Wednesday, 28 January 2015

आज फिर फेसबुक पर किसी ने श्री राम के द्वारा सीता को घर से निकाले जाने को लेकर टिप्पणी की

आज फिर फेसबुक पर किसी ने श्री राम के द्वारा सीता को घर से निकाले जाने को लेकर टिप्पणी की। लिखने वाले ने इसको स्त्रियों का अपमान बताया। मुझे बहुत बुरा लगा। कुछ ही दिन पहले मेरे एक हिन्दु मित्र ने एक मेल द्वारा लिखा थाः ‘‘मेरी नजरों में रावण ठीक था। जिसने सीता को हाथ तक नहीं लगाया। जब्कि उसकी बहन की नाक काटी गयी थी। तब भी उसने सीता को कुछ नहीं किया। भाई जी मैं रावण को ठीक मानता हूं। राम से बड़ा योगी था रावण। राम ने रावण को नहीं मारा। रावण खुद राम के हाथों मरना चाहता था।’’ फिर उन्होंने एक धोबी के कहने पर सीता को घर से निकाले जाने को लेकर राम पर आरोप लगाया। मैं ने उन्हें समझाने की कोशिश की पर उनको समझ में नहीं आया।

इसलिए आवश्यक है कि मैं 14 अगस्त 2012 और 3 सितम्बर 2012 को की गई अपनी पोस्ट्स को जिसमें राम और सीता का उल्लेख था फिर से पोस्ट कर रहा हूं। ईश्वर हम को सदबुद्धि दे कि हम उन लोगों को जिनका देवताओं और परमात्मा से सीधा सम्बंध था ठीक से पहचान सकें। जो कोई भी ईश्वर के किसी दूत से लड़ने उसके सामने आ गया उसके तमाम अच्छे कर्म भी नष्ट हो गये। भले ही रावण ने सारी जिन्दगी अच्छे कर्म किए हों यदि वह राम से लड़ने आ गया तो उसके कर्म ऐसे ही नष्ट हुए जैसे कुरान में लिखा है कि कई हजार वर्ष ईश्वर की इबादत करने के बाद इब्लीस ईश्वर के एक हुक्म को न मान कर शैतान बन गया। पुराण में लिखा है कि राम का एक वंशज कृष्ण के समक्ष लड़ने आ गया और कृष्ण से लड़ते हुए मारा गया। भले ही वह राम का वंशज क्यों न हो यदि किसी और अवतार के समक्ष लड़ने आ गया तो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह राम का वंशज था, वह धर्म भ्रष्ट था। इसी प्रकार जो कोई भी अहलेबैत के मुकाबले में लड़ने आया वह धर्मभ्रष्ट है, भले ही वह मुसलमानों की नजर में कितना ही बाइज्जत क्यों ने हो।

पढि़ए 14 अगस्त 2012 की मेरी पोस्ट और फिर पढि़ए 3 सितम्बर 2012 की पोस्ट मेरी टाईमलाईन परः-

14 अगस्त 2012 की पोस्ट में मैंने लिखा थाः-

अपने प्यारे देशवासियों से संबो¬¬धन

दोस्तो आज जब हम अपने प्यारे वतन हिन्दुस्तान की आजादी की वर्षगांठ मना रहे हैं, यह आवश्यक हो जाता है कि कुछ कड़वी बातें की जाएं। ईश्वर ने हम को इंसान बनाया। हम को अक़्ल दी जो हम को सब से बेहतर बनाती है। वह चाहता है कि हम प्रेम से रहें। जब तक हम ने ईश्वर की दी हुई अकल से अपना मार्ग चुनना चाहा, हम सही रास्ते पर रहे, जब हम ने दिल की सुनना शुरू कर दी, हम भटक गए। क्योंकि शैतान की पहुंच दिल तक है, दिमाग तक नहीं। उसने हम को हर तरह की बुराईयों में डाल दिया।

जरा सोचिए हम क्हां आ गए है। आज हमारे देश में या विश्व के किसी कोने में किसी औरत की इज्जत लूटी जा रही हो, किसी लड़की को नंगा करके सड़कों पर घुमाया जा रहा हो, बच्चों के सामने उनके मां बाप को मारा जा रहा हो या किसी बेगुनाह का हक छीना जा रहा हो, हम को कोई फर्क नहीं पड़ता यदि वह किसी दूसरे देश, किसी दूसरे धर्म या किसी दूसरी जाति का हो। क्योंकि हम को केवल वहीं फर्क पड़ता है जब हमारे किसी अपने के साथ ऐसा हो। अपनी संकीर्ण मानसिकते के चलते हम ने ‘अपना’ शब्द को अपने बहुत करीब सीमित कर लिया।

पर ईश्वर को फर्क पड़ता है। हर आत्मा का सम्बंध उससे है। जब कभी भी कोई आत्मा दुखी होती है, कहीं से कोई आह निकलती है, ईश्वर को दुख होता है। क्या उसने अकल दी तो इसलिए कि हम उसका उपयोग करने की जगह एक दूसरे को दुखी करने में लग जाएं।

बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है। अपनी पत्नी के कारण हम अपने ही भाई से विवाद करते हैं। अपने बेटे के लिए और अधिक धन जमा करने की इच्छा में हम गरीब मजदूर का हक मार लेते हैं जिसके बच्चे दिन भर इंतेजार में रहते हैं कि शाम को बाप कमाई करके घर आएगा तो चटनी रोटी खाने को मिलेगी। अपनी वास्ना की पूर्ती के लिए हम दूसरे की बहु बेटी तलाशते हैं जब्कि ‘अपनी’ बहु बेटियां घर में होती हैं।

इस देश में मर्यादा पुरूषोत्तम राम गुजरे हैं जिन्होंने छोटी सी मर्यादा का पालन करने के लिए अपनी प्यारी पत्नी और दो प्यारे बच्चों को त्याग देना कुबूल किया। इसलिए कि ‘अपनी’ और ‘अपनों’ के मोह की जगह वह इंसाफ और सच्चाई के परस्तार थे। वह मर्यादा के पालक थे, इसलिए मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाए। इस देश के लोगों ने कितनी ही बार हक और इंसाफ के लिए खड़े होकर हर ‘अपनी’ चीज, यहां तक कि अपने प्राण भी त्याग देना पसन्द किए है। जहां दुनिया में आए दूसरे पैगम्बर आरी से काटे जा रहे थे, सूली पर लटकाए जा रहे थे और जिन्दा आग में डाले जा रहे थे, इस देश ने राम और कृष्ण और न जाने कितने दूसरों के साथ हक और इंसाफ की आवाज उठाई है और जीत हासिल की है। पर आज हम दूसरों के रास्ते पर चलने की कोशिश में अपना ही रास्ता भूलते जा रहे हैं।

आज सब दिलों पर शैतान का बसेरा है। वह गर्व से घूम रहा है कि उसने हिन्दुस्तान जैसे शांतिप्रिय देश में नफरत के बीज बो दिए, उसने हक और इंसाफ की आवाज उठाने वालों को केवल अपने लिए सोचने वाला स्वार्थी बना दिया, उसने मर्यादा पुरूषोत्तम को अपना राहबर समझने वालों की जिन्दगी से हर मर्यादा को छीन लिया।

ईश्वर बहुत समय से हालात को खराब होते देख रहा है। कृष्ण ने गीता में क्हा है कि हमारे कर्म इस दुनिया की बरबादी का कारण बनेंगे। हर इंसान उसका प्रिय है, उसका ‘अपना’ है। जब किसी इंसान के अन्दर से आह निकलती है, उसका गुस्सा बढ़ जाता है। जब कोई भूखा सोता है, वह कहता है कि क्या मैं ने इस दुनिया में हर एक के लिए खाने का इंतेज़ाम नहीं किया। क्या बच्चे के दुनिया में आने से पहले मैं ने मां की छाती के अन्दर उसके लिए खाना पैदा नहीं किया। जब मैं छोटे से बच्चे के लिए पहले से उसके खाने का इंतेजाम कर सकता हू तो मैं हर इंसान के लिए ऐसा क्यों नहीं करूंगा। अपनों की चाहत में तुम ने ‘दूसरों’ की चिंता छोड़ दी, अपने ही रब की चिंता छोड़ दी। तुम भूल गए तुम सब इंसान हो, सब तुम्हारे अपने हैं, तुम्हारे ही ईश्वर के हैं।

3 सितम्बर 2012 की पोस्ट में मैंने लिखा थाः-

तुम से सवाल है, ये बताओ कि मजहब यानी धर्म किसी इंसान या उसके नाम से बनता है या उसके खुदाई पैगाम से? क्या किसी पैगम्बर, अवतार या ईमाम को चाह कर धर्म पूरा होता है या उसके पैगाम को चाह कर?

