाद यह हैः
Worshipping even as they list, singers laud him who findeth wealth. The far-renowned, the mighty one.
छिपे हुए स्थान की बात करने के बाद, जो मध्य क्षेत्र में स्थित है, जहां इंद्र और मरूत मानव शरीर में जन्म लेंगे, जो बतौर नूर इस ईश्वरीय दिन के प्रारंभ में खल्क किए गए थे, मंत्र 8 साफ शब्दों में उस स्थान का नाम मखः बताता है जहां यह पैदा होंगे।
इस लेख में आप पहले पढ़ चुके हैं कि काबे को हिन्दु मंदिर साबित करता एक लेख कहता है कि ‘‘मुस्लिम शहरों मक्का और मदीना के नाम दरअस्ल संस्कृत शब्द मखः-मदीनी से बने हैं जिसका अर्थ होता है आग को पूजने वालों की धरती।’’ खेद का विषय यह है कि खुले रूप से शब्द ‘मखः’’ वेद में आने के बावजूद संस्कृत के ज्ञानियों ने इसको उस मक्का से नहीं जोड़ा जो अरब में स्थित है। प्रोफैसर मैक्स म्यूलर ने मखः का अनुवाद “sacrificer” किया है जब्कि ऋषि दयानंद सरसवती ने इसका अनुवाद ‘यग्न’ किया है। प्रोफैसर मैक्स म्यूलर ने यह तक कहा है कि दो स्थानों पर मखः का अर्थ ‘ईश्वर का दुश्मन’ के रूप में प्रयोग किया गया है।
इससे दो बातें साफ हो जाती हैं। पहले यह कि शब्द ‘मखः‘ वेदों में बार बार आया है और दूसरे यह कि सही अर्थ न समझ पाने के कारण अनुवादक अंधेरे में भटक रहे हैं और कभी कोई अनुवाद करते हैं कभी कुछ और।
हालांकि हमने इन्हीं अनुवादकों द्वारा विभिन्न मंत्रों के किए गए अनुवाद आप को दिखाए कि वह कैसे देवताओं के मानव शरीर में जन्म लेने की बात कर रहे थे और फिर छिपी हुई जगह की बात की और फिर शब्द ‘‘मखः’’ आया। मैक्स म्यूलर ने अगले मंत्र यानी मंत्र 9 का अनुवाद भी जिस प्रकार किया है उससे साफ हो जाता है कि इंद्र को याद किया जा रहा है जिनका नूर स्वर्ग में है जहां से वह नूर यहां धरती पर आएगा। देखिए मैक्स म्यूलर का अनुवादः
From Yonder, O traveler (Indra) come hither, or from the light of heaven, the singers all yearn for it.
क्या इससे यह साबित नहीं होता कि वेदों के लिखे जाने के समय के लोग इंद्रदेव और मरूत के मानव शरीर में जन्म लेने की दुआ कर रहे थे? इससे यह भी साबित होता है कि वह देवता वेद लिखे जाने के समय तक मानव शरीर में नहीं आए थे और आगे आने वाले समय में उनको आना था।
मंत्र 10 में इंद्रदेव को मुखातिब करके प्रार्थना की जा रही है, चाहे वह जहां भी हों। वह स्वर्ग में हो सकते हैं जैसे उस समय थे और धरती पर भी पैदा हो सकते हैं, हम हर हाल में उनसे ही मदद मांगते हैं। देखिए मैक्स म्यूलर का अनुवादः
We ask Indra for help from here, or from heaven, or from above the earth, or from the “Great sky.”
जो थोड़ी सी भी संस्कृत की जानकारी रखते हैं, मैं उन्हें आमंत्रित करता हूं कि इन मंत्रों का स्वयं अनुवाद करें। सच्चाई स्वयं आप के सामने आ जाएगी।
वेद में असंख्य मंत्र हैं जिनमें देवताओं से धरती पर आने की प्रार्थना की जा रही है परन्तु हम उनके सही अर्थ नहीं समझ पाए। सच्चाई यह है कि उस समय के लोग प्रतीक्षा कर रहे थे जब देवता मानवरूप में आएंगे ताकि वे उनके साथ हो सकें और ‘जब ज्ञान का नूर आए कि अज्ञानता के अंधकार को मिटा दे’ तो उनकी सहायता करें। यह मोक्ष का ज्ञान देने आएंगे ताकि जुलमत यानी अंधकार नष्ट हो सके।
अपनी बात को साबित करने के लिए हम अनेक सबूत दे सकते हैं लेकिन अभी हम को सैबी के प्रश्न का उत्तर देने के लिए लौटना है। यदि आप अधिक सबूत देखने के इच्छुक हैं तो मेरी पोस्ट ‘The True Content of the Vedas’ पढें।
सारांश में यदि हम बात करें तो ईश्वर का प्लान - जिसको हम बार बार कुरान, वेद, उपनिषद और गीता से साबित कर सकते हैं - यह है कि सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, निराकार खुदा ने - जिसको Absolute God या अल्लाह या ईश्वर या महेश कहा गया - ने जब चाहा कि खल्क करे तो उसने सबसे पहले Manifest Self -वजहल्लाह या अल्लाह का चेहरा या विष्णु - खल्क किया। इस Manifest Self ने पैदा होते ही ईश्वर यानी अल्लाह की इबादत शुरू कर दी। इसने खूब इबादत की और चाहा कि इबादत करने वाले ज्यादा हों तो ईश्वर ने आगे की खिलकत में इसका रोल पैदा कर दिया। इस Manifest Self का स्वर्ग के सातवें स्तर पर सिंहासन है। इससे साफ है कि मेराज की रात पैगम्बर मौहम्मद वजहल्लाह यानी विष्णु से मिलने गए थे। इसके बाद ब्रहमा यानी पहला नूर पैदा हुआ जो दो नूर में बंट गया जो पहले नूर के समान थे। और फिर एक के बाद एक 14 नूर पैदा हुए। कुरान में कहा गया है कि हमारी एक पैदाईश दूसरी पैदाईश के समान है। जिस प्रकार यह 14 नूर आसमान पर पैदा हुए थे ठीक उसी प्रकार यह नूर मानवरूप में धरती पर आए। नूर को मानव को राह दिखाने के लिए पैदा किया गया था। ईश्वर जानता था कि मानव की रचना इसलिए की गई है कि वह ईश्वर की इबादत करे। लेकिन उसने राह को इतना आसान नहीं रहने दिया। ईश्वर ने जुलमत की ताकत भी पैदा कर दी जो इंसान को भटकाने में लगी है। इंसान की जिम्मेदारी यह है कि वे रस्सी रूपी इन देवताओं के सहारे को पकड़ कर और अच्छे कर्म करते हुए इस दुनिया से निकल कर मोक्ष यानी निजात प्राप्त कर ले।
आज हमको कोई जानकारी नहीं है कि ब्रहमा का इंद्र से क्या रिश्ता है और इसी प्रकार इंद्र का मरूत से और इंद्र का शिव से क्या रिश्ता है। यदि आप हमारे साथ बने रहें तो हम जो कुछ कह रहे हैं उसका एक बार नहीं अनेक बार सबूत पेश कर देंगे। फिलहाल आप ऋगवेद का यह मंत्र देखें जिस में ब्रहमा और इंद्र दोनों का नाम आया है और बताएं कि दोनों का आपस में कोई रिश्ता है कि नहीं?
ब्राह्मणादिन्द्र राधसः पिबा सोममृतूँरनु।
तवे०ि सख्यमस्तृतम्।।
सच यही है कि ब्रहमा, विश्वदेव, ब्रहसपति, प्रजापति, इंद्र, वायु, शिव, मरूत आदि सब का एक दूसरे से रिश्ता है और सबका ईश्वर की इस खिलकत में बड़ा रोल है। यह कि देवता मानव आत्मा और परमात्मा के बीच रस्सी का काम करते हैं का उल्लेख हिन्दू और मुस्लिम किताबों में कई जगह मिल जाएगा। वेदों ने तो देवताओं को हमारे कार्मिक अंगों और इंद्रियों का शासक तक कहा है। उनको सम्पूर्ण ज्ञान का स्त्रोत कहा गया है। यह अफसोस की बात है कि वेद और उपनिषद के माध्यम से उन्हें बार बार पहचनवाए जाने के बावजूद आज हम जरा भी नहीं जानते कि ईश्वर की इस सृष्टि में देवताओं का रोल क्या है।
जगह जगह देवताओं को रस्सी कहा गया है। यह मोक्ष की रस्सी हैं। पढि़ए मेरा लेख ब्रहमण जनेउ क्यों पहनते हैं? गीता ने कहा कि इनका पृथ्वी पर मानवरूप में आना उस उल्टे वृक्ष के समान है जिसकी जड़ें स्वर्ग में हों परन्तु उसकी शाखाएं धरती पर आ जाएं। इनका मार्ग ही सीधा मार्ग है जिसपर चलकर मोक्ष प्राप्ति हो सकती है। जुलमत की ताकत जिसका काम ही इस मार्ग से भटकाना है हर समय लगी है कि हमको इनके मार्ग से ही भटका दे। यहां तक कि उसने इन मोक्षदाताओं की असलियत की जानकारी ही विलुप्त कर दी ताकि हम चक्कर काटते रहें परन्तु मोक्ष नहीं प्राप्त कर पाएं। यही कारण है कि चाहे ये देवताओं के रूप में हों या मानव शरीर में अहलेबेत के रूप मे, जुलमत की इस ताकत ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी कि इंसान इन को पहचान नहीं सके। हज में शैतान को पत्थर मार कर हम इसी कड़वी सच्चाई को समझने की कोशिश करते हैं।
आप जैसे जैसे अल्लाह के घर यानी बैतुल्लाह में रहने वाले लोगों यानी अहलेबैत को पहचानने के करीब आएंगे ताकि मोक्ष यानी निजात पा लें, जुलमत हर कोशिश करेगी कि आपको वहां से दूर कर दे। आपको जुलमत को शिकस्त देना होगी यदि आप चाहते हैं कि बैतुल्लाह और अहलेबैत के रास्ते से उस घर और अहलेबैत के खालिक अल्लाह यानी ईश्वर तक पहुंच सकें। अहलेबैत की एक फर्द शिव यानी अली को बैतुल्लाह यानी काबा में पैदा करके ईश्वर ने दिखा दिया कि इन अहलेबैत के रास्ते से ही मोक्ष यानी निजात मिल सकती है।
सिर्फ एक प्वाईंट और फिर हम सैबी के सवाल की तरफ आते हैं। एक समय वह था जब इंसान का दिमाग इतना विकसित नहीं था कि वह एक अदृष्य, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिशाली ईश्वर की कल्पना कर सके। आज के इस विकसित युग में हममें सलाहियत है कि हम अदृष्य चीजों की ताकत को समझ सकें। यही कारण है कि पुराने समय के इंसान के सामने देवताओं को मोक्षदाताओं यानी निजातदहिंदाओं के रूप में पेश किया गया। न केवल भारत में बल्कि उस समय की हर सभ्यता में - चाहे चीन हो, ग्रीस हो, मेसोपोटेमिया हो या मिस्र हो - इन देवताओं को प्रस्तुत किया गया। यही कारण है कि हर सभ्यता में हमें इन देवताओं के चिह्न मिल जाएंगे। हर सभ्यता में इन देवताओं के इर्द गिर्द अनेक गाथाएं और कहानियां जुड़ गईं और इनके कारण अलग अलग सभ्यताओं में उनके बारे में जो जानकारी हमें मिलती है वह समान है परन्तु कहीं कहीं भिन्न है। ईश्वर द्वारा यह जानकारी अनेक अवतारों और पैगम्बरों द्वारा न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया के लोगों तक पहुंचाई गई।
यही कारण है कि राधाकृष्ण लिखते हैं कि संतों ने एक इल्हामी कैफियत में वेदों की संरचना की थी। ईश्वर उनका मार्गदर्शन कर रहा था। स्वेतास्वतर उपनिष्द कहता है कि संत स्वेतास्वतर ने सत्य को देखा तप-प्रभाव और देवप्रसाद के कारण। यही कारण है कि हर इलाके में एक प्रकार की ही जानकारी हम तक पहुंची।
अरस्तु भी कहता था कि धर्म के मूल सिद्धांत हमेशा से एक ही हैं। एथेनागोरस का भी कहना है कि एक इल्हामी कैफियत में परमात्मा कुछ पवित्र मानव शरीरों को अपने आफिस के रूप में इस्तेमाल करने लगता है। परमात्मा उनके शरीर को साधन के रूप में इस्तेमाल करता है जैसे कोई बांसुरी वादक बांसुरी का प्रयोग करता है।
Athenagoras says:
“While entranced and deprived of their natural powers of reason by the influence of the Divine Spirit, they uttered that which was wrought in them, the spirit using them as its instrument as a flute-player might blow a flute.”
