आज देश भर में योग दिवस मनाया जा रहा है। 30000 लोग तो सिर्फ दिल्ली में एक साथ योग करेंगे। क्हा जा रहा है कि योग का किसी धर्म से कोई सम्बंध नहीं। यह तो प्राचीन युग से चली आ रही व्यायाम की एक कला है। आईए देखें योग क्या है और योग का सनातन धर्म से क्या सम्बंध है।
गीता में योग का शब्द बार बार प्रयोग हुआ है। पर गीता के योग में और हम जो योग करने जा रहे हैं उस में बड़ा अन्तर है। गीता में योग हर उस क्रिया को कहते हैं जो आत्मा को उस मार्ग पर डाल दे जो उसको परमात्मा तक ले जाता हो। इस प्रकार गीता के अनुसार ईश्वर के प्रेम में या उसको याद करके रोना भी योग है, बार बार ईश्वर का नाम जपना भी योग है, ईश्वर के नाम पर कुछ कार्य करना भी कर्मयोग है। गीता का योग मानें तो नमाज के माध्यम से ईश्वर को याद करना भी योग होगा। जिस प्रकार मुसलमानों में पांच बार नमाज पढ़के ईश्वर को याद करने की प्रथा मौजूद है उसी प्रकार सनातन धर्म में भी दिन में पांच बार ईश्वर को याद करने की प्रथा मौजूद दी जो धीरे धीरे लुप्त हो गई।
यदि यह योग है तो मुसलमानों को योग करने में क्या आपत्ति हो सकती है क्योंकि हर मुसलमान का फर्ज है कि वह अपने कामों में ईश्वर यानी अल्लाह को याद रखे।
परन्तु कोई भी एक खुदा को मानने वाला किसी गैर खुदा के आगे कैसे सिर झुका सकता है। अस्ल मुद्दा यह है कि वेद और गीता में भी एक खुदा की ही बात हो रही है परन्तु उन किताबों के मानने वाले अपनी ही किताबों की समझ खो बैठे हैं। शिव कौन हैं, विष्णू कौन हैं, इन्द्र कौन हैं, अग्निदेव ओर वासुदेव कौन हैं, उनको जरा भी समझ नहीं रही और केवल प्रचलित कहानियों पर विश्वास किए पड़े हैं जब्कि यह कहानियां कई बार इन देवी देवताओं को उपहासमय स्थिति में प्रस्तुत करती हैं। वह इन देवताओं में से कुछ को भगवान कहते हैं और भगवान कहने के बावजूद उनके लिए ऐसी ऐसी गाथाएं बना रखी हैं जो उनको भगवान भी नहीं रहने देतीं। अपनी किताबों में एक ईश्वर का विस्तार पूर्वक विवरण होने के बावजूद अगर हिन्दू उस ईश्वर के स्थान पर दूसरों को भगवान का दर्जा दे दें और फिर चाहें कि सब लोग उनके नाम पर सिर झुकाएं तो यह कैसे हो सकता है? यही कारण है कि मौहम्मद अलवी वेद, उपनिषद और गीता में विश्वास रखता है क्योंकि यह आसमानी किताबें हर समय एक ईश्वर या उस ईश्वर द्वारा ही पैदा किए गए परमात्मा और देवताओं की बात कर रही हैं जिनका इस सृष्टि को चलाने में बड़ा रोल है। परन्तु उन्हीं किताबों की आधी अधूरी समझ से यदि कोई देवताओं को भगवान का दर्जा दे दे और कहे कि वेद को मानो तो फिर मौहम्मद अलवी को कहना पड़ेगा कि जिस वेद को मैं ईश्वर की ओर से भेजी गई किताब मानता हूं आप जो कुछ कह रहे हैं वह उस वेद की शिक्षा से भिन्न है। \
अफसोस इस बात का है कि वेद को बढ़ावा देने की बात हो रही है, गीता को स्कूलों में पढ़ाने की बात हो रही है परन्तु जो यह प्रचार कर रहे हैं उन्हें स्वयं नहीं पता कि वेद और गीता में क्या क्या तथ्य छिपे हुए हैं। अब तो समय ऐसा आ गया है कि हमको इच्छा भी नहीं कि जानें कि जिन किताबों को हम आसमानी किताबें मान रहे हैं और जिन का नाम हम रोजाना लेते हैं, उनमें क्या लिखा है? और क्या उन किताबों में दिए गए संदेश को अपने जीवन में उतारने के अतिरिक्त उनको मानने से कोई लाभ होने वाला है?