मूसा पैगम्बर थे लेकिन उनके चाहने वालों ने उन्हें अपना जैसा इंसान माना तो खुदा ने उन्हें फेल कर दिया।

ईसा भी पैगम्बर थे लेकिन उनके चाहने वालों को खुदा ने ईमान वालों की लिस्ट से बाहर कर दिया क्योंकि उन्होंने उनके नाम को चाहा और उनके नाम पर अपना धर्म बनाया। उनके पैगाम को चाहा होता तो उतनी ही मौहब्बत खुदा से की होती और जो भी वो पैगम्बर पैगाम दे रहा होता उसे ज्यों का त्यों माना होता। मित्ती की इंजील 7ः21-27 कहती हैः

‘‘जो मुझ से ऐ खुदावंद ऐ खुदावंद कहते हैं उन में से हर एक आसमान की बादशाही में दाखिल न होगा मगर वही जो मेरे आसमानी बाप की मर्जी पर चलता है। उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे ऐ खुदावंद ऐ खुदावंद! क्या हम ने तेरे नाम से नुबूवत नहीं की और तेरे नाम से बदरूहों को नहीं निकाला और तेरे नाम से बहुत से मोजिज़े नहीं दिखाए। उस वक्त मैं उनसे साफ कह दूंगा कि मेरी कभी तुम से वाक़फियत न थी ऐ बदकारों मेरे पास से चले जाओ। पस जो कोई मेरी ये बातें सुनता और उन पर अमल करता है वो उस अकलमंद आदमी की मानिंद ठहरेगा जिस ने चट्टान पर अपना घर बनाया। और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आंधियां चलीं और उस घर पर टककरें लगीं लेकिन वो न गिरा क्योंकि उस की बुनियाद चट्टान पर डाली गई थी। और जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर अमल नहीं करता वो उस बेवकूफ आदमी की मानिंद ठहरेगा जिस ने अपना घर रेत पर बनाया। और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आंधियां चलीं और उस घर को सदमा पहुंचाया और वो गिर गया और बिलकुल बरबाद हो गया।’’

हर दौर में लोग इंसानी जिस्मों और नामों को चाहते रहे और उनके पैगाम को भुलाते गए। कुछ लोगों ने अली को चाहा और कुछ लोगों ने तीन सहाबा कराम को। आपसी रंजिश मजहब बन गई। नाम और जिस्म न रहने वाली चीजें थीं। रूह को चाहते तो उन पैगामों को चाहते जो हमेशा हमेशा रहने वाली चीज होती। रूहों से मौहब्बत करते तो खुदा की ताकत और खुदा की रहमत दिखाई देती। जिस्मों को चाहा, जिस्मों से मौहब्बत की तो सिर्फ नफरतें दिखाई दीं। रूहों से मौहब्बत की होती तो खुद अपने में और अपनों में कमियां दिखाई देतीं, रूह ने तरक्की की होती तो हर तरफ मौहब्बत दिखाई देती, अम्न दिखाई देता, जिस्म को चाहा तो सिर्फ नफरतें दिखाई दीं।

इसी तरह क्या राम का पैगाम वही नहीं है जो हर पैगम्बर ने दिया। किसी का दिल न दुखाओ। स्वयं तकलीफ झेल लो, सब्र कर लो बड़ी से बड़ी मुसीबत पर लेकिन अपने कारण किसी दूसरे को तकलीफ न पहुंचाओ। बड़ों का अदब करो चाहे तुम्हारी सौतेली मां ही क्यों न हो। क्या ये सिर्फ खुदाई अहकाम नहीं थे जिन पर और पैगम्बरों की तरह खुद राम ने चल कर दिखाया। फिर खुदा ने सब्र का इम्तेहान ले कर सब के दिलों में और खुद उस सौतेली मां के दिल में मौहब्बत डाल दी। क्या राम खुदा के खास बन्दे नहीं थे? खास हिन्दुस्तान में एक पैगम्बर! और जब सारे इम्तेहान यानी परीक्षाएं दे कर इज़्ज़त के साथ घर लौटे तो एक धोबी अपनी बीवी पर - सीता की मिसाल दे कर - ऐब लगा कर निकालता है कि मैं राम जैसा पति नहीं हूं। क्या एक दुनियावी राजा ऐसा करता कि वो समाज को अपना बनाने के लिए अपनी चाहने वाली बीवी को इस तरह दूर कर देता और बच्चों को मौहब्बत और ऐश-ओ-इश्रत देने की जगह अपने से दूर कर देता। या उस धोबी को ही खत्म करवा देता कि तुम्हारी जुरअत कैसे हुई मेरी बीवी की मिसाल देने की?

कुछ लोग कहते हैं कि राम थे ही नहीं। अगर नहीं थे तो लोगों के दिलों में उनके लिए इतनी मौहब्बत कैसे हुई? बनी बनाई कहानी इतना नहीं बढ़ती कि आज हिन्दुस्तान के कोने कोने में उस नाम से मौहब्बत है। इज्जत और जिल्लत खुदा के हाथ में है। जब तक खुदा किसी नाम को बढ़ाने में मदद न करे वो किसी का भी नाम हो नहीं बढ़ सकता। क्या राम की जिन्दगी आप को किसी पैगम्बर यानी अवतार का पैगाम नहीं देती?

जब नूह ने खुदा के हुक्म से किश्ती बनाई और पैगाम दिया खुदा का कि आओ जो इस किश्ती पर सवार हो जाएगा वो बच जाएगा नही ंतो तूफान आएगा और सबको बहा कर ले जाएगा उस वक्त खुदा का मकसद यही था कि जो कौम खुदा का पैगाम नहीं मान रही है उसको गर्क कर दिया जाए और ईमान वाले बचा लिए जाएं। जो भरोसा कर रहे थे कि नूह की जबान से जो कलाम निकल रहा है वो खुदा का कलाम है वो बच गए और जिन्होंने नूह के पैगाम को आम इंसान का पैगाम माना और खुदा का पैगाम देने वाले को झूटा क्हा वो पानी में डूब कर मर गए। इन लोगों को खुदा के कलाम से ज्यादा अपनी बात की सच्चाई पर यकीन था। ऐसे लोग हर दौर में खुदा के नजदीक ईमान वालों की लिस्ट से बाहर कर चले जाएंगे, चाहे वो खुदा नूह का बेटा ही क्यों न हो। उस ने उस पैगाम को अपने बाप की बात माना और खुदा का कलाम नहीं माना, तो वो भी गर्क हुआ।

जब भी कोई पैगम्बर आया, लोगों ने उससे मौहब्बत शुरू कर दी और यह भूल गए कि खुदा अपने बन्दों तक अपना पैगाम देने के लिए पैगम्बर भेजता है। मौहब्बत खुदा और उसके कलाम से करना चाहिए न कि खत्म होने वालो जिस्मों से। जो जिस्मानी रिश्तों की मौहब्बत में पड़ गया वही ईमान से दूर होता चला गया। यानी असली ईमान खुदा और उसका पैगाम है चाहे वो किसी भी पैगम्बर के माध्यम से आए हों। हजरत आदम हों या जनाबे मूसा, ईसा हों या इब्राहीम - राम हों या मौहम्मद।