Apol. IX.
परमात्मा ने यही बांसुरी कभी कृष्ण के मुख से बजाई, कभी बुद्ध के मुख से, कभी यसूअ मसीह के मुख से और कभी मौहम्मद के मुख से। बांसुरी बजाने वाले - देवता - हर जमाने में एक ही रहे हैं। यह देवता Manifest Self यानी परमात्मा यानी वजहल्लाह यानी Face of God के इशारे पर चलते हैं। इनका काम तमाम मानवता को ईश्वर यानी अल्लाह यानी महेश के रास्ते पर लेकर आना है।
जब एक मार्ग दिखाया गया और लोग उस मार्ग से भटके तो फिर से पैगम्बरों द्वारा उस भटकाव को दूर करने की कोशिश की गई। उदाहरण के रूप में, जिन लोगों के पास वेद भेजे गये थे उन्हीं के पास राम, कृष्ण और बुद्ध को भेजा गया ताकि वेदिक शिक्षा से जो लोग भटक गए हैं उन्हें पुनः सही मार्ग पर लाया जाए। हर हर समय में जुलमत हमें सीधे रास्ते से भटकाने की कोशिश करती रही जब्कि नूर हमें उस मार्ग पर लगाने की कोशिश करता रहा। मार्ग एक था परन्तु लोग उस मार्ग से भटकते गए और हर भटकाव को एक धर्म का नाम दे दिया। नए मार्गदर्शक आए और जुलमत ने लोगों को उनके बताए मार्ग से भी भटका दिया। अधिकांश मौकों पर पैगम्बरों को मार डाला गया या कैद कर दिया गया। जिन्होंने अपने समय के पैगम्बरों की शिक्षा पर चलने की कोशिश की और कामयाब हुए उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। उनकी आत्मा इस पृथ्वी पर वास से मुक्त हो गई।
क्यूंकि हम आज भी इस पृथ्वी पर जीवन व्यापन कर रहे हैं, यह इस बात का सबूत है कि हमारी आत्मा आज तक उस स्तर तक नहीं पहुंच सकी है जो मोक्ष प्राप्ति के लिए जरूरी है। हमारी आत्माएं ढीट और हठीली साबित हुईं और उनसे जो अपेक्षा थी उसपर पूरी नहीं उतरीं। कलयुग की ऐसी हठीली आत्माओं के लिए आवश्यक हो गया कि एक नियमपुस्तक उन्हें दी जाए कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना। यही कारण है कि जब देवता मानवरूप में प्रस्तुत हुए तो हमें एक ऐसी नियमपुस्तक दी गई जिसमें क्या करना है और क्या नहीं विस्तार से बताया गया।
आईए अब सैबी के प्रश्नों को एक एक करके लेते हैं हालांकि यह जाहिर है कि चार में से तीन प्रश्नों के उत्तर हम अब तक दे चुके।
प्रश्न 1ः काबा के एक शिलालेख में महादेव और राजा विक्रामादित्य का उल्लेख मौजूद है।
प्रिय सैबी, हम आप को दिखा चुके हैं कि यह ईश्वर की प्लानिंग में था कि स्वर्ग में मौजूद तमाम देवतागण आने वाले किसी समय में एक के बाद एक मानव शरीर में “as new born babes” जन्म लेंगे। यह पहले से किताबों में लिखा था। विष्णु यानी Manifest Self यानी वजहल्लाह का इन देवताओं से रिश्ता साबित करने के लिए शिव यानी वायुदेव यानी अदित्य यानी मरूत ने चमत्कारी ढंग से काबा के प्रांगण में जन्म लिया। यह भी पहले से किताबों में वर्णित था। यदि पुस्तकों में इस हद तक निशानियां मौजूद थीं तो कोई अजूबा नहीं कि राजा विक्रमादित्य भी इसकी ओर आकर्षित हुए। जैसा कि हम जानते हैं कि वह बड़े शिव भक्त थे। लेकिन विक्रमादित्य के बाद और जब देवतागण वाकई मानव शरीर में पैदा हुए, इस बीच में जुलमत ने उनके बारे में ज्ञान को मिटा दिया। जुलमत कितना तेज काम करती है इसका अंदाजा इस बात से हो सकता है कि यसूअ मसीह सारी जिन्दगी कहते रहे कि सच्चाई की आत्मा अवतरित होने को है, इंसान का पुत्र आने को है - यानी वह साफ शब्दों में कह रहे थे कि जब देवता इंसानों के घरों में जन्म लेंगे - और अपने अनुयायियों से कहते थे कि उनकी शिक्षा को बनी इस्रायल की बिछड़ी भेड़ों के बाहर न ले जाएं क्योंकि हम ऐसा कर भी न चुकेंगे की इंसानों का बेटा आ जाएगा। यसूअ एलिया यानी शिव यानी अली की मदद मांग रहे थे जब उन्हें सूली पर चढ़ाया गया परन्तु लोगों ने नहीं पहचाना। उस समय से मात्र 500 सालों के भीतर मौहम्मद का जन्म हुआ परन्तु इतने समय में जुलमत ने यसूअ के मानने वाले अधिकांश लोगों को इतना बहका दिया था कि वह पहचान ही नहीं पाए कि जिसका वह इंतेजार कर रहे थे वह आ गया।
प्रश्न 2ः पैगम्बर मौहम्मद के एक चाचा जो उन्हें नबी नहीं मानते थे ने एक कविता ‘सैर-उल-ओकुल’’ में भारत को पृथ्वी पर सबसे पवित्र स्थान क्हा है। यह कविता इस्तांबुल की एक इस्लामिक लाईब्रेरी में मौजूद है।
प्रिय सैबी, भारत हमेशा संतों और ऋषियों की और सच्चाई और इंसाफ की पावन धरती रही है। पैगम्बर मौहम्मद ने यकीनन शिव के बारे में काव्य पढ़ा होगा। मुझे यकीन है कि ऐसी अनेक कविताएं उपलब्ध होंगी। लेकिन हमको याद रखना होगा कि हालांकि वेद ने मार्ग दिखा दिया था किन्तु उसके बावजूद राम को आकर वेदिक शिक्षा को पथ पर लाना पड़ा। वेद की ही समझ में आई त्रुटियों को दूर करने के लिए कृष्ण को आना पड़। यहां तक कि उन लोगों से लड़ना भी पड़ा जो अपने को वेदों का सबसे बड़ा मानने वाला समझते थे। दूसरे ऋषियों ने भी कोशिश की कि जनता को वेदों की सच्ची शिक्षा की ओर लाएं। परन्तु इनके मानने वाले सत्यमार्ग से बार बार भटकते रहे। विक्रमादित्य ने यकीनन अरब की भूमि की ओर संत और शिक्षक भेजे होंगे लेकिन बाद के मानने वाले वेदों की अस्ली शिक्षा से बहुत दूर भटक गए थे। यदि हम पैगम्बर मौहम्मद के जन्म के समय मक्का और अरब के लोगों का हाल देखें तो यह साफ हो जाएगा। वह भले ही शिव को याद रखे थे परन्तु वे बेगुनाहों का खून बहाते थे, वे अपनी बच्चियों को जिन्दा जमीन में दफन कर देते थे और हर प्रकार की बुराईयां जैसे जुआ, कई कई पत्नियां, गुलाम और दासी प्रथा, उनके साथ अमानवीय व्यवहार, यहां तक कि कोई बुराई नहीं थी जो उनमें नहीं पाई जाती थी। सारा समाज कबीलों में बटा था। सच तो यह है कि जुलमत को भी पता था कि नूर मक्का में ही अवतरित होगा और इसलिए उसने उस इलाके के लोगों को गहरे अंधकार में ढकेल दिया था। मुझे समझ नहीं आता कि आप क्यों इन लोगों को इज्जत की निगाह से देखते हैं; क्या केवल इसलिए कि वे शिव भक्त थे। याद रखिए, रावण भी अपने समय का सब से बड़ा शिव भक्त था परन्तु जब उस शिव से ही संबंध रखने वाला अवतार राम की शक्ल में आया तो उसने रावण का वध कर देने में भलाई समझी।
प्रश्न 3ः काबे की तीर्थयात्रा अरबों में पैगम्बर मौहम्मद के जन्म से पहले से होती थी। और हालांकि उन्होंने इस प्रथा को बदल कर मक्का से येरूश्लम की ओर इबादत का मरकज कर दिया लेकिन फिर इसे बदल कर काबे की ओर इबादत शुरू की और केवल मूर्तिपूजा को छोड़ कर हिन्दू और हिन्दुओं जैसे बुतपरस्तों की प्रथाओं को जारी रखा। यहां तक कि हज पर तुम जो कपड़े पहनते हो वे भी हिन्दु ऋषियों द्वारा पहने जा रहे कपड़ों के समान होते हैं।
उत्तरः प्रिय सैबी, जरा उन देवताओं के नाम तो देखिए जिनकी मूर्तियां काबे के अन्दर स्थापित थीं। जैसा हमने पहले लिखा है, काबे में डार यानी इंद्र यानी देवों के राजा की मूर्ती थी, उसमें दुआ शारा यानी देवेश्वर यानी देवों के आका की मूर्ती थी, उसमें बजर यानी वज्र यानी इंद्र के हथ्यार की मूर्ती थी, उसमें मनत यानी सोमनाथ यानी शिव जी की मूर्ती थी और इसी प्रकार अन्य मूर्तियां जो थीं उनमें शिव-ईश्वर की मूर्ती, देवी की मूर्ती आदि मौजूद थीं। सच्चाई यह है कि लोगों ने वेदों के देवताओं को ही पूजना प्रारंभ कर दिया था और कृृष्ण द्वारा देवताओं को भगवान के रूप में पूजने वालों के खिलाफ युद्ध छेड़े जाने के बावजूद अनेक लोग देवताओं की पूजा कर रहे थे। हम पहले भी लिख चुके हैं कि देवताओं की खिलकत का मकसद ईश्वर की इबादत करने वालों की संख्या में बढ़ौतरी था। हर समय में देवता बस यही करते रहे हैं। जब वे मानव शरीर में आए तो उन्हें मारा काटा जाता रहा, उन पर जुल्म ढाए गए, मारा पीटा गया और कैद में रखा गया लेकिन वे ईश्वर की ऐसी इबादत करने में जुटे रहे जैसी किसी ने न की हो। ईश्वर के सामने नतमस्तक होने के जो तरीके इन्होंने बताए हैं वे रूहानियत की चरम सीमा हैं। जुलमत ने इतना बहका दिया था कि अरब के लोग उन देवताओं को पहचान ही नहीं पाए हालांकि वे उनके बीच में रहने आ गए थे। जब वे स्वयं प्रत्यक्ष में आ गए थे तो उनकी मूर्तियों को बचाए रखने का कोई औचित्य नहीं था। यह कैसे मुमकिन था कि अहलेबैत अपने ही विभिन्न नामों की मूर्ती को लगे रहने देते और उसकी पूजा होते रहने देते जब्कि उनका मकसद ईश्वर की इबादत की ओर इंसानों को लेकर जाना है। इसलिए काबे से तमाम मूर्तियां हटाई गईं। अहलेबैत का संबंध काबे से बना रहा।
सैबी जी आप का चैथा प्रश्न अपने आप में एक बड़ा विषय है इसलिए इसका उत्तर मैं एक अलग लेख में देने की कोशिश करूंगा।
फेसबुक पर मेरे मित्र प्रिंस महाजन इस्लाम और मुसलमानों को लेकर मन की बात लिखते हैं। यह सत्य की खोज हेतु उनकी जिज्ञासा को दर्शाता है। मेरे एक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए प्रिंस महाजन ने लिखाः-