कल की मेरी पोस्ट में आप ने ऋग वेद के एक भजन से देखा कि मारूत अर्थात शिव ने मानव शरीर में धरती पर जन्म लिया तो अली कहलाए। कल की मेरी पोस्ट को पढ़ें और समझें कि हमारी वेदों की समझ कितनी अधूरी है। जिस प्रकार शिव ने मानव शरीर में जन्म लिया तो अली कहलाए, उसी प्रकार देवी फातमा कहलाईं और अश्विन अर्थात पार्वती के दो पुत्र हसनैन कहलाए। हसनैन अर्थात हसन और हुसैन। हुसैन जिन्हें करबला में अधर्मी लोगों ने शहीद किया उनको वेद ने अग्निदेव कहा है। ईश्वर की राह में कुरबानी देने को अरबी में आबे कौसर पीना कहा गया है। उसी को वेदों ने सोमरस पीना बताया परन्तु यह न समझ पाने के कारण वेदों को पढ़ने वाले समझते रहें कि स्वर्ग के किसी पेय की बात हो रही है। सोमरस यकीनन स्वर्ग का पेय है और आबे कौसर भी जन्नत के चश्मे के पानी को कहते हैं परन्तु वेद ने जब सोमरस पीने की बात की तो उसका अर्थ ईश्वर की राह में शहीद हो जाना है। तमाम देवताओं का नूर मानवता की पैदाईश से बहुत पहले पैदा किया गया, एक नूर दो में विभाजित हुआ और फिर दो में से एक का हिस्सा दूसरे से मिला तो हिरण्यगर्भ बना और उनमें से दो और नूर निकले और फिर 9 और इनको परमात्मा ने सृष्टि के 14 भागों का हाकिम बना दिया। एक नूर से 14 नूर हो गये और यह 14 उस पहले के एकदम समान थे जिससे विभाजन हुआ था। यह सब तो वेद और उपनिषद में लिखा है। पैगम्बर मौहम्मद ने भी कहा कि मेरा नूर आदम की पैदाईश से बहुत पहले पैदा हुआ, एक नूर दो में बटा तो अली और मौहम्मद का नूर हुए, फिर मौहम्मद के नूर से नूरे फातिमा पैदा हुआ और अली और फातिमा के मिलन से 2 और फिर 9 और अहलेबैत पैदा हुए तो कुल 14 अहलेबैत हो गये जिनके बारे में मौहम्मद ने क्हा कि सबएक समान हैं अर्थात सब का नूर एक समान है और सबका मकसद भी एक ही है।
यदि वेदों की सही समझ के साथ मुसलमानों को आमंत्रित किया जाए तो मुझे नहीं लगता कि किसी भी मुसलमान को आपत्ति होनी चाहिए क्योंकि वेद तो सब कुछ वही कह रहे हैं जो पैगम्बर मौहम्मद ने बताया और कुरान और वेद की शिक्षा में जरा भी अन्तर नहीं है। यही बात योग पर भी लागू होती है। यदि योग को उस मायनी में बताया जाए जिस मायनी में गीता ने बताया तो फिर क्यों किसी को आपत्ति होगी। परन्तु कोई कहे कि सूर्य देव वेदानुसार देवता हैं और हमको उनके आगे सिर झुकाना है तो कोई क्यों कर तैयार हो जाएगा। हकीकत तो यह है कि सूर्य देव के आगे सिर झुकाने वालों को पता ही नहीं कि सूर्य देव कौन हैं, क्या केवल आसमान में दमकते सूर्य को ही सूर्य देव कहा गया है या किसी और देवता को, उस देवता का इस सृष्टि में क्या रोल है और इस समय कहां विराजमान हैं? उनका परमात्मा से क्या रिश्ता है, हम से क्या रिश्ता है और ईश्वर से क्या रिश्ता है? स्वयं उत्तर न होने के बावजूद हम चाहते हैं कि तमाम भारत वह माने जो हम मानते हैं। सच तो यह है कि जिस दिन वेदों की सही समझ हमें हो गई, बाकी भारत को भी उन को