इसी तरह राम जी जिन्हें लोग राजा कहते हैं अस्ल में रूहानी बादशाह थे जिन्होंने दिलों पर हुकूमत की थी रूह के जरिए, इसीलिए धोबी के घर को तबाह नहीं किया बल्कि अपने घर को तबाह कर लिया। बुराई से बचिए, यह खुदा का पैगाम दिया, अपनी खुशियों को मिटा कर, जिसकी वजह से उस कुरबानी को खुदा ने बेकार नहीं करना चाहा और उस नाम को मिटने नहीं दिया।

इसी तरह इमाम हुसैन ने जो कुरबानी दी थी वो औलाद की कुरबानी थी यह दिखाने के लिए कि अल्लाह की राह से न हटो चाहे कोई पैसा देकर भी हटाना चाहे या चाहने वालों की जानों की धमकियां देकर - यहां तक कि औलाद की जानों तक भी बात आ जाए - यह न देखो ये मेरा छह महीने का बच्चा मां की गोद में नहीं रहेगा, यह ने देखो अभी तो मेरे इस जवान बच्चे की शादी भी नहीं हुई और खुदा का पैगाम बचाने के लिए यह भी न सोचो मेरे बाद मेरे घर वालों का क्या होगा, सिर्फ यह दिखा दो कि मुझे अल्लाह के पैगाम से ज्यादा किसी की मौहब्बत नहीं, जो पैगाम पैगम्बरे खुदा ने दिया है कुरआन के माध्यम से, क्योंकि पैगम्बरे खुदा की वफात के बाद फिर से मजहब बनने लगे थे जिस्मों और नामों को चाह कर इसलिए यह शहादत थी इस दुनिया को यह पैगाम देने के लिए कि खुदा की राह दिखाने के लिए अपने घर अपनी औलाद को भी न देखो - फिर भी भूल गई यह दुनिया और समझ में न आ सका कि असली मकसद हुसैन की कुरबानी का क्या था।

Monday, 26 January 2015

Idol worship and Muslims

Dear Friend, you asked a very pertinent question when you said: "If Vedas and Quran are from the same source, why does it is said in following Hadith that before Day of Judgement people will start worshipping idols which is considered a "Shirk"?
Aisha (R.A) reported: “I heard Allah’s Messenger (P.B.U.H) as saying: The (system) of night and day would not end until the people have taken to the worship of Lat and ‘Uzza.” [Muslim]"

First and foremost, I must congratulate you for continuing the search of truth to the extent that you are even reading books of traditions. I have not seen the aforementioned tradition but if you have mentioned it, it must surely be in some book.

Let us first see what is meant by 'shirk'. Shirk means bringing in somebody else as companion or equivalent to God. Muslims believe in One Absolute God, who is formless, omnipresent and all powerful. This is exactly the concept of Mahesh or Ishwar or Absolute God mentioned in the Upanishads. Therefore, it is wrong to say that Hindu scriptures don't have a concept of Formless, Omnipresent and All Powerful One God of Universe.

What is truth though is that all Hindus do not understand the concept of One God and worship the idols of deities, who were in truth not Absolute God, but definitely Divine Beings having some connection with God. Since they are not God themselves, worshiping them as God is akin to creating a duality with God and this is the reason why certain Muslims go to the extreme of criticizing the Hindus for idol worship.

To give an example, the idol of Krishna is worshiped. I can give great proofs to show that Krishna is not God; but the truth is that the Manifest Self created by Absolute God viz. Paramatma was speaking from the body of Krishna, thereby meaning that Divine Light was working in his body. But even Gita is referring to Absolute God in Third Person who is the creator of Manifest Self or Paramatma too.

Show me one place in Gita or any Divine Book where it is written that idol of Krishna may be worshiped. In Gita, Krishna says in Gita that Paramatma i.e. Manifest Self need to be worshiped and tells that worshiping the Devatas is an unorthodox form of worship.

The fight between Krishna and Kauravas was also for this reason alone. The Kauravas as well as the Brahmins of the period had started worshiping the Devatas of Vedas but Krishna, though he endorsed the sanctity of Devatas in Divine Plan, talked of worshiping the Manifest Self or Paramatma. It was this teaching of Krishna and his criticism of Kaurava worshiping Devatas as well as other powers which led to Kauravas coming to fight Krishna. The purpose of showing the Divine Image to Arjuna was that all the powers that people of the time were worshiping were in fact subservient to the Manifest Self and hence only Paramatma or Absolute God should be worshiped. Will you disagree with this? Have you ever formed an idol of Paramatma? No! If there is no idol of Paramatma formed, it shows that the idols that we are worshiping as gods are idols of beings inferior to Paramatma.

It all depends on what is your intent. Quran also says that one should pay respect to shayrallah. Shayrallah are people or things which lead us to God. Therefore, if our intent is to pay respect to Krishna or Rama because they were the people who will lead us to Absolute God, then there is no issue but if the intent is to worship them as gods and also worship Devatas as gods, then that is equivalent to creating duality with the Absolute God and hence comes in the ambit of 'shirk'.

Tell me one place in Vedas where idol worship is sanctioned. Krishna left Gita after him. Tell me one place in Gita where Krishna is talking of or giving sanction to worship of his own idol. There are Upanishads which describe Rama's conversation with Hanuman. Read them; Rama is talking of a higher power. When Rama and Krishna are confessing of higher powers over them, how can we consider them as gods.

The divinities were introduced all across the world at one point of time. They were introduced as our saviours and as rope to salvation in Indus Valley Civilization as well as in Egyptian, Mesopotamian and Greek Civilizations. In all civilizations people started worshiping them and then new avatars were sent to correct their teachings. It was then that the concept of Holy Spirit or Rooh or Paramatma was introduced. And later the concept of One Absolute Invisible All-Pervading God was told.

You may ask why this was done? It was because the people of yore were incapable of understanding invisible powers. They wanted to see the gods in person. Now in the age of ultraviolet rays and electromagnetic waves, light energy and atom energy, it is very much in the capacity of a thinking mind to understand an invisible absolute God.

However there is another aspect to it. There is an Absolute God but that God Himself sanctified Kaaba as His House on Earth. Kaaba is a material structure and akin to an idol. It is towards Kaaba that Muslims prostrate and worship. This shows that it is not possible to undo use of material things in order to understand God. Even Quran that is in our hands is a material books. These material things were used to make us understand the abstract God. It was this reason why Devatas were created with both ends, one end as light which had link to Manifest Self or Paramatma and the other end as human body in which light descends so as to create the link with humans. It is only through the Devatas (Ahlulbayt) that we can climb to understand higher Divine powers. It is only through the Devatas (Ahlulbayt) that material man can transcend the higher spiritual levels towards recognition of Manifest Self.

It was for this purpose only that the light of Devatas kept descending in human body in different parts of the world and finally came together as Ahlulbayt. Either as Rama, Krishna, Budha, Moses, Jesus, Mohammad or rest of Ahlulbayt, the purpose was only to lead mankind towards salvation. Whether we create an idol or whether we prostrate before God without understanding the true identity of these who comprise rope to salvation, we are not going to get salvation. Some of the Muslims who abhor idol worship are today worse creatures on earth. They need to answer whether those who are worshiping idols of Rama and Krishna and trying to understand their teachings and follow them are better or those who do not believe in idol worship but their soul is at the level of beasts.

Deities mentioned in Vedas and Quran are one and the same

When I mentioned about Vedas and Quran from the same source and said that the Divinities of Vedas and Quran are one and the same, a friend in a private mail asked: "Are you specifically talking about Angels in Quran? Are you saying Angels and Deities in Hinduism are same?"