‘‘मक्का को दुनिया इस्लाम का तीर्थस्थल मानते हैं दरअसल उसके बारे में कुछ लोगों का मानना है कि आज से हजारों साल पहले वह हिंदुओं का तीर्थस्थल था। कहा जाता है कि यहां भगवान मक्केश्वर महादेव का मंदिर हुआ करता था। कुछ लोगों का यह दावा है कि वहां पर आज भी महादेव का शिवलिंग मौजूद है। एक मान्यता के अनुसार जो भी मुस्लिम वहां हज के लिए जाता है वो वहां संगे अस्वाद मानकर इसी शिवलिंग को चूमते हैं। ये यहां कहां से आया - इस शिवलिंग के विराजमान होने के पीछे जो कथा है वो ये है कि भोलेनाथ ने रावण की तपस्या से खुश होकर लड़ाई जीतने का आशीर्वाद देते हुए ये शिवलिंग दिया और कहा कि इसे जहां भी तुम धरती पर रखोगे ये वहीं सदा-सदा के लिए स्थापित हो जाएगा। जब रावण आसमान के रास्ते अपने महल लंका की ओर जा रहा था तो रास्ते में उसे अचानक पेशाब आई जिसके चलते उसे वह शिवलिंग किसी को पकड़वाना पड़ा। जिसे वह शिवलिंग पकड़ने के लिए दिया वो देवताओं के ही पक्ष का था क्योंकि ये शिवलिंग यदि लंका में स्थापित हो जाता तो देवता रावण से कभी विजयी नहीं होते। इसलिए ये शिवलिंग रावण से लेकर उसी स्थान पर रखना पड़ा और ये शिवलिंग हमेशा के लिए यहां स्थापित हो गया। ये जगह और कोई नहीं मक्का ही थी। शिव की संगिनी गंगा भी यहां मौजूद है- भगवान शिव और गंगा का साथ एक रहा है। जहां शिव होंगे वहां पावन गंगा और चंद्रमा अवश्य मौजूद होंगे। ठीक इसी तरह काबा में एक झील भी बहती है। जिसके पानी को यहां के लोग बहुत ही पाक मानते हैं। जिसे ये अबे जम-जम कहते हैं, जिसका अर्थ पाक होता है।’’
प्रिंस महाजन जी, एक और पोस्ट में मैंने लिखा था कि वेद भी हम मुसलमानों की ही किताब है, भले ही मुसलमान मानें या नहीं, तो आप को अचंभा हुआ था। आप का यह लेख दर्शाता है कि देवता भी चाहते थे कि तीर्थस्थल वहीं पर स्थापित हो जहां अहलेबैत के नूर को मानव शरीर में अवतरित होना था। यही तो मैं भी अपने लेखों में बार बार कह रहा हूं कि सारे वेद हम को यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि दिव्य अर्थात नूर से जो देवता अर्थात 14 मनु बने थे, वे अलग अलग समय में धरती पर मानव शरीर में अवतरित होते रहे और आखिरकार 14 के 14 एक के बाद एक अरब की धरती पर मानव शरीर में अवतरित हुए और अहलेबैत कहलाए।
काबे और शिव मंदिर को लेकर जो प्रश्न आप ने किया है यही प्रश्न दिसम्बर 2013 में मेरे मित्र सैबी गांगुली ने किया था। उस समय मैं ने जो उत्तर दिया था वह मैं आप के लिए दुबारा पोस्ट कर रहा हूं। पढि़ए पहले सैबी गांगुली का प्रश्न और फिर मेरा उत्तर। उत्तर लंबा हो जाने का खेद है।
मेरे मित्र सैबी गांगुली ने सवाल किया था कि ‘‘मैं पूछना चाहता हूं कि आप बताएं किः-
1. काबा के एक शिलालेख में महादेव और राजा विक्रामादित्य का उल्लेख
2. पैगम्बर मौहम्मद के एक चाचा जो उन्हें नबी नहीं मानते थे ने एक कविता ‘सैर-उल-ओकुल’’ में भारत को पृथ्वी पर सबसे पवित्र स्थान क्हा है। यह कविता इस्तांबुल की एक इस्लामिक लाईब्रेरी में मौजूद है।
3. काबे की तीर्थयात्रा अरबों में पैगम्बर मौहम्मद के जन्म से पहले से होती थी। और हालांकि उन्होंने इस प्रथा को बदल कर मक्का से येरूश्लम की ओर इबादत का मरकज कर दिया लेकिन फिर इसे बदल कर काबे की ओर इबादत शुरू की और केवल मूर्तिपूजा को छोड़ कर हिन्दू और हिन्दुओं जैसे बुतपरस्तों की प्रथाओं को जारी रखा। यहां तक कि हज पर तुम जो कपड़े पहनते हो वे भी हिन्दु ऋषियों द्वारा पहने जा रहे कपड़ों के समान होते हैं।
4. किन अकली दलीलों की बुनियाद पर आप कहते हैं कि कुरान जो आज हम जानते हैं वह वही है जो अल्लाह ने जिबरील के माध्यम से पैगम्बर मौहम्मद को बताया था? आप जानते हैं कि कई कुरान प्रचलित थे जिन्हें खलीफा उस्मान ने जलवा दिया और केवल एक ही कुरान रहने दिया जिस के कारण आएशा गुस्सा हो गईं और आखिरकार उस्मान को इसी कारण मारा गया। इस वजह से हमें पता नहीं है कि असली कुरान कौन सा था।’’
मेरे प्यारे सैबी,
इससे पहले कि मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देना शुरू करूं, हर प्वाईंट का अलग अलग जैसा कि आप चाहते हैं, मैं चाहता हूं कि आप मेरे फेसबुक पेज के स्लोगन की ओर जाएं जो कहता है कि सारी इंसानियत का खुदा एक ही है और हम उसकी इबादत के लिए पैदा किये गये हैं। सारे धर्म दरअस्ल उस एक सीधे रास्ते को न समझ पाने और उससे भटक कर बने हैं जो इस काएनात यानी सृष्टि के एक खुदा तक हम को पहुंचाता था।’
क्योंकि आपके चार सवालों में से एक सवाल अरब में पैगम्बर मौहम्मद के आने से पहले वेदिक धर्म के पालन की ओर इशारा करता है और आप महादेव का काबे से रिश्ता बताते हैं और कहते हैं कि काबा दरअस्ल हिन्दुओं का मंदिर था जिसमें हिन्दू भगवानों की मूर्तियां रखी थीं और पैगम्बर मौहम्मद के चाचा का उल्लेख करते हैं जो शिव के भक्त थे, मैं इस विषय को थोड़ा और बढ़ाना चाहूंगा ताकि वे प्वाईंट भी इसमें सम्मिलित हो जाएं जो कई दूसरे लोग काबे और मक्के से हिन्दू रिश्ते को जोड़ते हुए कहते हैं।
लेकिन कुछ भी लिखने से पहले मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि जो भी अपने धर्म को दूसरे धर्म पर से श्रेष्ठ मानता है और चाहता है कि तमाम दूसरे धर्मों के मानने वाले उसके धर्म को ही सही मान लें वह स्वयं ईगो का शिकार है और अकल का इस्तेमाल करके ईश्वर के रास्ते को पहचानने और उसपर चलने में रूचि नहीं रखता। यदि आप सत्य मार्ग को पहचानना चाहते हैं तो आपको इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि आप हर बात को अकल की कसौटी पर परखेंगे और यदि पहले से बनी मान्यताएं टूटती नजर आएं तो उनका त्याग करने को भी तैयार रहेंगे। मैं मौहम्मद अलवी यदि सत्यमार्ग को पहचान सका तो केवल इसलिए कि मैंने बचपन से पैदा की गई मान्यताओं में बंध कर सत्यमार्ग की तलाश करने की कोशिश नहीं की और हर वह किताब जिसको उसके अनुयायी आसमानी मानते हैं उसको मैंने अपनी किताब समझ कर पढ़ने की कोशिश की।
काबा और मक्का का महादेव और वेदों से रिश्ता
बहुतेरे हिन्दू कहते हैं कि पैगम्बर मौहम्मद और इस्लाम के आने से कई सदियों पहले अरब यानी अरबिस्तान वैदिक सभ्यता का गढ़ था। वह यह भी कहते हैं कि पैगम्बर मौहम्मद और इस्लाम इस अजीम सभ्यता के बिखरने का कारण बने।
यह कहा जाता है कि अरबिस्तान संस्कृत शब्द अर्वस्थान का बिगड़ा रूप है जिसका अर्थ होता है ‘घोड़ों का स्थान’ क्योंकि उस इलाके के लोग बड़े शानदार घोड़े रखा करते थे। ‘अर्व’ मतलब ‘घोड़ा’ और ‘स्थान’ मतलब ‘जगह’। यह भी क्हा जाता है कि वहां रहने वाले लोग सैमिटिक थे जो संस्कृत शब्द स्मृतिक से बना है। उस समय के अरब वेदिक स्मृति जैसे मनुस्मृति को मानते थे और यही शब्द बिगड़ कर सैमिटिक हो गया।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उस समय उनकी भाषा संस्कृत थी जो बिगड़ कर अरबी भाषा हो गई। इसका सबूत यह है कि संस्कृत से लिए गये हजारों शब्द आज भी अरबी भाषा में पाये जाते हैं। इस विषय पर अरबों का मानना है कि वे सैमिटिक जरूर हैं परन्तु उनकी जबान अरबी ही अस्ल जबान थी जो बिगड़ कर संस्कृत हो गयी। इसके सबूत में वे कहते हैं कि आर्य लोग अरब की ओर से हिन्दुस्तान में दाखिल हुए थे। पैगम्बर मौहम्मद का समय आने तक अरबों ने अपनी जबान यानी भाषा को इतना विकसित कर लिया था कि वे अपने आगे सारे विश्व के लोगों को अजम यानी गूंगा कहा करते थे। वे इस पर गर्व किया करते थे और अरब रोजमर्रा की जबान में भी कविता की तर्ज पर बात किया करते थे। इस बहस को अलग रखते हुए हम इस नतीजे पर तो जरूर पहुंच सकते हैं कि अरबी और संस्कृत भाषा का स्त्रोत एक ही है और दोनों जबानों में अनगिनत समानताएं आज भी देखी जा सकती हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि उस समय के लोग भारत को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भूमि के रूप में देखते थे। उस समय की एक कविता चारों वेदों का भी उल्लेख करती है।
"Aya muwarekal araj yushaiya noha
minar HIND-e
Wa aradakallaha
manyonaifail jikaratun"
‘हे हिन्द की दिव्य भूमि कैसी धन्य तू है क्यूंकि तुम्हें चुना गया है परमेश्वर द्वारा, तू ज्ञान की धनी है।’
"Wahalatijali Yatun ainana sahabi
akha-atun jikra Wahajayhi yonajjalur
-rasu minal HINDATUN "
‘वह ईश्वरीय ज्ञान जो चार ज्योतियों के माध्यम से इतने तेज के साथ चमकता है जिसको भारतीय संतों ने चैगुना ज्योतिवान कर दिया है।’
"Yakuloonallaha ya ahal araf alameen
kullahum
Fattabe-u jikaratul VEDA bukkun
malam yonajjaylatun"
‘ईश्वर चाहता है कि सभी मनुष्य वेदों में दिखाये गये दिव्य पथ का अनुसरण करें।’
"Wahowa alamus SAMA wal YAJUR
minallahay Tanajeelan
Fa-e-noma ya akhigo mutiabay-an
Yobassheriyona jatun"
‘नूरानी ज्ञान से सम्पूर्ण सम और यजुर मनुष्य को दिये गये हैं, इसलिए भाईयों वेदों का सम्मान और अनुसरण करो जो मोक्ष यानी निजात की राह दिखाने वाले हैं।’
"Wa-isa nain huma RIG ATHAR nasayhin
Ka-a-Khuwatun
Wa asant Ala-udan wabowa masha -e-ratun"
‘दो अन्य ऋग और अथर हमें सिखाते हैं भाईचारा और यकजहती, जिनके नूर की छाया में आकर जुलमत यानी अंधकार हमेशा के लिये दूर हो जाता है।’