मान लेने में कोई आपत्ति नहीं होगी क्योंकि कुरान तो स्वयं हर उस किताब पर यकीन रखने और उसे कुरान के बराबर मानने की बात कर रहा है जिसको ईश्वर की ओर से विश्व के किसी न किसी भाग में भेजा गया। मौहम्मद अलवी को तो इसमें कोई शक नहीं कि वेद आसमानी किताबें हैं और ऐसे ऐसे राज छिपाए हैं कि यदि हम जान जाएं तो हमारी जिन्दगी ही बदल जाए। मुसलमानों को भी चाहिए कि वेदों को पढ़ें और उन में छिपे राजों को जानने की कोशिश करें क्योंकि वेदों के माध्यम से ईश्वर ने वह वह राज हमको दिए कि यदि हम जान जाएं तो हममें कुरान की भी बेहतर समझ पैदा होगी।
जैसा मैंने कहा योग उन कार्यों को कहते हैं जो आत्मा को परमात्मा के समीप करें। यह गीता का योग है। परन्तु पतंजली ने योग को एक व्यायाम में बदल दिया जो न केवल शरीर को बेहतर बनाने का काम करता है बल्कि स्वस्थ शरीर में आत्मा को भी उत्थान देता है कि वह परमात्मा के करीब होने लाएक बन सके। खेद का विषय यह है कि आज हम ने वेदों को केवल शारीरिक व्यायाम ही समझ लिया जो वह नहीं है। शरीर सेहतमंद होना आवश्क है परन्तु यदि वह शरीर रावण या कौरव के साथ खड़ा दिखे तो ऐसे स्वस्थ शरीर से क्या लाभ? आत्मा का उत्थान होगा तो हमारे अन्दर अच्छाईयां बढेंगी और बुराईयां कम होंगी। आत्मा का उत्थान जब ही होगा जब वह परमात्मा के करीब होगी। और इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने काम ईश्वर की याद को बनाए रखते हुए करें। जब ऐसा होगा तो हममें वह सब अच्छाईयां पैदा होंगी जिनकी गीता ने बात की है।
यदि केवल शारिरिक व्यायाम करके शरीर को स्वस्थ कर लिया और आत्मा को परमात्मा से जोड़ने के लिए कुछ नहीं किया तो हो सकता है कि आने वाले समय के कृष्ण अर्जुन से कहें कि यह व्यक्ति मरे हुए के समान है और इस शरीर से आत्मा को अलग कर दो।
आज होने वाले योग उत्सव में से सूर्य नमस्कार निकाल दिया गया है। योग का जो कार्यक्रम बनाना गया है उसके अनुसार सब से पहले एक मंत्र पढ़ा जाएगा और फिर व्यायाम प्रारंभ होगा। जो मंत्र पढ़ा जाएगा वह यह हैः
समगच्छादवम समवादाधवम सम वो मनमसी जनतम देव भागम यथा पूवे संजानना उपासते
इस मंत्र का अंग्रेजी में जो अर्थ बताया गया है वह यह हैः
May you move in harmony; may you speak in unison; let our mind be equanimous like in the beginning; let the divinity manifest in your sacred endeavours
ऐसा बताया जा रहा है कि इस मंत्र में योग करने वालों के साथ साथ लयबद्व तरीके से चलने, साथ साथ बोलने, और मस्तिश्क को एक मार्ग पर लगाने की बात हो रही है ताकि हमारे कार्यों में देवता शामिल हो जाएं।
यदि यह मंत्र पढ़ा जाना है जिसमें देवता का भी उल्लेख है तो फिर क्यों कहा जा रहा है कि योग का किसी धर्म से कोई सम्बंध नहीं? हकीकत तो यह है कि यह मंत्र पढ़ने वालों में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि वे क्या पढ़ रहे हैं और उसका क्या महत्व है?
