Sunday, 12 January 2014

मुसलमान इस हालत को पहुंच गए हैं कि उनकी कुरान और इस्लाम की समझ अधूरी है

पंडित महेंद्र पाल आर्य मुसलमानों की दुश्मनी में निरंतर ऐसी बातें पोस्ट करते रहते हैं तो मुसलमानों और इस्लाम का अनादर करती हैं। मुसलमानों की मौजूदा बदहाली ऐसी है कि उसने बहुतेरों को इस्लाम का भी दुश्मन बना दिया और इस हद तक ले आया कि वे मौहम्मद और अल्लाह पर भी हमले करने लगे हैं बिना यह जाने की मौहम्मद का संबंध स्वयं उनके धर्म से है और अल्लाह स्वयं उनकी किताबों का ईश्वर है। मैं ने पंडित जी की कुछ टिप्पण्यिों का उत्तर देना चाहा तो उन्होंने अपनी पोस्ट से उसे डिलीट कर दिया जो इस बात का सबूत था कि पंडित जी तार्किक उत्तर जो उन्हें निरूत्तर कर दें वह सुनना पसन्द नहीं करते।

हकीकत यह है कि मुसलमान इस हालत को पहुंच गए हैं कि उनकी कुरान और इस्लाम की समझ अधूरी है और अधिकतर मुसलमान उसकी शिक्षा के पालन से बहुत दूर हैं। यही कारण है कि पंडित जी जैसे लोग मुसलमानों से गृणा में इतना आगे बढ़ जाते हैं कि मौहम्मद और अल्लाह पर भी कटांक्ष लिखने या बोलने लग जाते हैं।

परन्तु हकीकत यह भी है कि पंडित जी ने मुसलमानों पर आरोप लगाने की खातिर कुरान और अन्य किताबें जितनी गहराई से पढ़ी हैं इतनी स्वयं बहुतेरे मुसलमान भी नहीं पढ़ते। अफसोस की बात है तो केवल यह कि उन्होंने कुरान आदि को केवल उस में बुराई देखने की नीयत से पढ़ा और इसी लिए उसमें उन्हें कोई दूसरी शिक्षा दिखाई नहीं दी। पर जिस गहराई से उन्होंने इन किताबों को पढ़ा है वह कभी कभी मुझे उनके लिए आदरभाव रखने पर मजबूर करती है खास कर तब जब उनके आरोप स्वयं उन बातों को साबित करते हैं जो मैं कहता हूं। मैं अपनी कुरान की थोड़ी बहुत समझ पर यह साबित करने की कोशिश करता हूं कि मुसलमानों ने कुरान को समझने में कहां कहां गलती की। कभी कभी पंडित जी अपने आरोपों द्वारा वही कह जाते हैं जो मैं कहने की कोशिश करता रहा हूं। सत्य तो यह है कि अपनी मौजूदा समझ के चलते अधिकतर मुसलमानों के पास बहुतेरे प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं। ऐसे कई प्रश्न मैं समय समय पर पूछता भी रहता हूं।

आज पंडित जी की ऐसी ही पोस्ट देखने को मिली जो वही कुछ कहती दिखती है जो मैं कहता आया हूं। यह पोस्ट आवागमन और पुनर्जन्म के विषय में है। हालांकि यहां यह लिख देना आवश्यक है कि कुरान में पुनर्जन्म मौजूद तो है जिसको मुसलमान समझ नहीं पाए परन्तु जिस प्रकार मुसलमान पुनर्जन्म को पूरी तरह समझ नहीं पाए उसी प्रकार हिन्दू भी पुनर्जन्म को पूरी तरह समझ नहीं पाए। कुरान में पुनर्जन्म और वेदों और उपनिषद में पुनर्जन्म एक ही अर्थ में ब्यान किया गया है परन्तु हिन्दुओं की पुनर्जन्म के बारे में कई मान्यताएं वेद और उपनिषद की शिक्षा से भिन्न हैं ठीक उसी प्रकार जैसे मुसलमानों की कई प्रचलित मान्यताएं कुरान की शिक्षा से भिन्न हैं। कुरान, वेद, उपनिषद और गीता की असली शिक्षा में कोई अन्तर नहीं परन्तु यह अवश्य नहीं कि मुसलमानों की कुरान की समझ और हिन्दुओं की वेद, उपनिषद और गीता की समझ एक ही राह पर हो।