I never said that angels and deities in Hinduism are one the same. I feel it is time to clarify further I meant when I said that deities mentioned in Vedas and Quran are one and the same. Here's my view:

I am not talking about angels nor saying angels and deities in Hinduism are same. If Hindus have not understood the subject that is being talked about in Vedas, Muslims too have not understood several facts described in Quran. I understood them because I had the opportunity to read sacred books of other religions, particularly Hinduism.

Quran is talking of Ahlulbayt and saying that God has made them perfectly pure. Ahlulbayt are 14 in number. They are as follows: Mohammad (the Prophet); Ali (Prophet's cousin and husband of his daughter Fatima); Fatima (daughter of Mohammad married to Ali); Hasan (son of Ali and Fatima); Husain (son of Ali and Fatima); Ali (son of Husain); Mohammad (son of Ali son of Husain); Jafar (son of Mohammad son of Ali); Musa (son of Jafar son of Mohammad); Ali (son of Musa son of Jafar); Mohammad (son of Ali son of Musa); Ali (son of Mohammad son of Ali); Mohammad (son of Ali son of Mohammad); Hasan (son of Mohammad son of Ali) and Mohammad (son of Hasan). These are 14 in number who lived in human bodies for close to 300 years.

If you notice 14 Ahlulbayt have only 7 names; 4 are Mohammad, 4 are Ali, 2 are Hasan, 1 Fatima, 1 Husain, 1 Jafar, 1 Musa). Mohammad said that my NOOR (light) was made even before Adam was created and said that Mohammad and Ali are from the same Noor. Mohammad also said that Fatima is part of me and Hasan and Husain are the leaders of the youth of heaven. He also said that all 14 are one and the same; thus meaning the Noor working in all the 14 was same and identical. When Quran is talking about Divinities at the time of creation of Adam, it is talking about the light of these Ahlulbayt, which was in heaven at the time.

You are requested to read the character of these Ahlulbayt. They were the most pious people that ever lived on the face of earth, they possessed the greatest of knowledge, even foretold what was to happen in future and showed innumerable miracles as proofs of their relationship with Divinity. It is unfortunate that they were tortured and killed, imprisoned and even their family members and those close to them were not spared. All their lives they just showed to us how we should spend our entire lives in the worship of God. Because the purpose of our creation is worship; either directly of God or through serving His Creation. The Powers of Darkness used their entire forces to see to it that these personalities were not properly identified and people do not come close to them. Why? Because it is they who comprised the rope to salvation and the Powers of Darkness would never like people recognizing the Powers of Light, as this would mean defeat of Zulmat (Tamas/Darkness).

Unfortunately, when the term Ahlulbayt (meaning 'people of the house') was used, Muslims, due to their inability to understand the lofty position of Ahlulbayt in Divine Creation Plan, translated it as the people of the house of Mohammad. How foolish was this interpretation, because it was the Paramatma who was referring to them as People of the House and not Prophet Mohammad. Therefore, the term should have been translated as People of the House (of God) and not People of the House (of Mohammad). Another symbolic representation was the Baytullah (House of God) viz. Kaaba, which was situated in the same region to signify for ages that Manifest Representations of the People of the House of God will take birth near House of God.

Vedas are actually referring to these Ahlulbayt, when they are talking about Devatas. The Devatas of Vedas and Ahlulbayt of the Quran are one and the same with the only difference that while in Vedas people were imploring them to come, praying to Devatas in various hymns to arrive, pledging that when the Devatas would take birth in human form, they would protect them and fight with them against the powers of darkness, when the Devatas indeed came as Ahlulbayt none could understand that they were the same for whom they were waiting for. People of Arabia where they had descended couldn't identify them. Yet, the force of their teachings and persona was such that they indeed accepted their teachings. But with their rajasik (materialistic) and tamasik (dark) bent of mind, they fell pray to the Forces of Darkness and tortured them, put them in house arrest, imprisoned them and killed them. Yet, whatever little time that they got, the Ahlulbayt showed such high levels of knowledge and spiritual excellence that none has the capacity to match them.

The Vedas are truly Divine Book. Our forefathers 5000 years back need to be praised because they were the true followers of Vedas. If there had been no Vedas, we would never have understood the true position of Ahlulbayt in Divine Creation Plan. The Brahmins who protected the Vedas from the forces unleashed by Powers of Darkness too need to be praised, because they brought the Vedas intact to us. But we must remember, we are yet to understand the true teachings of Vedas.

Vedas are also talking of 14 Manus. Manu means progenitors of mankind. At times they are referred to as 7. Why? Because they had 7 names. Devatas are described as perfectly pure, where Quran is describing Ahlulbayt as perfectly pure. Upanishads are even talking of the process of creation of the Noor (Divya) of the Devatas and tell how the One Light divided into two exactly same as the first from whom the division took place and then portion or part of one united with the other half to form hiranyagarbha (the golden womb), which gave birth to two more making it 5 and eventually the process continues till there are 14 lights, who were made the guardians of the 14 spheres. Compare this with the description by Mohammad given earlier. Devatas too are sometimes describe as 5, 7 or 14. At times even term 7 and 7 is used to indicate they are 7 names of 14. It is said in Upanishads that all Life is courtesy these 7; in fact these 7 are Life. Hadees-e-Kisa, a tradition common among Muslims say that the God created everything, including the sun, the moon, the stars, the skies, in love of these Ahlulbayt. The Devatas are also described as guardians of our organs of action and senses; they are described as truthful and pious, and mutable and immutable, thereby meaning that they are all powerful in Divya or Noor state but when the Noor descended in pious bodies on earth, they possess limited powers. This too has been described in the Upanishads.

The distorted myths that you hear about Devatas are actual byproducts of efforts of Forces of Darkness. If books like 'Rangeela Rasool' can be written during just 1400 years after Mohammad's demise, despite the great lofty character that he possessed, one can understand how Indra deva got portrayed as always remaining in the effect of intoxication and impregnating lonely maidens in forest. Fact is that these myths are only there because the people couldn't understand the real Divine Role of the Devatas and the Forces of Darkness used their powers to distort the teachings.

Several incidents of the lives of Devatas when they would come in human form are described in the Vedas. How could the people have understood the meaning? For instance, when Vedas talked of one Light dividing to form two and then part of one mingling with the second division to form Hiranyagarbha, they started discussing how this could be possible and how could the Devi get into a relationship with the other part, as he being the uncle was like a father. This myth is still present in the books and Aditi, to this day, is said to have given birth to Aswins through an illicit relationship. Whereas the truth was that Vedas were talking of a celestial relationship which when unfolded on earth saw Fatima, part of Mohammad, getting married to Ali (cousin of Mohammad) and then giving birth to Hasnain (Aswins viz. Hasan and Husain) while all possessed Noor (light) inside them. Interestingly, marriage of Fatima and Ali and their progeny has been described as silsalatul zahad (Golden Chain), whereas Upanishads have talked of Hiranyagarbha (Golden Womb). Upanishads have used the word 'part' or 'portion' of the Light where as Mohammad, all his life, kept calling Fatima as a part of me and people wrongly understood that Mohammad said so owing to his great love for his daughter. If Quran was saying that Mohammad spoke nothing but what was divinely ordained, we should have tried to understand the true meaning behind what Mohammad was saying.

Even the place Makhah is being described in the Vedas as the sacred place where the Devatas would take birth in human form. Incidents from their lives are described so as to enable the people to identify them when they would take birth. Since Agnideva is Husain in Noor state, hymns devoted to Agnideva are full of mention of sacrifice, killing, fighting, etc. Even the mention of slaying of a young child is described.

