Wednesday, 28 January 2015

आज फिर फेसबुक पर किसी ने श्री राम के द्वारा सीता को घर से निकाले जाने को लेकर टिप्पणी की

आज फिर फेसबुक पर किसी ने श्री राम के द्वारा सीता को घर से निकाले जाने को लेकर टिप्पणी की। लिखने वाले ने इसको स्त्रियों का अपमान बताया। मुझे बहुत बुरा लगा। कुछ ही दिन पहले मेरे एक हिन्दु मित्र ने एक मेल द्वारा लिखा थाः ‘‘मेरी नजरों में रावण ठीक था। जिसने सीता को हाथ तक नहीं लगाया। जब्कि उसकी बहन की नाक काटी गयी थी। तब भी उसने सीता को कुछ नहीं किया। भाई जी मैं रावण को ठीक मानता हूं। राम से बड़ा योगी था रावण। राम ने रावण को नहीं मारा। रावण खुद राम के हाथों मरना चाहता था।’’ फिर उन्होंने एक धोबी के कहने पर सीता को घर से निकाले जाने को लेकर राम पर आरोप लगाया। मैं ने उन्हें समझाने की कोशिश की पर उनको समझ में नहीं आया।

इसलिए आवश्यक है कि मैं 14 अगस्त 2012 और 3 सितम्बर 2012 को की गई अपनी पोस्ट्स को जिसमें राम और सीता का उल्लेख था फिर से पोस्ट कर रहा हूं। ईश्वर हम को सदबुद्धि दे कि हम उन लोगों को जिनका देवताओं और परमात्मा से सीधा सम्बंध था ठीक से पहचान सकें। जो कोई भी ईश्वर के किसी दूत से लड़ने उसके सामने आ गया उसके तमाम अच्छे कर्म भी नष्ट हो गये। भले ही रावण ने सारी जिन्दगी अच्छे कर्म किए हों यदि वह राम से लड़ने आ गया तो उसके कर्म ऐसे ही नष्ट हुए जैसे कुरान में लिखा है कि कई हजार वर्ष ईश्वर की इबादत करने के बाद इब्लीस ईश्वर के एक हुक्म को न मान कर शैतान बन गया। पुराण में लिखा है कि राम का एक वंशज कृष्ण के समक्ष लड़ने आ गया और कृष्ण से लड़ते हुए मारा गया। भले ही वह राम का वंशज क्यों न हो यदि किसी और अवतार के समक्ष लड़ने आ गया तो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह राम का वंशज था, वह धर्म भ्रष्ट था। इसी प्रकार जो कोई भी अहलेबैत के मुकाबले में लड़ने आया वह धर्मभ्रष्ट है, भले ही वह मुसलमानों की नजर में कितना ही बाइज्जत क्यों ने हो।

पढि़ए 14 अगस्त 2012 की मेरी पोस्ट और फिर पढि़ए 3 सितम्बर 2012 की पोस्ट मेरी टाईमलाईन परः-

14 अगस्त 2012 की पोस्ट में मैंने लिखा थाः-

अपने प्यारे देशवासियों से संबो¬¬धन

दोस्तो आज जब हम अपने प्यारे वतन हिन्दुस्तान की आजादी की वर्षगांठ मना रहे हैं, यह आवश्यक हो जाता है कि कुछ कड़वी बातें की जाएं। ईश्वर ने हम को इंसान बनाया। हम को अक़्ल दी जो हम को सब से बेहतर बनाती है। वह चाहता है कि हम प्रेम से रहें। जब तक हम ने ईश्वर की दी हुई अकल से अपना मार्ग चुनना चाहा, हम सही रास्ते पर रहे, जब हम ने दिल की सुनना शुरू कर दी, हम भटक गए। क्योंकि शैतान की पहुंच दिल तक है, दिमाग तक नहीं। उसने हम को हर तरह की बुराईयों में डाल दिया।

जरा सोचिए हम क्हां आ गए है। आज हमारे देश में या विश्व के किसी कोने में किसी औरत की इज्जत लूटी जा रही हो, किसी लड़की को नंगा करके सड़कों पर घुमाया जा रहा हो, बच्चों के सामने उनके मां बाप को मारा जा रहा हो या किसी बेगुनाह का हक छीना जा रहा हो, हम को कोई फर्क नहीं पड़ता यदि वह किसी दूसरे देश, किसी दूसरे धर्म या किसी दूसरी जाति का हो। क्योंकि हम को केवल वहीं फर्क पड़ता है जब हमारे किसी अपने के साथ ऐसा हो। अपनी संकीर्ण मानसिकते के चलते हम ने ‘अपना’ शब्द को अपने बहुत करीब सीमित कर लिया।