यह कविता लबी बिन अख्ताब बिन तुरफा ने लिखी थी जो अरब में 1850 ईसा पूर्व के लगभग रहता था। यह पैगम्बर मौहम्मद से करीब 2300 साल पूर्व था। यह कविता सैर उल ओकुल में मौजूद है। इसका 1742 ईस्वी में तुरकी के सुलतान सलीम के हुक्म पर संकलन किया गया था और यह तुरकी के इस्तांबुल शहर की मकतबे सुलतानिया लाईब्रेरी में मौजूद है।
यह कविता सबूत के रूप में पेश की जाती है कि वेद ही वे आसमानी किताबें थीं जिनको 1800 ईसा पूर्व के अरब लोग मानते थे। सैर उल ओकुल के पृष्ठ 315 पर राजा विक्रामादित्य के शिलालेख का उल्लेख है जो स्वर्ण प्लेट पर लिखकर मक्का में काबा के अन्दर लगा हुआ था। यह कविता जिररहम बिनतोई द्वारा लिखी गयी है जो पैगम्बर मौहम्मद से 165 वर्ष पूर्व रहता था और यह राजा विक्रामादित्य की तारीफ यानी प्रशंसा में लिखी गयी है जो बिनतोई से करीब 500 साल पहले थे। इस शिलालेख का अनुवाद यह हैः-
‘किसमत वाले हैं वे जो राजा विक्रम के राज्य में पैदा हुए और जिन्दगी गुजारी। वह एक महान, उदार और कर्तव्य परायण शासक था जो प्रजा के कल्याण के लिये समर्पित था। लेकिन उस समय हम अरब ईश्वर को भुलाये, कामुक सुख में खोये हुये थे। साजिश रचना और जुल्म करना आम बात थी। अज्ञान का अंधकार हमारे देश पर छा चुका था। जिस प्रकार एक भेड़ का बच्चा क्रूर भेडि़ये के पंजे में अपने जीवन के लिये संघर्ष करता है हम अरबों को अंधेरे ने जकड़ा हुआ था। समूचे देश को अंधेरे ने जकड़ा हुआ था जो इतना गहरा था जैसे नये चंाद की रात को होता है। परन्तु वर्तमान सुबह और ज्ञान की सुखद रौशनी महान राजा विक्रमादित्य की कोशिशों का परिणाम था जिनकी उदार निगाहों से हम विदेशी भी बचे नहीं रहे। उन्होंने हमारे बीच अपने पवित्र धर्म को फैलाया और हमारे बीच उन विद्वानों को भेजा जिनकी चमक उनके देश से हमारे देश को प्रजव्लित करती थी। उन विद्वानों का परोपकार था कि हम एक बार फिर ईश्वर की उपस्थिति को पहचान पाये; उन्होंने खुदा की पवित्र उपस्थिति से हम को रूशिनास कराया और हम को सत्य मार्ग पर लगाया। वे अपने देश से हमारे देश विक्रमादित्य के हुक्म पर आये थे ताकि अपने धर्म का प्रचार कर सकें और हमें शिक्षित कर सकें।’
इस शिलालेख से निम्नलिखित निष्कर्श निकाले जा सकते हैंः-
1. प्राचीन भारतीयों ने अरब की पूर्वी सरहदों तक अपने साम्राज्य को फैला लिया था और विक्रामादित्य पहला भारतीय राजा था जिसने अरब को अपने साम्राज्य में शामिल किया।
2. अरबों का उससे पहले जो भी धर्म रहा हो, विक्रामादित्य ने वेदों पर आधारित धर्म का अरब में न केवल प्रचार किया बल्कि फैलाने में सफल रहा।
3. भारतीय विद्वानों से यहां की कला और विज्ञान का ज्ञान अरबों को सीधे प्रदान करने के लिए अकादमियों और सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना की। इसलिए यह विश्वास कि अरबों ने अपने अथक प्रयासों से अपने आप को भारतीय ज्ञान से अवगत कराया गलत है।
राजा विक्रमादित्य को महादेव -शिव- के लिए अपनी महान भक्ति के लिए जाना चाहता था। भारत का उज्जैन शहर जो विक्रमादित्य की राजधानी थी महांकाल यानी शंकर यानी शिव के मंदिर के लिये प्रसिद्ध है जिसको विक्रमादित्य ने बनवाया था। विक्रमादित्य के काबा में शिलालेख के अनुसार विक्रमादित्य ने अरब में वैदिक धर्म का प्रसार किया था। इससे जाहिर होता है कि अरब दुनिया वैदिक देवी देवताओं के बारे में अवगत हुई होगी। यह भी कहा जाता है कि आज तक काबे की दीवार पर कई शिलालेख मौजूद हैं जिन में कुछ संस्कृत में हैं पर वे क्या हैं इसके अध्ययन की किसी को अनुमति नहीं दी जाती। यह भी कहा जाता है कि इनमें से कुछ शिलालेखों पर गीता के पद लिखे हैं।
यह भी कहा जाता है कि उमर बिन हश्शाम जो पैगम्बर मौहम्मद के चाचा थे शिव भक्त थे।
अपनी पुस्तक औरिजींस में सर डब्लू डरम्मंड लिखते हैंः
‘जब अब्राहम को खुदा की ओर से संदेश मिला, उस समय तक Tsabaism समूचे विश्व का धर्म था; उनके सिद्धांत शायद विश्व की तमाम सभ्यताओं में फैले हुये थे।’
डरम्मंड का मानना है कि Tsabaism दरअस्ल Shaivism शब्द का बिगड़ा रूप है। पृष्ठ 439 पर सर डरम्मंड इस्लाम से पहले के अरबों के खुदाओं के नाम लिखते हैं जो उन 360 बुतों में थे जिनको पैगम्बर मौहम्मद ने फतहे मक्का के बाद काबा से बाहर कर दिया था। कुछ बुतों के अरबी, संस्कृत और अंग्रेजी नाम निम्नलिखित हैंः-
Arabic Sanskrit English
Al-Dsaizan Shani Saturn
Al-Ozi or Ozza Oorja Divine energy
Al-Sharak Shukra Venus
Auds Uddhav -
Bag Bhagwan God
Bajar Vajra Indra's thunderbolt
Kabar Kuber God of wealth
Dar Indra King of gods
Dua Shara Deveshwar Lord of the gods
Habal Bahubali Lord of strength
Madan Madan God of love
Manaph Manu First Man
Manat Somnath Lord Shiv
Obodes Bhoodev Earth
Razeah Rajesh King of kings
Sair Shree Goddess of wealth
Sakiah Shakrah Indra
Sawara Shiva Eshwar God Shiva
Yauk Yaksha Divine being
Wad Budh Mercury
यह भी दावा किया जाता है कि काबा पूर्व में वेदिक मंदिर था। प्राचीन वेदिक शास्त्र हरिहरेश्वर महातमया कहता है कि लार्ड विष्णू के नक्शेकदम मक्का को पाकीजगी बख्श्ते हैं। यह भी कहा जाता है कि मुसलमान काबा को हरम कहते हैं जो संस्कृत शब्द हरियम से बना है जिसका अर्थ लार्ड हरि अर्थात लार्ड विष्णू का स्थान है। प्रासंगिक छंद पढि़येः-
"Ekam Padam Gayayantu
MAKKAYAANTU Dwitiyakam
Tritiyam Sthapitam
Divyam Muktyai Shuklasya Sannidhau"
यह भी दावा किया जाता है कि जब पैगम्बर मौहम्मद और अली ने काबा से बुतों को बाहर किया तो उन्होंने एक काला पत्थर - संगे असवद - को वैसे ही छोड़ दिया। यह कहा जाता है कि काला पत्थर शिव का निशान है और इसी कारण इसको छोड़ दिया गया जो आज भी काबा की दक्षिण पूर्वी दीवार के पास मौजूद है।
एक अन्य जगह लिखा है कि ‘‘विश्व भर से मुसलमान काबा में मकामे इब्राहीम की जियारत करने आते हैं। यह दरअस्ल ब्रहमा की कुर्सी है। शब्द इब्राहीम दरअस्ल ब्रहमा का बिगड़ा रूप है। अष्टकोणीय ग्रिल जो कि एक वेदिक डिजाईन है उन पाक निशानों को महफूज करते हैं; यह 2000 मिलियन वर्ष पहले इस सृष्टि की रचना को दर्शाता है। मुसलमानों के कब्जे में आने से पूर्व यह वेदिक ट्र्नििटी का एक अंतरराष्ट्र्ीय मंदिर था।’
यही लेख कहता हैः ‘‘मुस्लिम शहरों मक्का और मदीना के नाम दरअस्ल संस्कृत शब्द मखः-मदीनी से बने हैं जिसका अर्थ होता है आग को पूजने वालों की धरती। इन शहरों के प्राचीन नाम माहकोरव और यस्तरब थे जो संस्कृत शब्द महादेव और यात्रा-स्थान से बने हैं।
यह लेख आगे कहता हैः ‘‘एनसिक्लाईपीडिया इस्लामिया इसको मानता है जब वह कहता हैः ‘मौहम्मद के दादा और चाचा आदि काबा के वंशानुगत पुजारी थे जिसमें 360 बुत रखे थे!’’ और लिखता हैः ‘‘हमें यह तो पता ही है कि काबा में पूजा की जो केंद्रीय वस्तु बचती है वह शिवलिंग है। इसको वहां इसलिए रहने दिया गया क्योंकि यह मौहम्मद के परिवार का चेहराविहीन परिवारिक देवता था। लार्ड शिव का एक नाम महादेव है जिसके अर्थ होते हैं ‘देवों का देव’ और इसलिए यह मुमकिन है कि मुहम्मद का नाम महादेव से बना हो। यह संभव दिखाई देता है क्योंकि अरबों में आज भी महादेवी संप्रदाय है।’’
मौहम्मद अलवी यहां से लिखना प्रारंभ करता हैः यह वो तर्क हैं जो दिये जाते हैं यह साबित करने के लिए कि वैदिक संस्कृति अरबिस्तान तक फैली हुई थी और काबा दरअस्ल हिन्दू मंदिर था। मेरा मानना है कि यदि काबा भारत के समीप या भारत में होता और मौहम्मद ने अपनी शिक्षा को काबा से प्रारंभ किया होता जैसा कि उन्होंने किया, तो इतने सारे रिश्ते जो काबा और मौहम्मद के पूर्वजों को वैदिक धर्म से जोड़ते हैं, हम भारतीयों ने अवश्य ही मौहम्मद को अपनों में से एक मान लिया होता, जैसे वे महावीर, बुद्ध और नानक को मानते हैं। आज भी तमाम भारतवासी महावीर, बुद्ध और नानक को इज्जत से देखते हैं हालांकि इन तीनों ने जिस मार्ग को दिखाया वह हिन्दुओं से निकल कर अलग धर्म बन गया। इन धर्मों के मानने वाले कोई कसर नहीं छोड़ते यह बताने के लिए कि वे अलग धर्म हैं, हिन्दुओं से अलग हैं, परन्तु इन धर्मों के स्थापकों को हिन्दु आज भी आदर से देखते हैं। यहां तक कि साई बाबा को, जिनके मानने वालों ने धीरे धीरे एक पूरे पंथ की स्थापना कर दी जो कि सनातन धर्म से बिलकुल भिन्न है, को भी अपना ही मानते हैं। परन्तु क्या कारण है कि मौहम्मद को एक खलनायक के रूप में चित्रित किया जाता है जिन्होंने काबा से जो एक हिन्दु मंदिर था मूर्तियों को निकाल कर मुस्लिम पूजा स्थल बना डाला? कृष्ण ने भी तो यही किया था जो मौहम्मद ने किया। कृष्ण ने उन लोगों के खिलाफ युद्ध लड़ा था जो वेदिक देवताओं की पूजा करने लगे थे। इसके क्या कारण हैं इसपर हम बाद में वापिस आयेंगे। इस समय हम काबा और मौहम्मद के विषय में हिन्दूओं में प्रचलित मान्यताओं की बात कर रहे हैं इसलिए अपनी बात को साबित करने के लिए हम हिन्दुओं की ही किताबों - वेद, उपनिषद और गीता - का अधिक सहारा लेंगे।
