Tuesday, 13 January 2015

वेद और वायुयान

आज मुम्बई में एक गोष्ठी में वेदों के ज्ञानी चर्चा करेंगे कि आज से 5000 वर्ष पहले भारतीयों के पास वायुयान बनाने की कला थी। अदभुत! इसमें कोई शक नहीं कि कुछ मायनों में 5000 वर्ष पहले हमारे पूर्वज हमसे कहीं अधिक विद्वान थे। आईए देखें कि कैसे!
वेदों के अनेक अनुवाद उपलब्ध हैं, बहुतेरे लुप्त हो गये। केवल यजुर वेद के लिए पंडितों ने लिखा है कि एक समय था जब इसके 100 से अधिक अनुवाद प्रचलित थे परन्तु अब मात्र 4 ही शेष बचे हैं। आप यह तो मानेंगे ही कि इन 100 विभिन्न अनुवादों में एक ही होगा जो वह अर्थ बता रहा हो जो इस आसमानी किताब के लिखने वाले बताना चाहते थे। मुझे जो भय है वह यह कि कहीं लुप्त हुए अनुवादों में वह अनुवाद भी लुप्त न हो गया हो जो सत्य के सब से करीब था।
जो भी अनुवाद बचे हैं उनमें अधिकतर में देवताओं का उल्लेख है। वेद दरअस्ल कई कविताओं को जोड़ कर बने ग्रंथ हैं। हर कविता किसी न किसी देवता को समर्पित है और उसको याद करके कही गई है। उदाहरण के लिए यदि कोई कविता देवी को समर्पित है तो उसमें देवी को याद करके बात कही जा रही है। कोई कविता इंद्रदेव को समर्पित है तो कोई वायु देव को और कोई अग्निदेव को। संस्कृत के विद्वान मानते हैं कि वेदों में ऐसी कला के साथ शब्दों को पिरोया गया है कि यदि एक मात्रा या विणाम भी अधिक हो जाए या एक भी कम हो जाए तो त्रुटि अलग से दिखाई देगा। उस समय के ज्ञानी पंडितों ने यह तैयारी की थी कि भले ही वेदों के अनुवाद समझ में न आयें परन्तु उसके छंद समय के उतार चढ़ाव के बावजूद ज्यों के त्यों बचे रहें। वेद इस मायनी में आसमानी किताबें है कि आज से 5000 वर्ष पहले संस्कृत में जो कविताएं थीं वह ज्यों की त्यों आज भी हमारे पास उप्लब्ध हैं परन्तु उनका कौन सा अनुवाद सत्य के करीब है यह कह पाना दुर्लभ है।
हमारे प्रिय स्वामी दयानंद सरस्वती ने सब से पहले वेदों में वायुयान, आदि होने का अनुवाद किया। दयानंद जी के अनुवादित वेद में न केवल वायुयान बल्कि भाप से चलने वाले इंजन, मैडम क्यूरी के आविष्कार, सड़कों पर चलने वाली गाडि़यों आदि का उल्लेख मिलता है। परन्तु यह भी मानना पड़ेगा कि वेदों में इन सब के होने का पता तब लगा जब इन सब का आविष्कार हो चुका था। यही कारण है कि दयानंद जी ने भाप से चलने वाले इंजन को तो वेदों में ढूंढ निकाला परन्तु बिजली से और डीजल से चलने वाले इंजन का वर्णन नहीं ढूंढ पाये। पढ़ने वाले खुश हो गये कि हमारी किताब साईंसदानों के लिए भी 5000 वर्षों से रास्ता दिखाती रही है परन्तु भूल गये कि ईश्वर उससे कहीं बड़े राज वेदों में छिपाए है जिनको बचाये रखने के लिए ही यह तैयारी की गई थी कि एक एक शब्द को आपस में पिरोया गया था ताकि कभी भी अस्ली वेदों में कोई मिलावट न कर सके।