Question arises why could those who believed in the Vedas couldn't understand what was being described there. It was because nobody could have ever imagined that the Vedas would talk of Devatas being killed and tortured. They did say that the Vedas are talking of fight between Devatas and Asuras but how could have anybody made a guess that Devatas who were described as all powerful and who lorded over the universe would be slaughtered and killed. To give an example, when the incident of Ali being dragged on the road with noose tied to his neck is described in the Vedas, people translated it as the Devata using the noose of rope to capture his enemies and dragging them. Wherever sacrifice of Agnideva was mentioned, it was seen akin to putting oblations in the fire.

Vedas were repeatedly talking about the time when Devatas viz. Indra deva, Vayu deva, Devi, Agni deva, Vasu deva and the rest will take birth in a secret place. What more secret place could there have been than the barren desert of Arabia, which was distant from all the major caravan routes of the time and you would have to make a special journey into the desert to reach there. Brhad Aranyaka Upanishad says that when on death bed, people used to lament to their sons that they who were to come didn't come in their lifetime and if they come in the lifetime of their sons, they should support them. This shows that people were waiting for someone to come, who had not come even after the Vedas were written.

Can the present day commentators elaborate who were the people at the time of writing of Upanishad that people were waiting for? And why they could never explain how, why and when Devatas and Asuras fought pitched battles. Inability to understand these led to later day commentators refuting the very presence of Devatas, thus further deviating from the true intended meaning.

Any questions/clarifications related to this, feel free to ask. You may also write at mohammadalvi786@gmail.com