पंडित जी की जितनी बात से मैं सहमत हूं वह यह हैः ‘‘कुरान में भी पुनर जन्म है?... भले ही इस्लाम वाले इस बात को माने इस बात को कुरान से ही हम देखते है की अल्लाह का फरमान क्या है | مَآ اَصَابَكَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ اللّٰهِ ۡ وَمَآ اَصَابَكَ مِنْ سَيِّئَةٍ فَمِنْ نَّفْسِكَ ۭوَاَرْسَلْنٰكَ لِلنَّاسِ رَسُوْلًا ۭ وَكَفٰى بِاللّٰهِ شَهِيْدًا 79؀ جو بھی کوئی بھلائی پہنچتی ہے تجھے (اے انسان !) تو وہ اللہ ہی کی طرف سے (اور اسی کے فضل سے) ہوتی ہے اور جو بھی کوئی بدحالی پیش آتی ہے تجھے تو وہ تیری اپنی ہی وجہ سے ہوتی ہے اور ہم نے (بہر حال اے پیغمبر صلی اللہ علیہ وسلم !) آپ کو بھیجا ہے سب لوگوں کے لیے رسول بناکر، اور کافی ہے اللہ گواہی دینے کو، ف۳  यह कर्म को बताया गया की जो कोई भला है वह महज़ अल्लाह की तरफ से है और जो बुराई है वह तेरे काम का ही सबब है | كَيْفَ تَكْفُرُوْنَ بِاللّٰهِ وَكُنْتُمْ اَمْوَاتًا فَاَحْيَاكُمْ ۚ ثُمَّ يُمِيْتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيْكُمْ ثُمَّ اِلَيْهِ تُرْجَعُوْنَ 28؀تم کیسے کفر کرتے ہو اللہ کے ساتھ (اے منکرو!) حالانکہ تم بےجان تھے تو اس نے تمہیں زندگی (کی یہ عظیم الشان نعمت) بخشی پھر وہی تمہیں موت دیتا ہے (اور دے گا) اور وہی تمہیں زندگی بخشتا ہے (اور بخشے گا) ف٤ پھر اسی کی طرف تم لو ٹائے جاتے ہو (اور لوٹائے جاؤ گے) قُلْ هَلْ اُنَبِّئُكُمْ بِشَرٍّ مِّنْ ذٰلِكَ مَثُوْبَةً عِنْدَ اللّٰهِ ۭ مَنْ لَّعَنَهُ اللّٰهُ وَغَضِبَ عَلَيْهِ وَجَعَلَ مِنْهُمُ الْقِرَدَةَ وَالْخَـنَازِيْرَ وَعَبَدَ الطَّاغُوْتَ ۭ اُولٰۗىِٕكَ شَرٌّ مَّكَانًا وَّاَضَلُّ عَنْ سَوَاۗءِ السَّبِيْلِ 60؀ان سے) کہو کہ کیا میں تمہیں ان لوگوں کی خبر نہ دوں جن کا انجام اللہ کے یہاں اس سے کہیں زیادہ برا ہے؟ وہ جن پر اللہ کی لعنت (اور پھٹکار) ہوئی، اور ان پر غضب ٹوٹا اس کا، اور ان میں سے کچھ کو اس نے بندر بنا دیا اور کچھ کو خنزیر، اور جنہوں نے پوجا کی شیطان کی، یہ ہیں وہ لوگ جن کا ٹھکانا بھی سب سے برا ہے، اور جو راہ راست سے بھی سب سے زیادہ بھٹکے ہوئے ہیں، ف٤  अब देखें मैंने 2 जगह का हवाला दिया सूरा बकर आयत 28 में कहा गया तुम बे जान थे मैंने जिन्दा किया फिर मौत देता है और वही तुम्हे जिन्दा करता है फिर उसीके तरफ लौटना है|” दूसरा प्रमाण है सूरा मायदा आयात 60 का कहो के क्या मै तुम्हें उन लोगों की खबर दूँ जिनका अंजाम अल्लाह के यहाँ उससे कहीं ज्यादा बुरा है, वह जिन पर अल्लाह की लानत और फटकार हुई और उन पर गजब टुटा और उसमे से कुछ को बन्दर बनादिया और कुछ को सुवर जिन्हों ने पूजा की शैतान की | यह वह लोग है जिनका ठेकाना सबसे बुरा है और जो राहे रास्त से ज्यादा भटके हुए हैं |” अल्लाह ने उन्हें बन्दर और सुवर बनाने वाला है किसको जो शैतान की पूजा की, अब सवाल यह है की अल्लाह बन्दर और सुवर बना कर उन्हें कहाँ रखेंगे? ज़न्नत में तो ज़रूरी नहीं तो बन्दर और सुवर का काम भी नहीं वहां तो ज़रूरी है की  दुनिया में ही आना पड़ेगा | यह सजा अल्लाह उनको देंगे बन्दर और सुवर बनाकर की जो शैतान का अनूगामी होगा शैतान का कहना मानेगा पर तो यह सजा मरने के बाद ही उसे जिन्दा करके देंगे तो मार कर जिन्दा कर उसे सजा दिया तो पुनर जन्म ही तो हुवा|”