पर ईश्वर को फर्क पड़ता है। हर आत्मा का सम्बंध उससे है। जब कभी भी कोई आत्मा दुखी होती है, कहीं से कोई आह निकलती है, ईश्वर को दुख होता है। क्या उसने अकल दी तो इसलिए कि हम उसका उपयोग करने की जगह एक दूसरे को दुखी करने में लग जाएं।

बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है। अपनी पत्नी के कारण हम अपने ही भाई से विवाद करते हैं। अपने बेटे के लिए और अधिक धन जमा करने की इच्छा में हम गरीब मजदूर का हक मार लेते हैं जिसके बच्चे दिन भर इंतेजार में रहते हैं कि शाम को बाप कमाई करके घर आएगा तो चटनी रोटी खाने को मिलेगी। अपनी वास्ना की पूर्ती के लिए हम दूसरे की बहु बेटी तलाशते हैं जब्कि ‘अपनी’ बहु बेटियां घर में होती हैं।

इस देश में मर्यादा पुरूषोत्तम राम गुजरे हैं जिन्होंने छोटी सी मर्यादा का पालन करने के लिए अपनी प्यारी पत्नी और दो प्यारे बच्चों को त्याग देना कुबूल किया। इसलिए कि ‘अपनी’ और ‘अपनों’ के मोह की जगह वह इंसाफ और सच्चाई के परस्तार थे। वह मर्यादा के पालक थे, इसलिए मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाए। इस देश के लोगों ने कितनी ही बार हक और इंसाफ के लिए खड़े होकर हर ‘अपनी’ चीज, यहां तक कि अपने प्राण भी त्याग देना पसन्द किए है। जहां दुनिया में आए दूसरे पैगम्बर आरी से काटे जा रहे थे, सूली पर लटकाए जा रहे थे और जिन्दा आग में डाले जा रहे थे, इस देश ने राम और कृष्ण और न जाने कितने दूसरों के साथ हक और इंसाफ की आवाज उठाई है और जीत हासिल की है। पर आज हम दूसरों के रास्ते पर चलने की कोशिश में अपना ही रास्ता भूलते जा रहे हैं।

आज सब दिलों पर शैतान का बसेरा है। वह गर्व से घूम रहा है कि उसने हिन्दुस्तान जैसे शांतिप्रिय देश में नफरत के बीज बो दिए, उसने हक और इंसाफ की आवाज उठाने वालों को केवल अपने लिए सोचने वाला स्वार्थी बना दिया, उसने मर्यादा पुरूषोत्तम को अपना राहबर समझने वालों की जिन्दगी से हर मर्यादा को छीन लिया।

ईश्वर बहुत समय से हालात को खराब होते देख रहा है। कृष्ण ने गीता में क्हा है कि हमारे कर्म इस दुनिया की बरबादी का कारण बनेंगे। हर इंसान उसका प्रिय है, उसका ‘अपना’ है। जब किसी इंसान के अन्दर से आह निकलती है, उसका गुस्सा बढ़ जाता है। जब कोई भूखा सोता है, वह कहता है कि क्या मैं ने इस दुनिया में हर एक के लिए खाने का इंतेज़ाम नहीं किया। क्या बच्चे के दुनिया में आने से पहले मैं ने मां की छाती के अन्दर उसके लिए खाना पैदा नहीं किया। जब मैं छोटे से बच्चे के लिए पहले से उसके खाने का इंतेजाम कर सकता हू तो मैं हर इंसान के लिए ऐसा क्यों नहीं करूंगा। अपनों की चाहत में तुम ने ‘दूसरों’ की चिंता छोड़ दी, अपने ही रब की चिंता छोड़ दी। तुम भूल गए तुम सब इंसान हो, सब तुम्हारे अपने हैं, तुम्हारे ही ईश्वर के हैं।

3 सितम्बर 2012 की पोस्ट में मैंने लिखा थाः-

तुम से सवाल है, ये बताओ कि मजहब यानी धर्म किसी इंसान या उसके नाम से बनता है या उसके खुदाई पैगाम से? क्या किसी पैगम्बर, अवतार या ईमाम को चाह कर धर्म पूरा होता है या उसके पैगाम को चाह कर?