आओ समझें कि दयानंद जी को क्या पड़ी थी कि उनको वेदों में इस प्रकार के अर्थ ढूंढने पड़े। जो कारण उस समय थे लगभग उन्हीं कारणों से आज साईंस की गोष्ठियों में वेदों पर चर्चा की जा रही हैं। दयानंद जी का समय वह समय था जब मैक्स म्यूलर और ग्रिफिथ आदि जैसे यूरोपियों ने वेदों को समझने और उनका अनुवाद करने का बीड़ा उठाया था। यह वेदों में देवताओं का वर्णन तो देखते थे परन्तु नहीं जानते थे कि यह देवता कौन हैं। यह लोग हिन्दुओं पर आरोप लगाते थे कि उनकी किताब ऐसे देवताओं का उल्लेख करती हैं जो किसी पुराने जमाने में असुरों से लड़े थे परन्तु उनका आज कोई रोल नहीं है। इस प्रकार वे यह साबित करना चाहते थे कि वेद पुराने समय की किताबें हैं और नये जमाने में उनका कोई महत्व नहीं बचा। ऐसा करके वे हिन्दुओं को ईसाई धर्म की ओर बुलाना चाहते थे। ऐसे समय में दयानंद सरस्वती ने वेदों का अनुवाद किया तो देवताओं को एकदम नकार दिया और वेदों में साईंस ढूंढ निकाली। गल्ती यहां पर हुई। यदि आप कहें तो मैं पूरी किताब लिख सकता हूं कि दयानंद जी ने जो अनुवाद किया है उसमें आपस में ही कितना विरोधाभास है। यदि हम वेदों को आसमानी किताबें मानते हैं तो हमको अपने मन से उन किताबों को मायनी पहनाने का कोई अधिकार नहीं। हमको चाहिए कि सिर जोड़ कर बैठें और समझने की कोशिश करें कि परमात्मा इतनी तैयारी के साथ हमको क्या संदेश देना चाहता है। वेदों में परमात्मा ने हमारे लिए जो रास्ता निर्देशित किया है वह यदि हम समझ लें तो हमारे लिए मोक्ष प्राप्ति का रास्ता आसान हो जाएगा। खेद का विषय यह है कि जब जब भी परमात्मा ने मोक्ष प्राप्ति का रास्ता दिखाया, तमसिक ताकतों ने उस रास्ते को बदल डाला क्योंकि वे नहीं चाहती कि इंसान देवताओं के मार्ग को समझ कर मोक्ष प्राप्त कर सके।
कहते हैं कि परमात्मा कभी भी अपने भक्तों को अंधों की तरह मानने वाला नहीं देखना चाहता। गीता और अन्य सब आसमानी किताबों में अकल के प्रयोग पर जोर दिया गया है। आओ अकल से समझने की कोशिश करें कि परमात्मा हम को क्या संदेश दे सकता है।
ईश्वर ने हमको इस पृथ्वी पर जन्म दिया। फिर क्या आवश्यकता पड़ी थी कि अवतार या किताबें भेजी जातीं? हमारे प्रश्न का अर्थ गीता में दिया गया है जिसमें कृष्ण कहते हैं कि जब जब धरती पर सही धर्म के मार्ग से लोग विचलित हो जाते हैं और अधर्म बढ़ जाता है तो सत्यमार्ग पर चलने वालों को बचाने के लिए और उस मार्ग से विचलित लोगों को सबक सिखाने हेतु और अच्छे कर्मों को फिर से स्थापित करने हेतु अवतार आता है। यदि ईश्वर मार्ग दर्शन हेतु किताबें भेजता है तो उसका भी यही कारण होना चाहिए। यह बात अकल से परे है कि ईश्वर किताबें भेजे जिनमें वायुयान बनाने का तरीका या स्टीम इंजन बनाना सिखाया जाए। यदि ईश्वर ने ऐसा किया भी तो क्या कारण था कि उन किताबों के मानने वालों ने पहले ही वायुयान बना कर खड़ा नहीं कर दिया? क्यों व्राईट बंधुओं ने वायुयान बनाया और हम ने बखान करना प्रारंभ कर दिया कि यह सब तो हमारी किताबों में 5000 वर्ष पहले ही लिख दिया गया था।