आईए देखें कि ऋगवेद के दसवें मंडल के 191,2,3,4 मंत्र में क्या कहा जा रहा है।
सं.समिद युवसे वर्षन्नग्ने विश्वान्यर्य आ द्य
इळस पदेसमिध्यसे स नो वसून्या भर द्यद्य
सं गछध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम द्य
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते द्यद्य
समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम द्य
समानं मन्त्रमभि मण्त्रये वः समानेन वोहविषा जुहोमि द्यद्य
समानी व आकूतिः समाना हर्दयानि वः द्य
समानमस्तु वोमनो यथा वः सुसहासति द्यद्य
यह मंत्र अग्नि देव को समर्पित है। क्या बात हो रही है यह न समझ पाने के कारण अनुवादकों ने इसको हम से जोड़ने की कोशिश की है जब्कि हकीकत यह है कि यह मंत्र भी इशारा कर रहा है कि सारे देवता एक समान हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं है। सब की खिलकत भी एक है और सब का मकसद भी एक है। एक नूर से विभाजित हुए 14 नूर के मानव शरीर में इस धरती पर अवतरित होने की बात हो रही है। मेरी कल की पोस्ट आप ने पढ़ी होगी तो आपने देखा होगा कि कैसे देवताओं का नूर फिर से धरती पर जन्म लेगा जैसे बच्चे जन्म लेते हैं।
यदि आप संस्कृत जानते हैं तो स्वयं अनुवाद कीजिए और नहीं जानते तो किसी संस्कृत के जानकार से इस भजन का अनुवाद करवाईए। पहले ही मंत्र का जो अनुवाद होता है वह यह हैः
As young Agnidev who shines with light (made of noor) comes to the universe with others
बात हो रही है जब्कि जिस समय अग्निदेव का नूर मानव शरीर में पृथ्वी पर छोटे बच्चे के रूप में जन्म लेगा और वह नूर हमारे बीच चमकेगा। सब के सब देवता एक के बाद एक धरती पर आएंगे और एक ही स्थान पर आएंगे। वह एक ही बात बोलेंगे, उनका दिमाग एक ही मार्ग पर चलेगा और उन सब का एक ही मकसद अर्थात उद्देश्य होगा। जिस जगह वे अवतरित होंगे वह जगह एक, उनका मकसद एक और उनकी सोच एक।
यही बात पैगम्बर मौहम्मद ने की जब उन्होंने क्हा कि हमारा नूर आदम की खिलकत से हजारों वर्ष पूर्व पैदा हुआ था, वह नूर विभाजित हुआ तो अंत में 14 नूर बने, इनमें से पहला भी मौहम्मद है, आखिरी भी मौहम्मद है, बीच का भी मौहम्मद है, सब के सब मौहम्मद हैं।
अर्थात यह कि नूरानी हस्तियां जिनको दिव्य अर्थात नूर से बने होने के कारण वेदों ने देवता क्हा जब मानव शरीर में आए और अहलेबैत कहलाए तो उन सब का काम करने का ढंग, कथन, उद्देश्य एक ही था। अहलेबैत की जीवनी पढि़ए तो आप जानेंगे कि कैसे यह केवल ईश्वर की इबादत और उस तक पहुंचने के मार्ग को प्रजवलित करने के लिए अपनी तमाम जिन्दगी कोशिश करते रहे। नूरानी हस्तियां मानव शरीर में धरती पर आईं तो जुलमत ने सारी ताकतें लगा दीं कि वे ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग को प्रजवलित करने अर्थात मोक्ष के मार्ग को दिखा पाने में कामयाब न हो पाएं। ऐसा उसने इसलिए किया कि नूर के मार्ग पर मानवता के आ जाने से ही जुलमत अर्थात तमस की हार है। अग्नि देव को अपने मित्रों और परिवार जनों के साथ ऐसी क्रूरता से शहीद किया गया कि आज तक इतनी क्रूरता और बरबरता से किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं मारा गया होगा। जब जब नूर ने मार्ग प्रजवलित करने की कोशिश की है, जुलमत ने अपनी तमाम ताकतें उस मार्ग से हमको बहकाने के लिए लगा दी हैं। उस मार्ग को पहचान लेने और उसपर चलकर ईश्वर से जुड़ जाने का नाम ही योग है।