सच्चाई यह है कि जो कुछ भी उपर लिखा गया है वह मौहम्मद अलवी ने वेद, उपनिषद और गीता को जिस तरह समझा पूरी तरह उसके अनुरूप है। अपने अध्ययन और अनुसंधान के बल पर मैं बार बार साबित कर रहा हूं कि वेदों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि कुल 14 देवता हैं जिनमें 13 देव और 1 देवी हैं और यही 14 मनु भी हैं जिनके केवल 7 नाम हैं; इनको आने वाले समय में एक के बाद एक मानव शरीर में पृथ्वी पर आना था। देवता शब्द ‘दिव्य’ यानी ‘नूर’ से बना है। इन देवताओं का खुदा की इस सृष्टि मे बतौर नूर बहुत ही महान रोल है; यही ईष्वर यानी अल्लाह की इस सृष्टि को चलाने वाले हैं। वेदों ने इनके नाम नहीं बताये लेकिन पर्याप्त सबूत छोड़ दिये हैं कि वेदों के पढ़ने वाले पहचान लें कि यह ईश्वर की ओर से नियुक्त पथप्रदर्शक कब और कहां पर मानव शरीर में आएंगे। अधिक जानकारी के लिए मेरी पोस्ट “The True Content of the Vedas” पढें। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब मैं वेदों से यही साबित करूं तो आप में से कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि मैं अपनी मर्जी से वेदों में मौहम्मद की मौजूदगी साबित कर रहा हूं जब्कि ऐसा है नहीं और दूसरे समय पर आप में से ही कुछ लोग कहते हैं कि वैदिक शास्त्र हरिहरेश्वर महातमया कहता है कि लार्ड विष्णू के नक्शेकदम मक्का को पाकीजगी बख्श्ते हैं। मैंने अपने एक लेख में ऋगवेद से दिखाया कि वह साफ शब्दों में कह रहा है कि देवता जिस पवित्र भूमि पर मानव शरीर में आएंगे उसका नाम मखः है। वेद उस स्थान को middle country अर्थात मध्य भूमि बताता है और कहता है कि वह secret place अर्थात छिपा हुआ स्थान होगा। अरब से ज्यादा छिपी हुई जगह कौन हो सकती थी जो उस समय के तमाम मुख्य मार्गों से परे बसा एक स्थान था जहां जाने के लिए रेगिस्तान से गुजरना पड़ता था। मक्का के इलाके को आज भी middle east कहा जाता है परन्तु अमरीका की खोज के पहले यह उस समय की जानी मानी धरती के केंद्र में स्थित था। यह भी कहा जाता है कि जिस समय धरती पर केवल पानी था उस समय जिस स्थान से धरती जमना शुरू हुई थी वह स्थान मक्का है।
जैसा कि हमने देखा है कि वैदिक शास्त्र हरिहरेश्वर महातमया को सबूत के रूप में पेश किया जाता है कि काबा एक हिन्दू मंदिर था। यह कहा जाता है कि यह शास्त्र बताता है कि लार्ड विष्णू के नक्शेकदम मक्का को पाकीजगी बख्श्ते हैं। प्रासंगिक छंद कहता हैः
"Ekam Padam Gayayantu
MAKKAYAANTU Dwitiyakam
Tritiyam Sthapitam
Divyam Muktyai Shuklasya Sannidhau"
जिसको संस्कृत नहीं आती उसको भी इस छंद में साफ तौर पर दिखाई दे जायेगा कि लार्ड विष्णू के नक्शेकदम देवताओं यानी नूरानी हस्तियों के रूप में - देखिये शब्द ‘दिवयम’ यानी नूर - मनुष्य शरीर में जन्म लेंगे।
एक और आसमानी किताब, कुरान, ने मक्का को बैतुल्लाह अर्थात खुदा का घर कहा है और जो 14 नूरानी हस्तियां काबा के करीब मानव शरीर में जन्म लेंगी उनको अहलेबैत - यानी खुदा के ‘घर के लोग’ बताया है और मैं बार बार यह साबित करने की कोशिश कर रहा हूं कि विष्णू के अंग्रेजी में मायनी Manifest Self के होते हैं जिसको अरबी में कुरान ने वजहल्लाह अर्थात अल्लाह का चेहरा कहा। इससे अहलेबैत का विष्णू यानी वजहल्लाह से रिश्ता साबित होता है।
मैंने उपनिषद, वेद और गीता से अनेक उदाहरण दिए हैं और अनगिनत और दे सकता हूं यह साबित करने के लिए कि देवताओं को आने वाले समय में धरती पर अवतरित होना था; उन्होंने मक्का के पास मानव शरीर में जन्म लिया और अहलेबैत कहलाए। ऋगवेद पुस्तक एक का पांचवां और छठा भजन उदाहरण के रूप में पेश है।
यह भजन इंद्रदेव को समर्पित है। इस भजन का पहला मंत्र स्पष्ट रूप से कहता है कि जो कोई भी प्रशंसा के योग्य बनने की इच्छा रखता है, एक साथ बैठे और इंद्रदेव की महिमा गाए। ऐसा करने वाले को - मोक्ष के माध्यम से - मुक्ति मिलेगी।
यह इंद्रदेव का मोक्ष यानी मुक्ति में रोल एक बार फिर दर्शाता है। आज जिन लोगों को पता ही नहीं इंद्रदेव कौन हैं वे मुक्ति कैसे पाएंगे। मैं साबित करता आ रहा हूं कि इंद्रदेव जब मानव शरीर में आए तो मौहम्मद कहलाए। शब्द ‘मौहम्मद’ का अर्थ है ‘जिसकी प्रशंसा की जाए’ और वेद कहता है कि यदि आप प्रशंसा के योग्य बनने की इच्छा रखते हैं तो इंद्रदेव की प्रशंसा के गान गाएं।
इसी प्रकार, दूसरे सब से महत्वपूर्ण देव वायुदेव को रूद्र और मरूत के मुखिया और शिव भी कहा जाता है। शिव को महादेव भी कहा जाता है। वायुदेव यानी शिव चमत्कारी ढंग से काबे के अन्दर पैदा हुए तो वह अली कहलाए।
अली 12 इमामों के सरदार हैं तो शिव 12 मरूत के सरदार हैं; 14 देवताओं में से 2 जो मरूत नहीं हैं वे मौहम्मद और उनकी बेटी फातिमा हैं। जब यह मानव शरीर में धरती पर आए तो इन 14 के केवल 7 नाम थे - मौहम्मद, अली, फातिमा, हसन, हुसैन, अली, मौहम्मद, जाफर, मूसा, अली, मौहम्मद, अली, हसन और मौहम्मद - जिनमें एक देवी फातिमा हैं। मौहम्मद ने कहा कि मेरा नूर तमाम मखलूक से पहले पैदा किया गया और कहा कि मैं और अली एक ही नूर के दो टुकड़े हैं। इसी तरह पिंगल और ब्रहदअराण्यका उपनिषद बताते हैं कि कैसे Manifest Self यानी विष्णू यानी वजहल्लाह ने सब से पहले ब्रहमा के एक नूर को पैदा किया जो दो नूर में विभाजित हुआ जो पहले नूर के समान थे। आगे चल कर उपनिषद 14 नूर बनने की बात करते हैं और कहते हैं कि यह सब एक समान हैं और उस पहले नूर के भी समान हैं जिससे इनका विभाजन हुआ। दूसरी तरफ मौहम्मद अपनी जिन्दगी में बार बार कहते रहे कि हम में से पहला मौहम्मद है, आखिरी मौहम्मद है, बीच वाला मौहम्मद है, सब के सब मौहम्मद हैं। मौहम्मद बार बार कहते रहे कि मैं और अली एक ही नूर के दो टुकड़े हैं और शतपथ ब्रहमण - 4.1.13.19 - कहता है कि ‘जो वायु है वह इंद्र है और जो इंद्र है वह वायु है’। सच्चाई यह है जो तर्क हम पेश कर रहे हैं उसको निष्कासित करके संस्कृत का कोई भी ज्ञानी शतपथ के इस श्लोक का अर्थ नहीं समझा सकता। इसी प्रकार जो मुसलमान अहलेबैत के नूरानी स्वरूप पर यकीन रखते हैं वे वेद पढ़े बिना उनका परमात्मा और खुदा से रिश्ता नहीं पहचान सकते।
हिन्दुओं को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि वे प्राचीन समय से देवताओं को पहचानते थे और उनकी मानव रूप में आने की प्रतीक्षा कर रहे थे जब्कि मुसलमानों ने उन्हें बहुत बाद में देखा जब देवता मानव शरीर में पृथ्वी पर जीवन व्यतीत कर रहे थे।
शतपथ ब्रहमण का मंत्र जो हमने पढ़ा वह दोनों नूर - इंद्र और शिव - के बराबर होने का उल्लेख कर रहा है जब्कि मानव शरीर में आने पर उनमें से एक को दूसरे से बड़ा रोल दिया गया। यह बराबरी मौहम्मद ने भी बताई जब उन्होंने कहा कि मैं और अली एक ही नूर के दो टुकड़े हैं। मुसलमानों के लिए वेदों को पढ़े बिना इस राज को समझना मुश्किल है क्योंकि जब यह देवता अहलेबैत की शकल में मानव शरीर में थे तो उन्होंने मौहम्मद को ज्यादा बड़े काम करते देखा। आप को यह जानकर भी अचंभा होगा कि ब्रहदअराण्यका उपनिषद ने यह तक बता दिया है कि दोनों का एक ही नूर से संबंध होने के बावजूद एक को दूसरे से बड़ा रोल निभाने को मिला। एक ही नूर से दोनों नूर पैदा हुए और तमाम सृष्टि और जीवों की खिलकत में इनका रोल था। पांचवे भजन का चैथा मंत्र इस बात की पुष्टि करता है कि इंद्रदेव की शक्ति और नूर इस ब्रहमाण्ड में काम कर रही है। आगे चलकर मंत्र 6 से 9 कहता है कि हालांकि यह देवता इतने ताकतवर हैं कि उनकी शक्ति और नूर पूरे ब्रहमाण्ड को संचालित कर रही है, उनका ज्ञान केवल बुद्धिमान लोगों को ही मिलता है। भजन का गायक यह दुआ करता है कि उसको ज्ञान प्राप्त हो, वह अन्य गुण प्राप्त करे और नेक कर्म करे।
जैसा हम जानते हैं यह भजन इंद्रदेव को समर्पित है और इसमें उनको देवताओं का आका कहा गया है। प्रख्यात वेदिक जानकार सयानाचार्य ने इंद्र को स्वर्ग में मौजूद अन्य देवी देवताओं का आका कहा है जो सोम रस पीया करते हैं। विल्सन और ग्रिफिथ ने भी इसी प्रकार वर्णित किया है। अफसोस की बात यह है कि जिन देवताओं का विवरण तमाम वेदों में भरा पड़ा है आज हम उनको ही नहीं पहचानते।
ऋगवेद का छठा भजन साफ शब्दों में बताता है कि इंद्रदेव और मरूत मखः नामी स्थान पर मानव शरीर में आएंगे। उपनिषदों के अपने अध्ययन से मैंने सिद्ध किया है कि वायुदेव और मुख्य मरूत एक ही हैं। यह भजन साफ शब्दों में ऐसे समय की बात कर रहा है जब यह महान हस्तियां, जो दयावान और अहिंसा के पालक होंगी - मानव रूप में - पृथ्वी पर अपनी चमक बिखेरने आएंगी। इस भजन का दूसरा मंत्र तो यहां तक कह रहा है कि जब इंद्रदेव और मरूत मानव शरीर में धरती पर आएंगे तो इंद्र के दो चहीते पुत्र - अश्विन यानी हसनैन यानी हसन और हुसैन - भी मानव शरीर में जीवन व्यापन करने आएंगे।
इस मंत्र का अनुवाद प्रोफैसर मैक्स म्यूलर ने इस प्रकार किया हैः
They harness to the chariot on each side his (Indra’s) two favourite boys, the brown the bold, who can carry the hero.