इससे संबंधित पंडित जी ने अन्य बातें जो की हैं वह उनकी स्वयं की वेदों की आधी अधूरी समझ के कारण हैं। पर यह प्रश्न जो पंडित जी ने पूछे हैं वह तो मेरे भी हैं। बल्कि मैं तो इस विषय पर अनेक अन्य प्रश्न पूछ सकता हूं जिसका उत्तर मुसलमानों के पास नहीं।

आईए केवल एक उदाहरण देता हूं। कुरान से! सूरह नूर की तीसरी आयत कहती हैः ‘‘जि़ना करने वाला मर्द तो जि़ना करने वाली ही औरत या मुश्रिका से निकाह करेगा और जिना करने वाली औरत भी बस जि़ना करने वाले ही मर्द या मुश्रिक से निकाह करेगी, और सच्चे ईमानदारों पर तो इस किस्म के ताल्लुकात हराम हैं।’’

जि़ना अर्थात adultery or those who keep illicit relationship. इस आयत पर टिप्पणी करते हुए मौलाना फरमान हुसैन लिखते हैं कि ‘‘यह हुक्म नहीं है बल्कि उनकी हालत का ब्यान है और यह जाहिर भी है क्योंकि अच्छा आदमी बुरों से मिलने ही क्यों लगा कि इरतेबात और निकाह की नौबत पहुंचे।’’

ऐसी ही आयत सूरह नूर की 26वीं आयत है जो कहती हैः ‘‘गंदी औरतें गंदे मर्दों के लिए हैं और गंदे मर्द गंदी औरतों के लिए और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए।’’

इस पर भी टिप्पणी करते हुए मौलाना फरमान हुसैन लिखते हैं कि ‘‘यह भी हुक्म नहीं है बल्कि इज़हारे वाकेया और ब्याने फितरत है मतलब यह है कि अच्छा अच्छे ही को पसन्द करेगा और बुरा बुरे को सच है।’’

फरमान साहब ने कोई गलत बात नहीं लिखी परन्तु वह नहीं लिखा जो यह आयत कह रही है। आयत साफ शब्दों में कह रही है कि जि़ना करने वाला मर्द केवल जि़ना करने वाली औरत या मुश्रिका से ही निकाह करेगा और जि़ना करने वाली औरत केवल जि़ना करने वाले मर्द या मुश्रिक से निकाह करेगी। और ऐसा ही 26वीं आयत में भी कहा जा रहा है।