गीता में योग का शब्द बार बार प्रयोग हुआ है। पर गीता के योग में और हम जो योग करने जा रहे हैं उस में बड़ा अन्तर है। गीता में योग हर उस क्रिया को कहते हैं जो आत्मा को उस मार्ग पर डाल दे जो उसको परमात्मा तक ले जाता हो। इस प्रकार गीता के अनुसार ईश्वर के प्रेम में या उसको याद करके रोना भी योग है, बार बार ईश्वर का नाम जपना भी योग है, ईश्वर के नाम पर कुछ कार्य करना भी कर्मयोग है। गीता का योग मानें तो नमाज के माध्यम से ईश्वर को याद करना भी योग होगा। जिस प्रकार मुसलमानों में पांच बार नमाज पढ़के ईश्वर को याद करने की प्रथा मौजूद है उसी प्रकार सनातन धर्म में भी दिन में पांच बार ईश्वर को याद करने की प्रथा मौजूद दी जो धीरे धीरे लुप्त हो गई।
यदि यह योग है तो मुसलमानों को योग करने में क्या आपत्ति हो सकती है क्योंकि हर मुसलमान का फर्ज है कि वह अपने कामों में ईश्वर यानी अल्लाह को याद रखे।
परन्तु कोई भी एक खुदा को मानने वाला किसी गैर खुदा के आगे कैसे सिर झुका सकता है। अस्ल मुद्दा यह है कि वेद और गीता में भी एक खुदा की ही बात हो रही है परन्तु उन किताबों के मानने वाले अपनी ही किताबों की समझ खो बैठे हैं। शिव कौन हैं, विष्णू कौन हैं, इन्द्र कौन हैं, अग्निदेव ओर वासुदेव कौन हैं, उनको जरा भी समझ नहीं रही और केवल प्रचलित कहानियों पर विश्वास किए पड़े हैं जब्कि यह कहानियां कई बार इन देवी देवताओं को उपहासमय स्थिति में प्रस्तुत करती हैं। वह इन देवताओं में से कुछ को भगवान कहते हैं और भगवान कहने के बावजूद उनके लिए ऐसी ऐसी गाथाएं बना रखी हैं जो उनको भगवान भी नहीं रहने देतीं। अपनी किताबों में एक ईश्वर का विस्तार पूर्वक विवरण होने के बावजूद अगर हिन्दू उस ईश्वर के स्थान पर दूसरों को भगवान का दर्जा दे दें और फिर चाहें कि सब लोग उनके नाम पर सिर झुकाएं तो यह कैसे हो सकता है? यही कारण है कि मौहम्मद अलवी वेद, उपनिषद और गीता में विश्वास रखता है क्योंकि यह आसमानी किताबें हर समय एक ईश्वर या उस ईश्वर द्वारा ही पैदा किए गए परमात्मा और देवताओं की बात कर रही हैं जिनका इस सृष्टि को चलाने में बड़ा रोल है। परन्तु उन्हीं किताबों की आधी अधूरी समझ से यदि कोई देवताओं को भगवान का दर्जा दे दे और कहे कि वेद को मानो तो फिर मौहम्मद अलवी को कहना पड़ेगा कि जिस वेद को मैं ईश्वर की ओर से भेजी गई किताब मानता हूं आप जो कुछ कह रहे हैं वह उस वेद की शिक्षा से भिन्न है। \
अफसोस इस बात का है कि वेद को बढ़ावा देने की बात हो रही है, गीता को स्कूलों में पढ़ाने की बात हो रही है परन्तु जो यह प्रचार कर रहे हैं उन्हें स्वयं नहीं पता कि वेद और गीता में क्या क्या तथ्य छिपे हुए हैं। अब तो समय ऐसा आ गया है कि हमको इच्छा भी नहीं कि जानें कि जिन किताबों को हम आसमानी किताबें मान रहे हैं और जिन का नाम हम रोजाना लेते हैं, उनमें क्या लिखा है? और क्या उन किताबों में दिए गए संदेश को अपने जीवन में उतारने के अतिरिक्त उनको मानने से कोई लाभ होने वाला है?