(VEDIC HYMNS PART I.P.14)
जब हम अहलेबैत की जिन्दगी को देखते हैं तो कई बार ऐसा लगता है कि मानो पृथ्वी पर मानव शरीर में पैदा होने पर ये देवता वेदों में की गई भविष्यवाणियों को सच करने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। हम देखते हैं कि मौहम्मद के दोनों कांधों पर दो बच्चे बैठे हैं। एक तरफ हसन और दूसरी तरफ हुसैन। हसन और हुसैन को एक साथ हसनैन कहा जाता है। दोनों ने अपने नाना मौहम्मद की जुल्फें पकड़ रखी हैं। इस तरह मौहम्मद मदीना के बाजार से गुजर रहे हैं। किसी ने कहा वाह कितनी बेहतरीर सवारी है। पैगम्बर मौहम्मद ने क्हाः ऐसा नहीं कहो, यह कहो कितने बेहतरीन सवार हैं।
क्या ऋगवेद का यह मंत्र उसी घटना की ओर इशारा नहीं कर रहा?
आगे बढ़ते हुए मंत्र तीन में कहा जाता है कि किस प्रकार जब ज्ञान का नूर आएगा तो अज्ञानता का अंधेरा दूर हो जाएगा। आम आदमियों से भी कहा जाता है कि वे अपनी ही भलाई के लिए इन देवताओं का साथ दें और कहा जाता है कि इन देवों को प्रकाश के रूप में पैदा किया गया जब कोई प्रकाश नहीं था और इनको प्रकट रूप दिया गया जब किसी प्रकार का स्वरूप बनाया ही नहीं गया था। यह भी कहा जाता है कि वे सूर्योदय के समय से हैं। आप को ज्ञात होगा कि वेदों में जब ‘दिन’ का प्रयोग हुआ है तो इसके मायनी ईश्वर के एक दिन के है। लिखा है कि ईश्वर के एक दिन में 1000 बार मानवता को पैदा किया जाता है। विष्णु पुराण में यह भी लिखा है कि हम जिस आदम की औलाद हैं वह ईश्वर के इस दिन की 994वीं खिलकत है। वेद कह रहा है कि यह देवता इस दिन के प्रारंभ में पैदा किए गए थे और इस ईश्वरीय दिन के अंत में फिर ईश्वर के उसी manifest self में विलीन हो जाएंगे। कुरान भी यही कहता दिखाई देता है जब वह कहता है कि जब कायनात यानी सृष्टि समेट ली जाएगी तो कुछ नहीं रह जाएगा सिवाह वजहल्लाह यानी अल्लाह के चेहरे के। हम पहले भी कह चुके हैं कि वजहल्लाह और “manifest self of God” यानी विष्णु के एक ही मायनी हैं। इससे यह बात साबित होती है कि यह देवता पिछली 993 खिलकतों में भी वही कार्य कर रहे थे जो यह इस ईश्वरीय दिन की 994वीं खिलकत में कर रहे हैं। विष्णु पुराण तो यहां तक लिखता है कि पिछली 7 खिलकतों में इनको किन किन नामों से जाना जाता था।
मौहम्मद का कथन भी पुष्टि करता है कि आदम के पैदा होते समय उनका कोई न कोई रोल था। वह कहते हैं कि ‘‘मैं उस वक्त भी नबी था जब आदम को पानी और मिट्टी से पैदा किया जा रहा था।’’ कुरान भी पहले मनुष्य आदम की पैदाईश के समय कुछ दैवीय शक्तियों की मौजूदगी की पुष्टि करता है।
आईए देखें प्रोफैसर मैक्स म्यूलर ने इस मंत्र का अनुवाद कैसे किया हैः
Thou who createst light where there was no light and form. O men! Where there was no form, hast been born together with the dawns.
ग्रिफिथ ने इस मंत्र का इस प्रकार अनुवाद किया हैः
Thou making light where no light was, and form O men, where form was not, wast born together with the Dawn.
ग्रिफिथ ने साफ शब्दों में लिखा है कि इस मंत्र में देवताओं के सृष्टि के प्रारंभ में एक साथ जन्म लेने की बात हो रही है। इन अनुवादों से साफ है कि वेदों के विभिन्न अनुवादक अस्ली अर्थ के कितने करीब हैं। लेकिन इसके बावजूद इन देवताओं की पहचान से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण लिंक न होने के कारण अंधकार में भटक रहे हैं।
ब्रहदअराण्यका उपनिष्द भी साफ शब्दों में कहता है कि पैदाईश के समय से ही उस Manifest Self ने ईश्वर की इबादत शुरू कर दी थी और इस वजह से आगे की सृष्टि को बनाने और उसके संचालन की जिम्मेदारी इनको सौंप दी गई। ब्रहदअराण्यका बताता है कि इनको 14 क्षेत्रों का हाकिम बना दिया गया। उपनिष्दों में बड़ी बहसें हैं कि यह 14 क्षेत्र क्या हैं। यह हमारे शरीर के अन्दर के विभिन्न हिस्से हैं या इस सृष्टि के 14 हिस्से। इनकी पैदाईश के बाद समूची सृष्टि की पैदाईश हुई। चाहे चंद्रमा, सूरज, सितारे हों या मनुष्य और अन्य जीव, सबकी पैदाईश इन्हीं के कारण हुई। आप को हैरानी होगी यह जान कर मुसलमान हदीसे किसा पढ़ते हैं जिनमें अल्लाह साफ अल्फाज में कहता है कि यह चांद, यह सितारे, सूरज आदि सब अल्लाह ने इन अहलेबैत की मौहब्बत में पैदा किए।
ऋगवेद के इस भजन का चैथा मंत्र साफ शब्दों में कहता है कि यह मरूत छोटे बच्चों के रूप में इस धरती पर एक बार फिर पैदा होंगे। देखिए प्रोफैसर मैक्स म्यूलर इस मंत्र का कैसे अनुवाद करते हैंः
The Maruts according to their want assumed again the form of new born babes.
(V.H. PAGE 141)
क्या कोई शक बाकी रह जाता है कि वेद इंद्र और मरूत की नूरानी स्वरूप से मानव स्वरूप में पैदा होने की बात कर रहे हैं। पहले उनके नूरानी स्वरूप में पैदा होने की बात की गई थी और कहा गया था कि वे दिन के प्रारंभ में पैदा हुए। और अब बच्चों की शक्ल में पैदा होने की बात हो रही है। शब्द again पर गौर करें। यानी ‘फिर से’ पैदा होंगे, इस बार छोटे बच्चों की शक्ल में यानी मानव रूप में। पुराण और उपनिषद में अनेक बार कहा गया है कि यह एक छिपे हुए स्थान पर जन्म लेंगे। यह मंत्र वह जगह भी बताता है जहां यह पैदा होंगे। संस्कृत में ‘गुहा’ शब्द का प्रयोग हुआ है। संस्कृत के विद्वानों का मानना है कि इसके मायनी ‘मध्य स्थान’ या ‘छिपा हुआ स्थान’ होते हैं।
देखिए मैक्स म्यूलर कैसे अनुवाद करते हैंः
Thou O Indra, with the Swift Maruts who break through the even strong hold, hast found even in their hiding place the bright ones.
मैक्स म्यूलर सही अर्थ तो नहीं समझ पाए परन्तु साफ है कि ‘मध्य स्थान’ वह ‘छिपी’ हुई जगह है जहां यह मरूत मानवरूप में पैदा होंगे। आज भी आप यूटयूब पर “Kaaba as centre of earth” टाईप करें तो आपको कई फिल्में यह साबित करती हुई दिखाई दे जाएंगी कि काबा दुनिया का मध्य स्थान किस प्रकार है।
मंत्र 6 उन हस्तियों के बारे में है जो जन्म लेंगी। यहां भी वे ईश्वर की इबादत को चरम बिंदू तक ले जाएंगे। ग्रिफिथ का अनुवाद यह हैः
Worshipping even as they list, singers laud him who findeth wealth. The far-renowned, the mighty one.
छिपे हुए स्थान की बात करने के बाद, जो मध्य क्षेत्र में स्थित है, जहां इंद्र और मरूत मानव शरीर में जन्म लेंगे, जो बतौर नूर इस ईश्वरीय दिन के प्रारंभ में खल्क किए गए थे, मंत्र 8 साफ शब्दों में उस स्थान का नाम मखः बताता है जहां यह पैदा होंगे।
इस लेख में आप पहले पढ़ चुके हैं कि काबे को हिन्दु मंदिर साबित करता एक लेख कहता है कि ‘‘मुस्लिम शहरों मक्का और मदीना के नाम दरअस्ल संस्कृत शब्द मखः-मदीनी से बने हैं जिसका अर्थ होता है आग को पूजने वालों की धरती।’’ खेद का विषय यह है कि खुले रूप से शब्द ‘मखः’’ वेद में आने के बावजूद संस्कृत के ज्ञानियों ने इसको उस मक्का से नहीं जोड़ा जो अरब में स्थित है। प्रोफैसर मैक्स म्यूलर ने मखः का अनुवाद “sacrificer” किया है जब्कि ऋषि दयानंद सरसवती ने इसका अनुवाद ‘यग्न’ किया है। प्रोफैसर मैक्स म्यूलर ने यह तक कहा है कि दो स्थानों पर मखः का अर्थ ‘ईश्वर का दुश्मन’ के रूप में प्रयोग किया गया है।
इससे दो बातें साफ हो जाती हैं। पहले यह कि शब्द ‘मखः‘ वेदों में बार बार आया है और दूसरे यह कि सही अर्थ न समझ पाने के कारण अनुवादक अंधेरे में भटक रहे हैं और कभी कोई अनुवाद करते हैं कभी कुछ और।
हालांकि हमने इन्हीं अनुवादकों द्वारा विभिन्न मंत्रों के किए गए अनुवाद आप को दिखाए कि वह कैसे देवताओं के मानव शरीर में जन्म लेने की बात कर रहे थे और फिर छिपी हुई जगह की बात की और फिर शब्द ‘‘मखः’’ आया। मैक्स म्यूलर ने अगले मंत्र यानी मंत्र 9 का अनुवाद भी जिस प्रकार किया है उससे साफ हो जाता है कि इंद्र को याद किया जा रहा है जिनका नूर स्वर्ग में है जहां से वह नूर यहां धरती पर आएगा। देखिए मैक्स म्यूलर का अनुवादः
From Yonder, O traveler (Indra) come hither, or from the light of heaven, the singers all yearn for it.