Tuesday, 13 January 2015

वेद और वायुयान

आज मुम्बई में एक गोष्ठी में वेदों के ज्ञानी चर्चा करेंगे कि आज से 5000 वर्ष पहले भारतीयों के पास वायुयान बनाने की कला थी। अदभुत! इसमें कोई शक नहीं कि कुछ मायनों में 5000 वर्ष पहले हमारे पूर्वज हमसे कहीं अधिक विद्वान थे। आईए देखें कि कैसे!
वेदों के अनेक अनुवाद उपलब्ध हैं, बहुतेरे लुप्त हो गये। केवल यजुर वेद के लिए पंडितों ने लिखा है कि एक समय था जब इसके 100 से अधिक अनुवाद प्रचलित थे परन्तु अब मात्र 4 ही शेष बचे हैं। आप यह तो मानेंगे ही कि इन 100 विभिन्न अनुवादों में एक ही होगा जो वह अर्थ बता रहा हो जो इस आसमानी किताब के लिखने वाले बताना चाहते थे। मुझे जो भय है वह यह कि कहीं लुप्त हुए अनुवादों में वह अनुवाद भी लुप्त न हो गया हो जो सत्य के सब से करीब था।
जो भी अनुवाद बचे हैं उनमें अधिकतर में देवताओं का उल्लेख है। वेद दरअस्ल कई कविताओं को जोड़ कर बने ग्रंथ हैं। हर कविता किसी न किसी देवता को समर्पित है और उसको याद करके कही गई है। उदाहरण के लिए यदि कोई कविता देवी को समर्पित है तो उसमें देवी को याद करके बात कही जा रही है। कोई कविता इंद्रदेव को समर्पित है तो कोई वायु देव को और कोई अग्निदेव को। संस्कृत के विद्वान मानते हैं कि वेदों में ऐसी कला के साथ शब्दों को पिरोया गया है कि यदि एक मात्रा या विणाम भी अधिक हो जाए या एक भी कम हो जाए तो त्रुटि अलग से दिखाई देगा। उस समय के ज्ञानी पंडितों ने यह तैयारी की थी कि भले ही वेदों के अनुवाद समझ में न आयें परन्तु उसके छंद समय के उतार चढ़ाव के बावजूद ज्यों के त्यों बचे रहें। वेद इस मायनी में आसमानी किताबें है कि आज से 5000 वर्ष पहले संस्कृत में जो कविताएं थीं वह ज्यों की त्यों आज भी हमारे पास उप्लब्ध हैं परन्तु उनका कौन सा अनुवाद सत्य के करीब है यह कह पाना दुर्लभ है।
हमारे प्रिय स्वामी दयानंद सरस्वती ने सब से पहले वेदों में वायुयान, आदि होने का अनुवाद किया। दयानंद जी के अनुवादित वेद में न केवल वायुयान बल्कि भाप से चलने वाले इंजन, मैडम क्यूरी के आविष्कार, सड़कों पर चलने वाली गाडि़यों आदि का उल्लेख मिलता है। परन्तु यह भी मानना पड़ेगा कि वेदों में इन सब के होने का पता तब लगा जब इन सब का आविष्कार हो चुका था। यही कारण है कि दयानंद जी ने भाप से चलने वाले इंजन को तो वेदों में ढूंढ निकाला परन्तु बिजली से और डीजल से चलने वाले इंजन का वर्णन नहीं ढूंढ पाये। पढ़ने वाले खुश हो गये कि हमारी किताब साईंसदानों के लिए भी 5000 वर्षों से रास्ता दिखाती रही है परन्तु भूल गये कि ईश्वर उससे कहीं बड़े राज वेदों में छिपाए है जिनको बचाये रखने के लिए ही यह तैयारी की गई थी कि एक एक शब्द को आपस में पिरोया गया था ताकि कभी भी अस्ली वेदों में कोई मिलावट न कर सके।
आओ समझें कि दयानंद जी को क्या पड़ी थी कि उनको वेदों में इस प्रकार के अर्थ ढूंढने पड़े। जो कारण उस समय थे लगभग उन्हीं कारणों से आज साईंस की गोष्ठियों में वेदों पर चर्चा की जा रही हैं। दयानंद जी का समय वह समय था जब मैक्स म्यूलर और ग्रिफिथ आदि जैसे यूरोपियों ने वेदों को समझने और उनका अनुवाद करने का बीड़ा उठाया था। यह वेदों में देवताओं का वर्णन तो देखते थे परन्तु नहीं जानते थे कि यह देवता कौन हैं। यह लोग हिन्दुओं पर आरोप लगाते थे कि उनकी किताब ऐसे देवताओं का उल्लेख करती हैं जो किसी पुराने जमाने में असुरों से लड़े थे परन्तु उनका आज कोई रोल नहीं है। इस प्रकार वे यह साबित करना चाहते थे कि वेद पुराने समय की किताबें हैं और नये जमाने में उनका कोई महत्व नहीं बचा। ऐसा करके वे हिन्दुओं को ईसाई धर्म की ओर बुलाना चाहते थे। ऐसे समय में दयानंद सरस्वती ने वेदों का अनुवाद किया तो देवताओं को एकदम नकार दिया और वेदों में साईंस ढूंढ निकाली। गल्ती यहां पर हुई। यदि आप कहें तो मैं पूरी किताब लिख सकता हूं कि दयानंद जी ने जो अनुवाद किया है उसमें आपस में ही कितना विरोधाभास है। यदि हम वेदों को आसमानी किताबें मानते हैं तो हमको अपने मन से उन किताबों को मायनी पहनाने का कोई अधिकार नहीं। हमको चाहिए कि सिर जोड़ कर बैठें और समझने की कोशिश करें कि परमात्मा इतनी तैयारी के साथ हमको क्या संदेश देना चाहता है। वेदों में परमात्मा ने हमारे लिए जो रास्ता निर्देशित किया है वह यदि हम समझ लें तो हमारे लिए मोक्ष प्राप्ति का रास्ता आसान हो जाएगा। खेद का विषय यह है कि जब जब भी परमात्मा ने मोक्ष प्राप्ति का रास्ता दिखाया, तमसिक ताकतों ने उस रास्ते को बदल डाला क्योंकि वे नहीं चाहती कि इंसान देवताओं के मार्ग को समझ कर मोक्ष प्राप्त कर सके।
कहते हैं कि परमात्मा कभी भी अपने भक्तों को अंधों की तरह मानने वाला नहीं देखना चाहता। गीता और अन्य सब आसमानी किताबों में अकल के प्रयोग पर जोर दिया गया है। आओ अकल से समझने की कोशिश करें कि परमात्मा हम को क्या संदेश दे सकता है।
ईश्वर ने हमको इस पृथ्वी पर जन्म दिया। फिर क्या आवश्यकता पड़ी थी कि अवतार या किताबें भेजी जातीं? हमारे प्रश्न का अर्थ गीता में दिया गया है जिसमें कृष्ण कहते हैं कि जब जब धरती पर सही धर्म के मार्ग से लोग विचलित हो जाते हैं और अधर्म बढ़ जाता है तो सत्यमार्ग पर चलने वालों को बचाने के लिए और उस मार्ग से विचलित लोगों को सबक सिखाने हेतु और अच्छे कर्मों को फिर से स्थापित करने हेतु अवतार आता है। यदि ईश्वर मार्ग दर्शन हेतु किताबें भेजता है तो उसका भी यही कारण होना चाहिए। यह बात अकल से परे है कि ईश्वर किताबें भेजे जिनमें वायुयान बनाने का तरीका या स्टीम इंजन बनाना सिखाया जाए। यदि ईश्वर ने ऐसा किया भी तो क्या कारण था कि उन किताबों के मानने वालों ने पहले ही वायुयान बना कर खड़ा नहीं कर दिया? क्यों व्राईट बंधुओं ने वायुयान बनाया और हम ने बखान करना प्रारंभ कर दिया कि यह सब तो हमारी किताबों में 5000 वर्ष पहले ही लिख दिया गया था।
तुम कह सकते हो कि वास्व में उस समय में ऐसा ज्ञान उप्लब्ध था। हनुमान का उदाहरण सामने रखा जा सकता है। परन्तु हम हनुमान को वायुपुत्र भी तो कहते हैं। यह क्यों नहीं कहते कि एक समय साईंस इतनी आगे थी कि वायु अर्थात हवा धरती पर पुत्र पैदा किया करते थे। किताबों से जो कुछ समझा गया है उसको ज्यों का त्यों मानलें तो फिर सूर्य और चन्द्र भी धरती पर पुत्र पैदा करते थे। क्या यह सब उपहासपूर्ण नहीं हो जाएगा।
आओ, कुछ और उदाहरण देखते हैं। जब पैगम्बर मौहम्मद के लिए क्हा जाता है कि बुराक नामी विमान पर एक ही रात में वह सातवें आसमान पर परमात्मा के समक्ष गये और लौट आए तब तो तुम उपहास उड़ाते हो। क्यों नहीं मानते कि वही ज्ञान जिससे हनुमान उड़ा करते थे पैगम्बर मौहम्मद के पास भी था। इसी प्रकार मुसलमान हनुमान के उड़ने का तो उपहास उड़ाते हैं परन्तु पैगम्बर मौहम्मद के बुराक पर बैठ आसमान पर जाने को सत्य मानते हैं। यदि राम का नाम पत्थर पर लिख कर पानी में डालें तो वह तैरने लगता है तो क्या उस समय के लोगों ने गुरूत्वाकर्षन पर भी वश कर लिया था? आज यदि हम पत्थर पर राम का नाम लिखकर पानी में डालें तो वह क्यों नहीं तैरता? समझो, कारण कुछ और था जो हम समझ ही नहीं सके। दैवीय शक्तियों के लिए सब कुछ मुमकिन है क्योंकि एक एक कण उनके अधीन है। परन्तु यदि मैं यहां पर याद दिलाउं कि मौहम्मद के हाथ में आकर छोटे छोटे कण भी अल्लाह के गुण गाने लगते थे या छोटी छोटी चिडि़यों ने चोंच में कंकर उठा कर जब अब्रहा की फौज पर छोड़े तो पूरी फौज नष्ट हो गयी तो तुम उपहास उड़ा सकते हो।
मुस्लिम किताबों में है कि एक बार अली अबु बकर और उमर के साथ एक चटाई पर बैठे थे। किसी ने अली से पूछा कि हम वह गुफा देखना चाहते हैं जिसमें असहाबे कहफ सो रहे हैं। अली ने इशारा किया और चटाई उड़ती हुई चल दी और वहां पहुंची जहां वह गुफा थी। अली ने वह गुफा उनको दिखाई और फिर वापिस आ गये। अर्थात यह कि थोड़े ही समय में अली ने अरब के मदीना शहर से सीरिया तक का सफर किया और वापिस आ गये। पैगम्बर मौहम्मद के लिए लिखा है कि उन्होंने दो उंगलियों के बीच वह सब कुछ दिखा दिया था जो करीब 50 वर्ष बाद करबला में होने वाला था। तुम उपहास उड़ा सकते हो परन्तु जब देखते हो कि कृष्ण ने अर्जुन को एक दृष्य दिखाया तो कहते हो कि टीवी तो अब बना परन्तु उस समय भी वह कला हमारे पास उप्लब्ध थी। तुम कृष्ण को पहाड़ हाथ पर उठाए देखोगे या अली को दो उंगलियों से दरे खैबर उखाड़ते देखोगे तो एक का उपहास उड़ाओगे और दूसरे को सही जानोगे। तुम कृष्ण को सूर्य पलटाते देखोगे और मौहम्मद को भी सूर्य पलटाते सुनोगे तो एक का उपहास उड़ाओगे और दूसरे को सही मानोगे। तुम ईसा को मुर्दों को जिन्दा करते देखोगे, फातमा की दुआ पर मुर्दा शरीर में जान पड़ते देखोगे या अली के इशारे पर जिन्दा को मरते देखोगे, ईसा को पानी पर चलते देखोगे तो भी उसका या तो उपहास उड़ाओगे या उसमें साईंस ढूंढोगे।
मैं मानता हूं कि यह सब कुछ सत्य है परन्तु तुम उसके गलत कारण ढूंढ रहे हो। तुम स्वयं भटके हुए हो और भटके हुए दिमाग से उन दैविय कारणों को समझने की कोशिश में लगे हो जिनको तुम समझ ही नहीं सकते। पुराण के अनुसार केवल हनुमान ही नहीं हैं जो आकाश में उड़ा करते थे। पुराण अन्य व्यक्तियों का भी उल्लेख करता है जो ऐसा करते थे। मुस्लिम किताबों में सातवीं शताब्दी में सिंध के इलाके में रहने वाले एक ऋषि का उल्लेख मिलता है जो जब चाहता था 8वें अहलेबैत जाफर सादिक के समक्ष प्रस्तुत हो जाता था। जानते हो ऐसा क्यों हो सकता है?
कृष्ण गीता में इसका उत्तर देते हैं। वह कहते हैं कि सबसे बड़ी साईंस आत्मा की साईस है। अर्थात सब से बड़ी साईंस रूहानियत को समझना है। आज तमाम दुनिया माद्दियत अर्थात रजसिक दुनिया को समझने में लगी है। हम दुनिया की चाह में ऐसे ग्रसित हैं कि ईश्वरीय कृत्यों को भी हम दुनियावी आंखों से देखते हैं। यदि कृष्ण कहते हैं कि सब से बड़ी साईंस रूहानियत की साईंस है तो क्यों नहीं रूहानियत के मार्ग पर चलने की कोशिश करते हैं। जिस दिन हम ऐसा करना सीख लेंगे, सारे मार्ग अपने आप प्रजवलित हो जाएंगे। जब मनुष्य रूहानियत के मार्ग पर आगे बढ़ने की कोशिश करता है और जीवित रहते हुए उस शीर्ष पर पहुंचता है कि वह मोक्ष अर्थात निजात पाने के समीप हो, तो वह पृथ्वी, वायु, जल, आदि को अपने वश में कर पाने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। साई बाबा, मोईनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया ऐसे ही पहुंचे हुए व्यक्तियों के उदाहरण हैं। उनके जीवन को सामने रखकर उनके मार्ग पर चलने की कोशिश न करके हमने ऐसे व्यक्तियों के आगे ही सिर झुकाना प्रारंभ कर दिया।
मोक्ष के समीप पहुंच जाने वाला व्यक्ति आसमान में उड़ सकता है, पानी पर चल सकता है और अग्नि में बैठकर भी जीवित रह सकता है। दैवीय शक्तियों से करीब होकर वह यह सब कुछ करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। हमारे तुम्हारे जैसे आम व्यक्ति के लिए भी यह मुमकिन है। तुम क्या जानो कि वह देवता स्वयं जिन्हें ईश्वर ने तमाम सृष्टि का पालनहार बनाया है कितना शक्तिशाली हो सकते हैं। राम, कृष्ण, ईसा, अली, फातमा, मौहम्मद आदि उन शरीरों के नाम हैं जिनके अन्दर देवताओं का दिव्य प्रकाश अवतरित हुआ। इनको समझना है तो फिजिक्स या कैमिस्टरी के माध्यम से नहीं बल्कि रूह की साईंस द्वारा समझना होगा। खेद कि यह वह साईंस है जिसको कलयुग के मनुष्य ने बहुत पहले ही तज दिया है।