कल की मेरी पोस्ट में आप ने ऋग वेद के एक भजन से देखा कि मारूत अर्थात शिव ने मानव शरीर में धरती पर जन्म लिया तो अली कहलाए। कल की मेरी पोस्ट को पढ़ें और समझें कि हमारी वेदों की समझ कितनी अधूरी है। जिस प्रकार शिव ने मानव शरीर में जन्म लिया तो अली कहलाए, उसी प्रकार देवी फातमा कहलाईं और अश्विन अर्थात पार्वती के दो पुत्र हसनैन कहलाए। हसनैन अर्थात हसन और हुसैन। हुसैन जिन्हें करबला में अधर्मी लोगों ने शहीद किया उनको वेद ने अग्निदेव कहा है। ईश्वर की राह में कुरबानी देने को अरबी में आबे कौसर पीना कहा गया है। उसी को वेदों ने सोमरस पीना बताया परन्तु यह न समझ पाने के कारण वेदों को पढ़ने वाले समझते रहें कि स्वर्ग के किसी पेय की बात हो रही है। सोमरस यकीनन स्वर्ग का पेय है और आबे कौसर भी जन्नत के चश्मे के पानी को कहते हैं परन्तु वेद ने जब सोमरस पीने की बात की तो उसका अर्थ ईश्वर की राह में शहीद हो जाना है। तमाम देवताओं का नूर मानवता की पैदाईश से बहुत पहले पैदा किया गया, एक नूर दो में विभाजित हुआ और फिर दो में से एक का हिस्सा दूसरे से मिला तो हिरण्यगर्भ बना और उनमें से दो और नूर निकले और फिर 9 और इनको परमात्मा ने सृष्टि के 14 भागों का हाकिम बना दिया। एक नूर से 14 नूर हो गये और यह 14 उस पहले के एकदम समान थे जिससे विभाजन हुआ था। यह सब तो वेद और उपनिषद में लिखा है। पैगम्बर मौहम्मद ने भी कहा कि मेरा नूर आदम की पैदाईश से बहुत पहले पैदा हुआ, एक नूर दो में बटा तो अली और मौहम्मद का नूर हुए, फिर मौहम्मद के नूर से नूरे फातिमा पैदा हुआ और अली और फातिमा के मिलन से 2 और फिर 9 और अहलेबैत पैदा हुए तो कुल 14 अहलेबैत हो गये जिनके बारे में मौहम्मद ने क्हा कि सबएक समान हैं अर्थात सब का नूर एक समान है और सबका मकसद भी एक ही है।
यदि वेदों की सही समझ के साथ मुसलमानों को आमंत्रित किया जाए तो मुझे नहीं लगता कि किसी भी मुसलमान को आपत्ति होनी चाहिए क्योंकि वेद तो सब कुछ वही कह रहे हैं जो पैगम्बर मौहम्मद ने बताया और कुरान और वेद की शिक्षा में जरा भी अन्तर नहीं है। यही बात योग पर भी लागू होती है। यदि योग को उस मायनी में बताया जाए जिस मायनी में गीता ने बताया तो फिर क्यों किसी को आपत्ति होगी। परन्तु कोई कहे कि सूर्य देव वेदानुसार देवता हैं और हमको उनके आगे सिर झुकाना है तो कोई क्यों कर तैयार हो जाएगा। हकीकत तो यह है कि सूर्य देव के आगे सिर झुकाने वालों को पता ही नहीं कि सूर्य देव कौन हैं, क्या केवल आसमान में दमकते सूर्य को ही सूर्य देव कहा गया है या किसी और देवता को, उस देवता का इस सृष्टि में क्या रोल है और इस समय कहां विराजमान हैं? उनका परमात्मा से क्या रिश्ता है, हम से क्या रिश्ता है और ईश्वर से क्या रिश्ता है? स्वयं उत्तर न होने के बावजूद हम चाहते हैं कि तमाम भारत वह माने जो हम मानते हैं। सच तो यह है कि जिस दिन वेदों की सही समझ हमें हो गई, बाकी भारत को भी उन को