क्या इससे यह साबित नहीं होता कि वेदों के लिखे जाने के समय के लोग इंद्रदेव और मरूत के मानव शरीर में जन्म लेने की दुआ कर रहे थे? इससे यह भी साबित होता है कि वह देवता वेद लिखे जाने के समय तक मानव शरीर में नहीं आए थे और आगे आने वाले समय में उनको आना था।
मंत्र 10 में इंद्रदेव को मुखातिब करके प्रार्थना की जा रही है, चाहे वह जहां भी हों। वह स्वर्ग में हो सकते हैं जैसे उस समय थे और धरती पर भी पैदा हो सकते हैं, हम हर हाल में उनसे ही मदद मांगते हैं। देखिए मैक्स म्यूलर का अनुवादः
We ask Indra for help from here, or from heaven, or from above the earth, or from the “Great sky.”
जो थोड़ी सी भी संस्कृत की जानकारी रखते हैं, मैं उन्हें आमंत्रित करता हूं कि इन मंत्रों का स्वयं अनुवाद करें। सच्चाई स्वयं आप के सामने आ जाएगी।
वेद में असंख्य मंत्र हैं जिनमें देवताओं से धरती पर आने की प्रार्थना की जा रही है परन्तु हम उनके सही अर्थ नहीं समझ पाए। सच्चाई यह है कि उस समय के लोग प्रतीक्षा कर रहे थे जब देवता मानवरूप में आएंगे ताकि वे उनके साथ हो सकें और ‘जब ज्ञान का नूर आए कि अज्ञानता के अंधकार को मिटा दे’ तो उनकी सहायता करें। यह मोक्ष का ज्ञान देने आएंगे ताकि जुलमत यानी अंधकार नष्ट हो सके।
अपनी बात को साबित करने के लिए हम अनेक सबूत दे सकते हैं लेकिन अभी हम को सैबी के प्रश्न का उत्तर देने के लिए लौटना है। यदि आप अधिक सबूत देखने के इच्छुक हैं तो मेरी पोस्ट ‘The True Content of the Vedas’ पढें।
सारांश में यदि हम बात करें तो ईश्वर का प्लान - जिसको हम बार बार कुरान, वेद, उपनिषद और गीता से साबित कर सकते हैं - यह है कि सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, निराकार खुदा ने - जिसको Absolute God या अल्लाह या ईश्वर या महेश कहा गया - ने जब चाहा कि खल्क करे तो उसने सबसे पहले Manifest Self -वजहल्लाह या अल्लाह का चेहरा या विष्णु - खल्क किया। इस Manifest Self ने पैदा होते ही ईश्वर यानी अल्लाह की इबादत शुरू कर दी। इसने खूब इबादत की और चाहा कि इबादत करने वाले ज्यादा हों तो ईश्वर ने आगे की खिलकत में इसका रोल पैदा कर दिया। इस Manifest Self का स्वर्ग के सातवें स्तर पर सिंहासन है। इससे साफ है कि मेराज की रात पैगम्बर मौहम्मद वजहल्लाह यानी विष्णु से मिलने गए थे। इसके बाद ब्रहमा यानी पहला नूर पैदा हुआ जो दो नूर में बंट गया जो पहले नूर के समान थे। और फिर एक के बाद एक 14 नूर पैदा हुए। कुरान में कहा गया है कि हमारी एक पैदाईश दूसरी पैदाईश के समान है। जिस प्रकार यह 14 नूर आसमान पर पैदा हुए थे ठीक उसी प्रकार यह नूर मानवरूप में धरती पर आए। नूर को मानव को राह दिखाने के लिए पैदा किया गया था। ईश्वर जानता था कि मानव की रचना इसलिए की गई है कि वह ईश्वर की इबादत करे। लेकिन उसने राह को इतना आसान नहीं रहने दिया। ईश्वर ने जुलमत की ताकत भी पैदा कर दी जो इंसान को भटकाने में लगी है। इंसान की जिम्मेदारी यह है कि वे रस्सी रूपी इन देवताओं के सहारे को पकड़ कर और अच्छे कर्म करते हुए इस दुनिया से निकल कर मोक्ष यानी निजात प्राप्त कर ले।
आज हमको कोई जानकारी नहीं है कि ब्रहमा का इंद्र से क्या रिश्ता है और इसी प्रकार इंद्र का मरूत से और इंद्र का शिव से क्या रिश्ता है। यदि आप हमारे साथ बने रहें तो हम जो कुछ कह रहे हैं उसका एक बार नहीं अनेक बार सबूत पेश कर देंगे। फिलहाल आप ऋगवेद का यह मंत्र देखें जिस में ब्रहमा और इंद्र दोनों का नाम आया है और बताएं कि दोनों का आपस में कोई रिश्ता है कि नहीं?
ब्राह्मणादिन्द्र राधसः पिबा सोममृतूँरनु।
तवे०ि सख्यमस्तृतम्।।
सच यही है कि ब्रहमा, विश्वदेव, ब्रहसपति, प्रजापति, इंद्र, वायु, शिव, मरूत आदि सब का एक दूसरे से रिश्ता है और सबका ईश्वर की इस खिलकत में बड़ा रोल है। यह कि देवता मानव आत्मा और परमात्मा के बीच रस्सी का काम करते हैं का उल्लेख हिन्दू और मुस्लिम किताबों में कई जगह मिल जाएगा। वेदों ने तो देवताओं को हमारे कार्मिक अंगों और इंद्रियों का शासक तक कहा है। उनको सम्पूर्ण ज्ञान का स्त्रोत कहा गया है। यह अफसोस की बात है कि वेद और उपनिषद के माध्यम से उन्हें बार बार पहचनवाए जाने के बावजूद आज हम जरा भी नहीं जानते कि ईश्वर की इस सृष्टि में देवताओं का रोल क्या है।
जगह जगह देवताओं को रस्सी कहा गया है। यह मोक्ष की रस्सी हैं। पढि़ए मेरा लेख ब्रहमण जनेउ क्यों पहनते हैं? गीता ने कहा कि इनका पृथ्वी पर मानवरूप में आना उस उल्टे वृक्ष के समान है जिसकी जड़ें स्वर्ग में हों परन्तु उसकी शाखाएं धरती पर आ जाएं। इनका मार्ग ही सीधा मार्ग है जिसपर चलकर मोक्ष प्राप्ति हो सकती है। जुलमत की ताकत जिसका काम ही इस मार्ग से भटकाना है हर समय लगी है कि हमको इनके मार्ग से ही भटका दे। यहां तक कि उसने इन मोक्षदाताओं की असलियत की जानकारी ही विलुप्त कर दी ताकि हम चक्कर काटते रहें परन्तु मोक्ष नहीं प्राप्त कर पाएं। यही कारण है कि चाहे ये देवताओं के रूप में हों या मानव शरीर में अहलेबेत के रूप मे, जुलमत की इस ताकत ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी कि इंसान इन को पहचान नहीं सके। हज में शैतान को पत्थर मार कर हम इसी कड़वी सच्चाई को समझने की कोशिश करते हैं।
आप जैसे जैसे अल्लाह के घर यानी बैतुल्लाह में रहने वाले लोगों यानी अहलेबैत को पहचानने के करीब आएंगे ताकि मोक्ष यानी निजात पा लें, जुलमत हर कोशिश करेगी कि आपको वहां से दूर कर दे। आपको जुलमत को शिकस्त देना होगी यदि आप चाहते हैं कि बैतुल्लाह और अहलेबैत के रास्ते से उस घर और अहलेबैत के खालिक अल्लाह यानी ईश्वर तक पहुंच सकें। अहलेबैत की एक फर्द शिव यानी अली को बैतुल्लाह यानी काबा में पैदा करके ईश्वर ने दिखा दिया कि इन अहलेबैत के रास्ते से ही मोक्ष यानी निजात मिल सकती है।
सिर्फ एक प्वाईंट और फिर हम सैबी के सवाल की तरफ आते हैं। एक समय वह था जब इंसान का दिमाग इतना विकसित नहीं था कि वह एक अदृष्य, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिशाली ईश्वर की कल्पना कर सके। आज के इस विकसित युग में हममें सलाहियत है कि हम अदृष्य चीजों की ताकत को समझ सकें। यही कारण है कि पुराने समय के इंसान के सामने देवताओं को मोक्षदाताओं यानी निजातदहिंदाओं के रूप में पेश किया गया। न केवल भारत में बल्कि उस समय की हर सभ्यता में - चाहे चीन हो, ग्रीस हो, मेसोपोटेमिया हो या मिस्र हो - इन देवताओं को प्रस्तुत किया गया। यही कारण है कि हर सभ्यता में हमें इन देवताओं के चिह्न मिल जाएंगे। हर सभ्यता में इन देवताओं के इर्द गिर्द अनेक गाथाएं और कहानियां जुड़ गईं और इनके कारण अलग अलग सभ्यताओं में उनके बारे में जो जानकारी हमें मिलती है वह समान है परन्तु कहीं कहीं भिन्न है। ईश्वर द्वारा यह जानकारी अनेक अवतारों और पैगम्बरों द्वारा न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया के लोगों तक पहुंचाई गई।
यही कारण है कि राधाकृष्ण लिखते हैं कि संतों ने एक इल्हामी कैफियत में वेदों की संरचना की थी। ईश्वर उनका मार्गदर्शन कर रहा था। स्वेतास्वतर उपनिष्द कहता है कि संत स्वेतास्वतर ने सत्य को देखा तप-प्रभाव और देवप्रसाद के कारण। यही कारण है कि हर इलाके में एक प्रकार की ही जानकारी हम तक पहुंची।
अरस्तु भी कहता था कि धर्म के मूल सिद्धांत हमेशा से एक ही हैं। एथेनागोरस का भी कहना है कि एक इल्हामी कैफियत में परमात्मा कुछ पवित्र मानव शरीरों को अपने आफिस के रूप में इस्तेमाल करने लगता है। परमात्मा उनके शरीर को साधन के रूप में इस्तेमाल करता है जैसे कोई बांसुरी वादक बांसुरी का प्रयोग करता है।
Athenagoras says:
“While entranced and deprived of their natural powers of reason by the influence of the Divine Spirit, they uttered that which was wrought in them, the spirit using them as its instrument as a flute-player might blow a flute.”
Apol. IX.