यदि फरमान साहब की बात सही मानें तो उन अनेक मर्द या औरतों का क्या होगा जो स्वयं तो पाक जि़न्दगी गुज़ार रहे थे परन्तु उनका साथी दग़ाबाज़ मिला। आज के समाज में कितने ही मर्द और औरतें ऐसे हैं जो स्वयं साफ सुथरे चाल चलन वाले हैं परन्तु अपने पार्टनर की बदचलनी के कारण कुंठित हैं। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि कुरान की आयत झूटी हो। मुसलमानों को इन दोनों आयतों को समझने के लिए पुनर्जन्म को अपनाना होगा। अर्थात यदि आज कोई जि़ना कर रहा है तो उसका साथी है वह भी इस जन्म में सही पिछले जन्म में जि़ना कर चुका है। पिछले जन्म में तुम्हारे जि़ना के कारण तुम्हारे पार्टनर को पीड़ा उठानी पड़ी थी, आज तुम्हारे पार्टनर के कारण तुम्हें पीड़ा उठानी पड़ रही है। कहा जाता है कि जोड़े ईश्वर की ओर से बनते हैं और वह जानता है कि कौन आत्मा किस स्तर पर है और एक प्रकार के लेवल पर जो आत्माएं हैं उनको जोड़ा बना देता है। इस आयत से यह अर्थ समझ में आता है कि यदि किसी मर्द ने जि़ना किया है तो इसका अर्थ यह है कि उसकी पत्नी ने भी किसी समय पर, भले ही पिछले किसी जन्म में, जि़ना किया होगा और ऐसा ही दूसरी स्थिति में होगा।

कुरान जितने साफ शब्दों में अपनी बात कह रहा है उसको यदि आप मेरे अर्थ पहनाएं तो फिर कुरान की आयत सब जगह लागू होती नहीं दिखाई देगी। मेरे द्वारा निकाला गया अर्थ एक और कानून की ओर इशारा करता है जो मुस्लिम उलमा नाफिज करते हैं। इस्लामी कानून है कि जि़ना से या शादी के बंधन के बिना पैदा हुआ बच्चा भले ही बड़ा होकर कितना ही इबादतगुज़ार क्यों बन जाए, वह इमामत नहीं कर सकता। क्यों? प्रश्न उठेगा कि उस बच्चे की क्या गलती? उसके मां बाप ने यदि कुकर्म किया तो उसकी सज़ा बच्चे को क्यों मिले। कुरान तो बाप की सज़ा बच्चे और बच्चे की सज़ा बाप को देने की बात नहीं करता। पैगम्बर नूह का बेटा गुनाहगार था तो इसमें नूह का क्या दोष? इसी प्रकार मुश्रिक बाप का बेटा यदि सही रास्ते पर हो तो उसे बाप के कर्म की सज़ा नहीं मिलना है। परन्तु जि़ना या शादी के बंधन से बाहर पैदा हुए बच्चे के लिए ऐसा हुक्म क्यों? इसका कोई अर्थ नहीं निकाला जा सकता सिवाय यह कि जि़ना करने वाले मां बाप के घर जो बच्चा पैदा हुआ उसके शरीर में वह आत्मा डाली गई जिसने पहले कभी जि़ना के द्वारा बच्चा पैदा किया हो। यदि इसके अतिरिक्त कोई दूसरा अर्थ निकल रहा हो तो मेरा मार्ग दर्शन करने की चेष्टा करें।

इसी तर्क के कारण मैं नसीहत करता हूं कि हम को किसी भी धर्म के मानने वालों से दुश्मनी इतनी बढ़ाना चाहिए कि जब दूरियां बहुत बढ़ जाएं, लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं, बच्चों का कत्ल और औरतों का बलात्कार तक होने को जाएज ठहराने लगें तो ईश्वर मर्णोपरंात हमारी आत्मा को उस दूसरे धर्म के मानने वालों के घर में पैदा करदे जिसके खिलाफ नफरतें बढ़ाने में हमने जीतोड़ कोशिश की थी। यही ईश्वर का नियम दिखाई दे रहा है। ऐसा कुरान से भी साबित दिख रहा है जो कहता है कि ईश्वर रत्ती बराबर भी नाइंसाफी नहीं करता!

मुझे पता है कि मेरे द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क मुसलमानों के लिए पचा पाना आसान नहीं। प्रश्न करें ताकि मैं आपके सामने कुरान और हदीस से अन्य आयतें प्रस्तुत करूं।

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