मान लेने में कोई आपत्ति नहीं होगी क्योंकि कुरान तो स्वयं हर उस किताब पर यकीन रखने और उसे कुरान के बराबर मानने की बात कर रहा है जिसको ईश्वर की ओर से विश्व के किसी न किसी भाग में भेजा गया। मौहम्मद अलवी को तो इसमें कोई शक नहीं कि वेद आसमानी किताबें हैं और ऐसे ऐसे राज छिपाए हैं कि यदि हम जान जाएं तो हमारी जिन्दगी ही बदल जाए। मुसलमानों को भी चाहिए कि वेदों को पढ़ें और उन में छिपे राजों को जानने की कोशिश करें क्योंकि वेदों के माध्यम से ईश्वर ने वह वह राज हमको दिए कि यदि हम जान जाएं तो हममें कुरान की भी बेहतर समझ पैदा होगी।
जैसा मैंने कहा योग उन कार्यों को कहते हैं जो आत्मा को परमात्मा के समीप करें। यह गीता का योग है। परन्तु पतंजली ने योग को एक व्यायाम में बदल दिया जो न केवल शरीर को बेहतर बनाने का काम करता है बल्कि स्वस्थ शरीर में आत्मा को भी उत्थान देता है कि वह परमात्मा के करीब होने लाएक बन सके। खेद का विषय यह है कि आज हम ने वेदों को केवल शारीरिक व्यायाम ही समझ लिया जो वह नहीं है। शरीर सेहतमंद होना आवश्क है परन्तु यदि वह शरीर रावण या कौरव के साथ खड़ा दिखे तो ऐसे स्वस्थ शरीर से क्या लाभ? आत्मा का उत्थान होगा तो हमारे अन्दर अच्छाईयां बढेंगी और बुराईयां कम होंगी। आत्मा का उत्थान जब ही होगा जब वह परमात्मा के करीब होगी। और इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने काम ईश्वर की याद को बनाए रखते हुए करें। जब ऐसा होगा तो हममें वह सब अच्छाईयां पैदा होंगी जिनकी गीता ने बात की है।
यदि केवल शारिरिक व्यायाम करके शरीर को स्वस्थ कर लिया और आत्मा को परमात्मा से जोड़ने के लिए कुछ नहीं किया तो हो सकता है कि आने वाले समय के कृष्ण अर्जुन से कहें कि यह व्यक्ति मरे हुए के समान है और इस शरीर से आत्मा को अलग कर दो।
आज होने वाले योग उत्सव में से सूर्य नमस्कार निकाल दिया गया है। योग का जो कार्यक्रम बनाना गया है उसके अनुसार सब से पहले एक मंत्र पढ़ा जाएगा और फिर व्यायाम प्रारंभ होगा। जो मंत्र पढ़ा जाएगा वह यह हैः
समगच्छादवम समवादाधवम सम वो मनमसी जनतम देव भागम यथा पूवे संजानना उपासते
इस मंत्र का अंग्रेजी में जो अर्थ बताया गया है वह यह हैः
May you move in harmony; may you speak in unison; let our mind be equanimous like in the beginning; let the divinity manifest in your sacred endeavours
ऐसा बताया जा रहा है कि इस मंत्र में योग करने वालों के साथ साथ लयबद्व तरीके से चलने, साथ साथ बोलने, और मस्तिश्क को एक मार्ग पर लगाने की बात हो रही है ताकि हमारे कार्यों में देवता शामिल हो जाएं।
यदि यह मंत्र पढ़ा जाना है जिसमें देवता का भी उल्लेख है तो फिर क्यों कहा जा रहा है कि योग का किसी धर्म से कोई सम्बंध नहीं? हकीकत तो यह है कि यह मंत्र पढ़ने वालों में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि वे क्या पढ़ रहे हैं और उसका क्या महत्व है?