आश्चर्य नहीं कीजिए कि अधिकांश लोग सत्य को जानने के भी इच्छुक नहीं दिखाई देते



फेसबुक पर मेरे मित्र श्री मनोहर भूटानी ने मेरी पुरानी पोस्टें पढ़ीं तो लिखाः I am surprised why the people from different religion has not pounced on you. They have just given you likes that too on single digit. I appreciate your research, your approch, your point of view. For certain points I may be having a different point of view but I respect your effort for that particular point of view or a diverse approch but I will try to learn from you.

मेरे मित्र को आश्चर्य है इस बात पर कि मेरी पोस्टें पढ़ने के बावजूद मुझको थोड़े से लाईक ही मिलते हैं। मित्रवर, मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं है। मुझे आश्चर्य तो जब होगा जब तेजी से ईश्वर के मार्ग से विचलित होता यह समाज सीधे रास्ते पर जाएगा। क्यूंकि हर धर्म के मानने वालों का जो हाल मैं देख रहा हूं उसके बाद बहुत बड़े करिश्मे से कम होगा जब अधिकतर लोग अपनी अपनी ईश्वरीय किताबों में से ईश्वर अर्थात अल्लाह तक पहुंचने की रस्सी अर्थात उस सीधे रास्ते को पहचान लेगें जिसपर चलकर मोक्ष अर्थात निजात की प्राप्ति होती है। आज शैतान अर्थात तमस अर्थात मारा अर्थात satan ने उस मार्ग से हम को इतना दूर कर दिया है और ऐसी भूल भूलय्या में डाल दिया है कि सीधा रास्ता पहचान लेना किसी करिश्मे से कम नहीं है।

परन्तु ऐसा होगा इसका मुझे यकीन इसलिए है क्योंकि हर ईश्वरीय किताब में यह भविष्यवाणी है कि जिस समय कालकी अवतार अर्थात मेहदी अर्थात मैशियाज अर्थात क्वेटजाल्कोटल आएगें तो लोग अपनी अपनी ईश्वरीय किताबों से पहचान लेंगे कि यह वही ईश्वर के दूत हैं जिनके रास्ते पर मोक्ष अर्थात निजात अर्थात salvation है। जो हिन्दू मानते हैं कि कालकी अवतार के आने पर सब ओर सनातन धर्म फैल जाएगा, जो मुसलमान मानते हैं कि मेहदी के आने पर हर ओर इस्लाम फैल जाएगा, जो यहूदी मानते हैं कि मैशियाज के आने पर सारी दुनिया पर यहूदियों की हुकूमत होगी और जो ईसाई समझते हैं कि जब आसमान की बादशाही आएगी तो हर ओर ईसाई ही ईसाई दिखाई देंगे, वह सब झूठे साबित होंगे परन्तु वह ईश्वरीय किताबें जिन में लिखा है कि एक दूत आएगा वे सच्ची साबित हो जाएंगी। हिन्दू देखेंगे कि हर कोई वेदों और गीता के मार्ग पर गया, मुसलमान देखेंगे कि हर कोई कुरान के रास्ते पर गया, यहूदी देखेंगे कि हर कोई तौरेत के रास्ते पर गया और ईसाई देखेंगे कि आसमान की बादशाही की भविष्यवाणी सच्ची साबित हो गयी। क्यों? क्योंकि हर मानने वाला अपनी अपनी किताब में हक को पहचान लेगा और उसको साफ दिखाई देने लगेगा कि एक ही सीधा मार्ग है जो विभिन्न जबानों और अलग अलग समय पर आई किताबों में दिखाया गया था परन्तु उस मार्ग से विचलित होकर हम ने विभिन्न धर्म और अलग अलग फिरके बना लिये।

मैं वर्षों से विभिन्न माध्यमों से ईश्वर के सीधे रास्ते को पेश करने की कोशिश करता रहा हूं परन्तु इतने वर्षों में हालात खराब से खराब ही होते गये। असंख्य लोगों ने मेरी पोस्टों को लाईक किया, मुझ से क्हा कि आप बड़ी अच्छी बात करते हो, परन्तु फिर से वापिस अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में लौट गये। दरअस्ल यह लोग बोलते तो हैं कि ईश्वर है परन्तु सही मायनों में वे जानते ही नहीं कि सृष्टि का रचियता कितना बड़ा है कितना बलवान है और हमारे कितना करीब है। दूसरी ओर ऐसे भी असंख्य लोग मिले जो बाप दादा के धर्म में ऐसा डूबे हुए हैं कि उसके विपरीत कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं और मेरे विचारों से सहमत नहीं हैं।

जब से मुझे सीधा रास्ता मिला है, मैं गर्व से कह सकता हूं कि मेरा धर्म वेद और गीता का धर्म है, कुरान और अहलेबैत का धर्म है, मूसा, बुद्ध और यसूअ ने जो मार्ग दिखाया वह मेरा मार्ग है परन्तु आज के हिन्दुओं ने धर्म को जैसा समझा वह मेरा धर्म नहीं, आज के मुसलमान जिस मार्ग पर चलते दिखाई देते हैं वह मेरे मार्ग से विचलित है और आज के यहूदियों और ईसाईयों को अपनी अपनी किताबों से कई मायनों में विचलित पाता हूं।

सारी सृष्टि के रचियता ने विभिन्न लोगों में ईश्वरीय दूत और किताबें भेजीं परन्तु वे सब एक ही मार्ग को दर्शाती रहीं और एक ही रस्सी की ओर इशारा करती रहीं जिसपर चलकर मोक्ष अर्थात निजात मिल सकती थी परन्तु हर समय में जुलमत अर्थात तमस अर्थात शैतान ने हमको उस मार्ग से विचलित कर दिया। मैं ने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा था कि कैसे पैगम्बर मौहम्मद के देहान्त के कुछ ही अन्तराल बाद मुसलमान इस्लाम से दूर भटक गये थे। उसी प्रकार मैं साबित कर सकता हूं कि बुद्ध के देहान्त के तुरन्त बाद जो 14 दिनों तक उनके अनुयायी खुशी मनाते रहे, नाचते गाते रहे, उसी समय वे उनके मार्ग से विचलित होकर नये धर्म की नींव डालने में लग गये। इसी प्रकार ईश्वर द्वारा भेजी गयी एक एक किताब को पकड़ कर हिन्दुओं, यहूदियों और ईसाईयों ने अपना अपना धर्म बना लिया और भूल गये कि परमात्मा अर्थात नूर अर्थात रूह सारी सृष्टि को जन्म देने वाला है और यह बात उसके इंसाफ के विपरीत होगी यदि वह कुछ लोगों में तो किताबें और दूत भेजे और कुछ में नहीं। क्या यह उसके इंसाफ के अनुसार होगा यदि वह एक मासूम बच्चे को उस जगह या उन लोगों में पैदा कर दे जहां उसने रास्ता दिखाया ही हो।

पहले पहल मुझे लगता था कि जरा सा राह दिखाने पर लोग पहचान जाएंगे कि यही सीधा रास्ता है जो हर ईश्वरीय किताब में साफ साफ बताया गया है जिसको अभी तक हम पहचान नहीं पाये थे। परन्तु धीरे धीरे मुझे अहसास हो चला कि यह आसान नहीं है। कारण?