परमात्मा ने यही बांसुरी कभी कृष्ण के मुख से बजाई, कभी बुद्ध के मुख से, कभी यसूअ मसीह के मुख से और कभी मौहम्मद के मुख से। बांसुरी बजाने वाले - देवता - हर जमाने में एक ही रहे हैं। यह देवता Manifest Self यानी परमात्मा यानी वजहल्लाह यानी Face of God के इशारे पर चलते हैं। इनका काम तमाम मानवता को ईश्वर यानी अल्लाह यानी महेश के रास्ते पर लेकर आना है।
जब एक मार्ग दिखाया गया और लोग उस मार्ग से भटके तो फिर से पैगम्बरों द्वारा उस भटकाव को दूर करने की कोशिश की गई। उदाहरण के रूप में, जिन लोगों के पास वेद भेजे गये थे उन्हीं के पास राम, कृष्ण और बुद्ध को भेजा गया ताकि वेदिक शिक्षा से जो लोग भटक गए हैं उन्हें पुनः सही मार्ग पर लाया जाए। हर हर समय में जुलमत हमें सीधे रास्ते से भटकाने की कोशिश करती रही जब्कि नूर हमें उस मार्ग पर लगाने की कोशिश करता रहा। मार्ग एक था परन्तु लोग उस मार्ग से भटकते गए और हर भटकाव को एक धर्म का नाम दे दिया। नए मार्गदर्शक आए और जुलमत ने लोगों को उनके बताए मार्ग से भी भटका दिया। अधिकांश मौकों पर पैगम्बरों को मार डाला गया या कैद कर दिया गया। जिन्होंने अपने समय के पैगम्बरों की शिक्षा पर चलने की कोशिश की और कामयाब हुए उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। उनकी आत्मा इस पृथ्वी पर वास से मुक्त हो गई।
क्यूंकि हम आज भी इस पृथ्वी पर जीवन व्यापन कर रहे हैं, यह इस बात का सबूत है कि हमारी आत्मा आज तक उस स्तर तक नहीं पहुंच सकी है जो मोक्ष प्राप्ति के लिए जरूरी है। हमारी आत्माएं ढीट और हठीली साबित हुईं और उनसे जो अपेक्षा थी उसपर पूरी नहीं उतरीं। कलयुग की ऐसी हठीली आत्माओं के लिए आवश्यक हो गया कि एक नियमपुस्तक उन्हें दी जाए कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना। यही कारण है कि जब देवता मानवरूप में प्रस्तुत हुए तो हमें एक ऐसी नियमपुस्तक दी गई जिसमें क्या करना है और क्या नहीं विस्तार से बताया गया।
आईए अब सैबी के प्रश्नों को एक एक करके लेते हैं हालांकि यह जाहिर है कि चार में से तीन प्रश्नों के उत्तर हम अब तक दे चुके।
प्रश्न 1ः काबा के एक शिलालेख में महादेव और राजा विक्रामादित्य का उल्लेख मौजूद है।
प्रिय सैबी, हम आप को दिखा चुके हैं कि यह ईश्वर की प्लानिंग में था कि स्वर्ग में मौजूद तमाम देवतागण आने वाले किसी समय में एक के बाद एक मानव शरीर में “as new born babes” जन्म लेंगे। यह पहले से किताबों में लिखा था। विष्णु यानी Manifest Self यानी वजहल्लाह का इन देवताओं से रिश्ता साबित करने के लिए शिव यानी वायुदेव यानी अदित्य यानी मरूत ने चमत्कारी ढंग से काबा के प्रांगण में जन्म लिया। यह भी पहले से किताबों में वर्णित था। यदि पुस्तकों में इस हद तक निशानियां मौजूद थीं तो कोई अजूबा नहीं कि राजा विक्रमादित्य भी इसकी ओर आकर्षित हुए। जैसा कि हम जानते हैं कि वह बड़े शिव भक्त थे। लेकिन विक्रमादित्य के बाद और जब देवतागण वाकई मानव शरीर में पैदा हुए, इस बीच में जुलमत ने उनके बारे में ज्ञान को मिटा दिया। जुलमत कितना तेज काम करती है इसका अंदाजा इस बात से हो सकता है कि यसूअ मसीह सारी जिन्दगी कहते रहे कि सच्चाई की आत्मा अवतरित होने को है, इंसान का पुत्र आने को है - यानी वह साफ शब्दों में कह रहे थे कि जब देवता इंसानों के घरों में जन्म लेंगे - और अपने अनुयायियों से कहते थे कि उनकी शिक्षा को बनी इस्रायल की बिछड़ी भेड़ों के बाहर न ले जाएं क्योंकि हम ऐसा कर भी न चुकेंगे की इंसानों का बेटा आ जाएगा। यसूअ एलिया यानी शिव यानी अली की मदद मांग रहे थे जब उन्हें सूली पर चढ़ाया गया परन्तु लोगों ने नहीं पहचाना। उस समय से मात्र 500 सालों के भीतर मौहम्मद का जन्म हुआ परन्तु इतने समय में जुलमत ने यसूअ के मानने वाले अधिकांश लोगों को इतना बहका दिया था कि वह पहचान ही नहीं पाए कि जिसका वह इंतेजार कर रहे थे वह आ गया।
प्रश्न 2ः पैगम्बर मौहम्मद के एक चाचा जो उन्हें नबी नहीं मानते थे ने एक कविता ‘सैर-उल-ओकुल’’ में भारत को पृथ्वी पर सबसे पवित्र स्थान क्हा है। यह कविता इस्तांबुल की एक इस्लामिक लाईब्रेरी में मौजूद है।
प्रिय सैबी, भारत हमेशा संतों और ऋषियों की और सच्चाई और इंसाफ की पावन धरती रही है। पैगम्बर मौहम्मद ने यकीनन शिव के बारे में काव्य पढ़ा होगा। मुझे यकीन है कि ऐसी अनेक कविताएं उपलब्ध होंगी। लेकिन हमको याद रखना होगा कि हालांकि वेद ने मार्ग दिखा दिया था किन्तु उसके बावजूद राम को आकर वेदिक शिक्षा को पथ पर लाना पड़ा। वेद की ही समझ में आई त्रुटियों को दूर करने के लिए कृष्ण को आना पड़। यहां तक कि उन लोगों से लड़ना भी पड़ा जो अपने को वेदों का सबसे बड़ा मानने वाला समझते थे। दूसरे ऋषियों ने भी कोशिश की कि जनता को वेदों की सच्ची शिक्षा की ओर लाएं। परन्तु इनके मानने वाले सत्यमार्ग से बार बार भटकते रहे। विक्रमादित्य ने यकीनन अरब की भूमि की ओर संत और शिक्षक भेजे होंगे लेकिन बाद के मानने वाले वेदों की अस्ली शिक्षा से बहुत दूर भटक गए थे। यदि हम पैगम्बर मौहम्मद के जन्म के समय मक्का और अरब के लोगों का हाल देखें तो यह साफ हो जाएगा। वह भले ही शिव को याद रखे थे परन्तु वे बेगुनाहों का खून बहाते थे, वे अपनी बच्चियों को जिन्दा जमीन में दफन कर देते थे और हर प्रकार की बुराईयां जैसे जुआ, कई कई पत्नियां, गुलाम और दासी प्रथा, उनके साथ अमानवीय व्यवहार, यहां तक कि कोई बुराई नहीं थी जो उनमें नहीं पाई जाती थी। सारा समाज कबीलों में बटा था। सच तो यह है कि जुलमत को भी पता था कि नूर मक्का में ही अवतरित होगा और इसलिए उसने उस इलाके के लोगों को गहरे अंधकार में ढकेल दिया था। मुझे समझ नहीं आता कि आप क्यों इन लोगों को इज्जत की निगाह से देखते हैं; क्या केवल इसलिए कि वे शिव भक्त थे। याद रखिए, रावण भी अपने समय का सब से बड़ा शिव भक्त था परन्तु जब उस शिव से ही संबंध रखने वाला अवतार राम की शक्ल में आया तो उसने रावण का वध कर देने में भलाई समझी।
प्रश्न 3ः काबे की तीर्थयात्रा अरबों में पैगम्बर मौहम्मद के जन्म से पहले से होती थी। और हालांकि उन्होंने इस प्रथा को बदल कर मक्का से येरूश्लम की ओर इबादत का मरकज कर दिया लेकिन फिर इसे बदल कर काबे की ओर इबादत शुरू की और केवल मूर्तिपूजा को छोड़ कर हिन्दू और हिन्दुओं जैसे बुतपरस्तों की प्रथाओं को जारी रखा। यहां तक कि हज पर तुम जो कपड़े पहनते हो वे भी हिन्दु ऋषियों द्वारा पहने जा रहे कपड़ों के समान होते हैं।
उत्तरः प्रिय सैबी, जरा उन देवताओं के नाम तो देखिए जिनकी मूर्तियां काबे के अन्दर स्थापित थीं। जैसा हमने पहले लिखा है, काबे में डार यानी इंद्र यानी देवों के राजा की मूर्ती थी, उसमें दुआ शारा यानी देवेश्वर यानी देवों के आका की मूर्ती थी, उसमें बजर यानी वज्र यानी इंद्र के हथ्यार की मूर्ती थी, उसमें मनत यानी सोमनाथ यानी शिव जी की मूर्ती थी और इसी प्रकार अन्य मूर्तियां जो थीं उनमें शिव-ईश्वर की मूर्ती, देवी की मूर्ती आदि मौजूद थीं। सच्चाई यह है कि लोगों ने वेदों के देवताओं को ही पूजना प्रारंभ कर दिया था और कृृष्ण द्वारा देवताओं को भगवान के रूप में पूजने वालों के खिलाफ युद्ध छेड़े जाने के बावजूद अनेक लोग देवताओं की पूजा कर रहे थे। हम पहले भी लिख चुके हैं कि देवताओं की खिलकत का मकसद ईश्वर की इबादत करने वालों की संख्या में बढ़ौतरी था। हर समय में देवता बस यही करते रहे हैं। जब वे मानव शरीर में आए तो उन्हें मारा काटा जाता रहा, उन पर जुल्म ढाए गए, मारा पीटा गया और कैद में रखा गया लेकिन वे ईश्वर की ऐसी इबादत करने में जुटे रहे जैसी किसी ने न की हो। ईश्वर के सामने नतमस्तक होने के जो तरीके इन्होंने बताए हैं वे रूहानियत की चरम सीमा हैं। जुलमत ने इतना बहका दिया था कि अरब के लोग उन देवताओं को पहचान ही नहीं पाए हालांकि वे उनके बीच में रहने आ गए थे। जब वे स्वयं प्रत्यक्ष में आ गए थे तो उनकी मूर्तियों को बचाए रखने का कोई औचित्य नहीं था। यह कैसे मुमकिन था कि अहलेबैत अपने ही विभिन्न नामों की मूर्ती को लगे रहने देते और उसकी पूजा होते रहने देते जब्कि उनका मकसद ईश्वर की इबादत की ओर इंसानों को लेकर जाना है। इसलिए काबे से तमाम मूर्तियां हटाई गईं। अहलेबैत का संबंध काबे से बना रहा।
सैबी जी आप का चैथा प्रश्न अपने आप में एक बड़ा विषय है इसलिए इसका उत्तर मैं एक अलग लेख में देने की कोशिश करूंगा।
Sir mujhe yeh apka blog kafi accha laga lekin mujhe ek doubt
ReplyDelete1) apne kaha ke musalman religion hindu se he nikle hai to sabhi log apne aap ko muslim q kehte hai sanatan q nahi kehte
2) apne kaha muslim religion sanatan religion ke he part hai to hm hindu log muslim se kaise different hai
3) kya ager hm shiv ko allah maane Or unki ibadat kare to kya hm kaffir honge
Umeed hai mujhe ki aap mere sawalo ka jawab denge
अगर हमारी तक्षशिला और नालंदा विश्वविधालय नही जलाए जताए तो इसका विवाद आसानी से हाल हो जाता
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