आईए देखें कि ऋगवेद के दसवें मंडल के 191,2,3,4 मंत्र में क्या कहा जा रहा है।
सं.समिद युवसे वर्षन्नग्ने विश्वान्यर्य आ द्य
इळस पदेसमिध्यसे स नो वसून्या भर द्यद्य
सं गछध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम द्य
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते द्यद्य
समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम द्य
समानं मन्त्रमभि मण्त्रये वः समानेन वोहविषा जुहोमि द्यद्य
समानी व आकूतिः समाना हर्दयानि वः द्य
समानमस्तु वोमनो यथा वः सुसहासति द्यद्य
यह मंत्र अग्नि देव को समर्पित है। क्या बात हो रही है यह न समझ पाने के कारण अनुवादकों ने इसको हम से जोड़ने की कोशिश की है जब्कि हकीकत यह है कि यह मंत्र भी इशारा कर रहा है कि सारे देवता एक समान हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं है। सब की खिलकत भी एक है और सब का मकसद भी एक है। एक नूर से विभाजित हुए 14 नूर के मानव शरीर में इस धरती पर अवतरित होने की बात हो रही है। मेरी कल की पोस्ट आप ने पढ़ी होगी तो आपने देखा होगा कि कैसे देवताओं का नूर फिर से धरती पर जन्म लेगा जैसे बच्चे जन्म लेते हैं।
यदि आप संस्कृत जानते हैं तो स्वयं अनुवाद कीजिए और नहीं जानते तो किसी संस्कृत के जानकार से इस भजन का अनुवाद करवाईए। पहले ही मंत्र का जो अनुवाद होता है वह यह हैः
As young Agnidev who shines with light (made of noor) comes to the universe with others
बात हो रही है जब्कि जिस समय अग्निदेव का नूर मानव शरीर में पृथ्वी पर छोटे बच्चे के रूप में जन्म लेगा और वह नूर हमारे बीच चमकेगा। सब के सब देवता एक के बाद एक धरती पर आएंगे और एक ही स्थान पर आएंगे। वह एक ही बात बोलेंगे, उनका दिमाग एक ही मार्ग पर चलेगा और उन सब का एक ही मकसद अर्थात उद्देश्य होगा। जिस जगह वे अवतरित होंगे वह जगह एक, उनका मकसद एक और उनकी सोच एक।
यही बात पैगम्बर मौहम्मद ने की जब उन्होंने क्हा कि हमारा नूर आदम की खिलकत से हजारों वर्ष पूर्व पैदा हुआ था, वह नूर विभाजित हुआ तो अंत में 14 नूर बने, इनमें से पहला भी मौहम्मद है, आखिरी भी मौहम्मद है, बीच का भी मौहम्मद है, सब के सब मौहम्मद हैं।
अर्थात यह कि नूरानी हस्तियां जिनको दिव्य अर्थात नूर से बने होने के कारण वेदों ने देवता क्हा जब मानव शरीर में आए और अहलेबैत कहलाए तो उन सब का काम करने का ढंग, कथन, उद्देश्य एक ही था। अहलेबैत की जीवनी पढि़ए तो आप जानेंगे कि कैसे यह केवल ईश्वर की इबादत और उस तक पहुंचने के मार्ग को प्रजवलित करने के लिए अपनी तमाम जिन्दगी कोशिश करते रहे। नूरानी हस्तियां मानव शरीर में धरती पर आईं तो जुलमत ने सारी ताकतें लगा दीं कि वे ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग को प्रजवलित करने अर्थात मोक्ष के मार्ग को दिखा पाने में कामयाब न हो पाएं। ऐसा उसने इसलिए किया कि नूर के मार्ग पर मानवता के आ जाने से ही जुलमत अर्थात तमस की हार है। अग्नि देव को अपने मित्रों और परिवार जनों के साथ ऐसी क्रूरता से शहीद किया गया कि आज तक इतनी क्रूरता और बरबरता से किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं मारा गया होगा। जब जब नूर ने मार्ग प्रजवलित करने की कोशिश की है, जुलमत ने अपनी तमाम ताकतें उस मार्ग से हमको बहकाने के लिए लगा दी हैं। उस मार्ग को पहचान लेने और उसपर चलकर ईश्वर से जुड़ जाने का नाम ही योग है।
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