तुम कह सकते हो कि वास्व में उस समय में ऐसा ज्ञान उप्लब्ध था। हनुमान का उदाहरण सामने रखा जा सकता है। परन्तु हम हनुमान को वायुपुत्र भी तो कहते हैं। यह क्यों नहीं कहते कि एक समय साईंस इतनी आगे थी कि वायु अर्थात हवा धरती पर पुत्र पैदा किया करते थे। किताबों से जो कुछ समझा गया है उसको ज्यों का त्यों मानलें तो फिर सूर्य और चन्द्र भी धरती पर पुत्र पैदा करते थे। क्या यह सब उपहासपूर्ण नहीं हो जाएगा।
आओ, कुछ और उदाहरण देखते हैं। जब पैगम्बर मौहम्मद के लिए क्हा जाता है कि बुराक नामी विमान पर एक ही रात में वह सातवें आसमान पर परमात्मा के समक्ष गये और लौट आए तब तो तुम उपहास उड़ाते हो। क्यों नहीं मानते कि वही ज्ञान जिससे हनुमान उड़ा करते थे पैगम्बर मौहम्मद के पास भी था। इसी प्रकार मुसलमान हनुमान के उड़ने का तो उपहास उड़ाते हैं परन्तु पैगम्बर मौहम्मद के बुराक पर बैठ आसमान पर जाने को सत्य मानते हैं। यदि राम का नाम पत्थर पर लिख कर पानी में डालें तो वह तैरने लगता है तो क्या उस समय के लोगों ने गुरूत्वाकर्षन पर भी वश कर लिया था? आज यदि हम पत्थर पर राम का नाम लिखकर पानी में डालें तो वह क्यों नहीं तैरता? समझो, कारण कुछ और था जो हम समझ ही नहीं सके। दैवीय शक्तियों के लिए सब कुछ मुमकिन है क्योंकि एक एक कण उनके अधीन है। परन्तु यदि मैं यहां पर याद दिलाउं कि मौहम्मद के हाथ में आकर छोटे छोटे कण भी अल्लाह के गुण गाने लगते थे या छोटी छोटी चिडि़यों ने चोंच में कंकर उठा कर जब अब्रहा की फौज पर छोड़े तो पूरी फौज नष्ट हो गयी तो तुम उपहास उड़ा सकते हो।
मुस्लिम किताबों में है कि एक बार अली अबु बकर और उमर के साथ एक चटाई पर बैठे थे। किसी ने अली से पूछा कि हम वह गुफा देखना चाहते हैं जिसमें असहाबे कहफ सो रहे हैं। अली ने इशारा किया और चटाई उड़ती हुई चल दी और वहां पहुंची जहां वह गुफा थी। अली ने वह गुफा उनको दिखाई और फिर वापिस आ गये। अर्थात यह कि थोड़े ही समय में अली ने अरब के मदीना शहर से सीरिया तक का सफर किया और वापिस आ गये। पैगम्बर मौहम्मद के लिए लिखा है कि उन्होंने दो उंगलियों के बीच वह सब कुछ दिखा दिया था जो करीब 50 वर्ष बाद करबला में होने वाला था। तुम उपहास उड़ा सकते हो परन्तु जब देखते हो कि कृष्ण ने अर्जुन को एक दृष्य दिखाया तो कहते हो कि टीवी तो अब बना परन्तु उस समय भी वह कला हमारे पास उप्लब्ध थी। तुम कृष्ण को पहाड़ हाथ पर उठाए देखोगे या अली को दो उंगलियों से दरे खैबर उखाड़ते देखोगे तो एक का उपहास उड़ाओगे और दूसरे को सही जानोगे। तुम कृष्ण को सूर्य पलटाते देखोगे और मौहम्मद को भी सूर्य पलटाते सुनोगे तो एक का उपहास उड़ाओगे और दूसरे को सही मानोगे। तुम ईसा को मुर्दों को जिन्दा करते देखोगे, फातमा की दुआ पर मुर्दा शरीर में जान पड़ते देखोगे या अली के इशारे पर जिन्दा को मरते देखोगे, ईसा को पानी पर चलते देखोगे तो भी उसका या तो उपहास उड़ाओगे या उसमें साईंस ढूंढोगे।