कारण यह कि हम कलयुग में जी रहे हैं! उपनिषद में है कि जो आज्ञाकारी सत्यमार्ग पर चलने वाली आत्माएं धरती पर थीं वे तो सत्ययुग में ही आत्मा के उत्थान के उस लेवल पर पहुंच गयीं जो मोक्ष प्राप्ति का लेवल है और इस दुनिया के वास से निकलकर स्वर्ग में पहुंच गयीं। बची रह गयीं वे आत्माएं जो किसी किसी कमी के कारण पाकीजगी के उस लेवल तक नहीं पहुंच सकीं जहां से उन्हें मोक्ष अर्थात निजात मिल सकता था। इसलिए ऐसी आत्माएं इस दुनिया के बंधन से मुक्त ही नहीं हो सकीं। धीरे धीरे उन्हें बीमारियों ने घेर लिया। यह बीमारियां ऐसी थीं कि पहले तो इनसे छुटकारा पाना आवश्यक था, तब ही मनुष्य रूहानी इरतेका अर्थात आत्मा के उत्थान के मार्ग पर अग्रसर हो सकता था। आत्मा पाक नहीं बल्कि दूषित होती गयी यहां तक कि इस दुनिया से निकलने हेतु आवश्यक पाकीजगी पाने लाएक ही नहीं रह गयी। आज जो आत्माएं अर्थात रूहें धरती पर रह गयी हैं यह वह रूहें हैं जो शताब्दियों से पृथ्वी पर हैं परन्तु इस लाएक नहीं हो पाईं कि इस धरती के वास से बाहर निकल सकें। जिस रस्सी को पकड़कर अर्थात जिस मार्ग पर चलकर हमें मोक्ष प्राप्ति हो सकती थी, शैतान अर्थात तमस अर्थात जुलमत ने हमको उस मार्ग से इतना दूर ढकेल दिया कि हम चक्कर काट रहे हैं और सीधे रास्ते को नहीं पहचान पा रहे हालांकि वह रास्ता हमारे पास भेजी गयी ईश्वरीय किताबों में साफ साफ दिखाया गया है।

पैगम्बर मौहम्मद ने भी अपनी एक हदीस में इसी बात की ओर इशारा किया है। वह कहते हैं कि आखिरी जमाने में अच्छे लोग नहीं बचेंगे और जो लोग बचे रह जाएंगे वे बदतरीन लोग होंगे, ऐसे जैसे भूसा या कूड़ा कड़कट और अल्लाह उनकी जरा भी परवाह नहीं करेगा। उपनिषद ने जो कहा था, पैगम्बर मौहम्मद का कथन भी उसी ओर इशारा करता है कि जो अच्छी रूहें थीं वे पहले ही निजात पाकर निकल गयीं और आखिरी जमाने में जो रूहें बची रह जाएंगी वे सबसे बदतरीन रूहें होंगी। एक और हदीस में पैगम्बर मौहम्मद बताते हैं कि कैसे आखिरी जमाने में अलग अलग अच्छाईयां इंसान का साथ छोड़ देंगी। पैगम्बर मौहम्मद दस चीजों के नाम लेते हैं और बताते हैं कि कैसे ईमान, शरम, आदि एक के बाद एक करके लुप्त हो जाएंगी। यह हदीस भी उपनिषद के कथन की पुष्टि करती है।

यही बात मत्ती की इंजील में यसूअ कहते हैंः

और उनके हक़ में यसीयाह की ये पेशिंगोई पूरी होती है कि
तुम कानों से सुनोगे पर हरगिज़ समझोगे
और आँखों से देखोगे पर हरगिज़ मालूम करोगे
क्यांकि इस उम्मत के दिल पर चर्बी छा गई है
और वो कानों से ऊँचा सुनते हैं
और उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर ली हैं

वह आगे कहते हैंः

जब कोई बादशाही का कलाम सुनता है और नहीं समझता तो जो उस के दिल में बोया गया था उसे वो शरीर अर्थात शैतान आकर छीन ले जाता है। ये वो है जो राह के किनारे बोया गया था। और जो पथरीली ज़मीन में बोया गया ये वो है जो कलाम को सुनता है और उसे फिलफौर ख़ुशी से क़ुबूल कर लेता है। लेकिन अपने अन्दर जड़ नहीं रखता बल्कि चँद रोज़ा है और जब कलाम के सबब से मुसीबत या ज़ुल्म बरपा होता है तो फिलफौर ठोकर खाता है। और जो झाडि़यों में बोया गया ये वो है जो कलाम को सुनता है और दुनिया की फिक्र और दौलत का फरेब उस कलाम को दबा देता है और वो बेफल रह जाता है। और जो अच्छी ज़मीन में बोया गया ये वो है जो कलाम को सुनता और समझता है और फल भी लाता है, कोई सौ गुना फलता है, कोई साठ गुना कोई तीस गुना।

यसूअ का यह कथन बताता है क्यों आज के जमाने में हमें परवाह भी नहीं कि ढूंढें की सीधा रास्ता क्या है?

यही बात कुरान में सूरह बकर में कही जाती हैः ‘‘बेशक जिन लोगों ने कुफ्र इखतेयार किया अर्थात सत्यमार्ग को झुठलाया उनके लिए बराबर है चाह तुम उन्हें डराओ या डराओ वह ईमान लाएंगे। उनके दिलों पर और उनके कानों पर खुदा ने मोहर लगा दी है कि ये सीधे रास्ते को पहचानेंगे और उनकी आंखों पर परदा पड़ा हुआ है और उन्हीं के लिए बहुत बड़ी सजा है।
और कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो कहते तो हैं कि हम खुदा पर और कयामत पर ईमान लाये हालांकि वह दिल से ईमान नहीं लाये। खुदा को और उन लोगों को जो ईमान लाए धोका देते हैं हालांकि वह अपने आपको धोका देते हैं और कुछ अकल नहीं रखते हैं। उनके दिलों में बीमारी थी ही अब खुदा ने उनकी बीमारी को और बढ़ा दिया और क्यूंकि वह लोग झूठ बोला करते थे इसलिए उनपर तकलीफ देह अजाब है।’’

कैसे लोग नूर अर्थात परमात्मा के रास्ते से भटक कर जुलमत अर्थात शैतान के रास्ते पर लग जाते हैं यह भी कुरान ने बताया है जब वह कहता है किः खुदा उन लोगों का सरपरस्त है जो ईमान ला चुके कि उन्हें जुलमत अर्थात तमस से निकाल कर नूर अर्थात सात्विक अर्थात रौशनी में लाता है और जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया अर्थात सत्य को झुठलाया उनके सरपरस्त शैतान हैं कि उनको सात्विक अर्थात नूर से निकाल कर जुलमत अर्थात तमस में डाल देते हैं यही लोग जहन्नुमी अर्थात नरकवासी हैं और यह उसमें हमेशा रहेंगे।

आप ने देखा कि कैसे विभिन्न ईश्वरीय किताबें और दूत यह तक बता रहे हैं कि आखिरी जमाने में क्यों लोग सत्य और सत्यमार्ग से दूर होते जाएंगे। इसलिए आश्चर्य नहीं कीजिए कि अधिकांश लोग सत्य को जानने के भी इच्छुक नहीं दिखाई देते।