मैं मानता हूं कि यह सब कुछ सत्य है परन्तु तुम उसके गलत कारण ढूंढ रहे हो। तुम स्वयं भटके हुए हो और भटके हुए दिमाग से उन दैविय कारणों को समझने की कोशिश में लगे हो जिनको तुम समझ ही नहीं सकते। पुराण के अनुसार केवल हनुमान ही नहीं हैं जो आकाश में उड़ा करते थे। पुराण अन्य व्यक्तियों का भी उल्लेख करता है जो ऐसा करते थे। मुस्लिम किताबों में सातवीं शताब्दी में सिंध के इलाके में रहने वाले एक ऋषि का उल्लेख मिलता है जो जब चाहता था 8वें अहलेबैत जाफर सादिक के समक्ष प्रस्तुत हो जाता था। जानते हो ऐसा क्यों हो सकता है?
कृष्ण गीता में इसका उत्तर देते हैं। वह कहते हैं कि सबसे बड़ी साईंस आत्मा की साईस है। अर्थात सब से बड़ी साईंस रूहानियत को समझना है। आज तमाम दुनिया माद्दियत अर्थात रजसिक दुनिया को समझने में लगी है। हम दुनिया की चाह में ऐसे ग्रसित हैं कि ईश्वरीय कृत्यों को भी हम दुनियावी आंखों से देखते हैं। यदि कृष्ण कहते हैं कि सब से बड़ी साईंस रूहानियत की साईंस है तो क्यों नहीं रूहानियत के मार्ग पर चलने की कोशिश करते हैं। जिस दिन हम ऐसा करना सीख लेंगे, सारे मार्ग अपने आप प्रजवलित हो जाएंगे। जब मनुष्य रूहानियत के मार्ग पर आगे बढ़ने की कोशिश करता है और जीवित रहते हुए उस शीर्ष पर पहुंचता है कि वह मोक्ष अर्थात निजात पाने के समीप हो, तो वह पृथ्वी, वायु, जल, आदि को अपने वश में कर पाने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। साई बाबा, मोईनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया ऐसे ही पहुंचे हुए व्यक्तियों के उदाहरण हैं। उनके जीवन को सामने रखकर उनके मार्ग पर चलने की कोशिश न करके हमने ऐसे व्यक्तियों के आगे ही सिर झुकाना प्रारंभ कर दिया।
मोक्ष के समीप पहुंच जाने वाला व्यक्ति आसमान में उड़ सकता है, पानी पर चल सकता है और अग्नि में बैठकर भी जीवित रह सकता है। दैवीय शक्तियों से करीब होकर वह यह सब कुछ करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। हमारे तुम्हारे जैसे आम व्यक्ति के लिए भी यह मुमकिन है। तुम क्या जानो कि वह देवता स्वयं जिन्हें ईश्वर ने तमाम सृष्टि का पालनहार बनाया है कितना शक्तिशाली हो सकते हैं। राम, कृष्ण, ईसा, अली, फातमा, मौहम्मद आदि उन शरीरों के नाम हैं जिनके अन्दर देवताओं का दिव्य प्रकाश अवतरित हुआ। इनको समझना है तो फिजिक्स या कैमिस्टरी के माध्यम से नहीं बल्कि रूह की साईंस द्वारा समझना होगा। खेद कि यह वह साईंस है जिसको कलयुग के मनुष्य ने बहुत पहले ही तज दिया है।

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 16 जून 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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