मूसा पैगम्बर थे लेकिन उनके चाहने वालों ने उन्हें अपना जैसा इंसान माना तो खुदा ने उन्हें फेल कर दिया।

ईसा भी पैगम्बर थे लेकिन उनके चाहने वालों को खुदा ने ईमान वालों की लिस्ट से बाहर कर दिया क्योंकि उन्होंने उनके नाम को चाहा और उनके नाम पर अपना धर्म बनाया। उनके पैगाम को चाहा होता तो उतनी ही मौहब्बत खुदा से की होती और जो भी वो पैगम्बर पैगाम दे रहा होता उसे ज्यों का त्यों माना होता। मित्ती की इंजील 7ः21-27 कहती हैः

‘‘जो मुझ से ऐ खुदावंद ऐ खुदावंद कहते हैं उन में से हर एक आसमान की बादशाही में दाखिल न होगा मगर वही जो मेरे आसमानी बाप की मर्जी पर चलता है। उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे ऐ खुदावंद ऐ खुदावंद! क्या हम ने तेरे नाम से नुबूवत नहीं की और तेरे नाम से बदरूहों को नहीं निकाला और तेरे नाम से बहुत से मोजिज़े नहीं दिखाए। उस वक्त मैं उनसे साफ कह दूंगा कि मेरी कभी तुम से वाक़फियत न थी ऐ बदकारों मेरे पास से चले जाओ। पस जो कोई मेरी ये बातें सुनता और उन पर अमल करता है वो उस अकलमंद आदमी की मानिंद ठहरेगा जिस ने चट्टान पर अपना घर बनाया। और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आंधियां चलीं और उस घर पर टककरें लगीं लेकिन वो न गिरा क्योंकि उस की बुनियाद चट्टान पर डाली गई थी। और जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर अमल नहीं करता वो उस बेवकूफ आदमी की मानिंद ठहरेगा जिस ने अपना घर रेत पर बनाया। और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आंधियां चलीं और उस घर को सदमा पहुंचाया और वो गिर गया और बिलकुल बरबाद हो गया।’’

हर दौर में लोग इंसानी जिस्मों और नामों को चाहते रहे और उनके पैगाम को भुलाते गए। कुछ लोगों ने अली को चाहा और कुछ लोगों ने तीन सहाबा कराम को। आपसी रंजिश मजहब बन गई। नाम और जिस्म न रहने वाली चीजें थीं। रूह को चाहते तो उन पैगामों को चाहते जो हमेशा हमेशा रहने वाली चीज होती। रूहों से मौहब्बत करते तो खुदा की ताकत और खुदा की रहमत दिखाई देती। जिस्मों को चाहा, जिस्मों से मौहब्बत की तो सिर्फ नफरतें दिखाई दीं। रूहों से मौहब्बत की होती तो खुद अपने में और अपनों में कमियां दिखाई देतीं, रूह ने तरक्की की होती तो हर तरफ मौहब्बत दिखाई देती, अम्न दिखाई देता, जिस्म को चाहा तो सिर्फ नफरतें दिखाई दीं।

इसी तरह क्या राम का पैगाम वही नहीं है जो हर पैगम्बर ने दिया। किसी का दिल न दुखाओ। स्वयं तकलीफ झेल लो, सब्र कर लो बड़ी से बड़ी मुसीबत पर लेकिन अपने कारण किसी दूसरे को तकलीफ न पहुंचाओ। बड़ों का अदब करो चाहे तुम्हारी सौतेली मां ही क्यों न हो। क्या ये सिर्फ खुदाई अहकाम नहीं थे जिन पर और पैगम्बरों की तरह खुद राम ने चल कर दिखाया। फिर खुदा ने सब्र का इम्तेहान ले कर सब के दिलों में और खुद उस सौतेली मां के दिल में मौहब्बत डाल दी। क्या राम खुदा के खास बन्दे नहीं थे? खास हिन्दुस्तान में एक पैगम्बर! और जब सारे इम्तेहान यानी परीक्षाएं दे कर इज़्ज़त के साथ घर लौटे तो एक धोबी अपनी बीवी पर - सीता की मिसाल दे कर - ऐब लगा कर निकालता है कि मैं राम जैसा पति नहीं हूं। क्या एक दुनियावी राजा ऐसा करता कि वो समाज को अपना बनाने के लिए अपनी चाहने वाली बीवी को इस तरह दूर कर देता और बच्चों को मौहब्बत और ऐश-ओ-इश्रत देने की जगह अपने से दूर कर देता। या उस धोबी को ही खत्म करवा देता कि तुम्हारी जुरअत कैसे हुई मेरी बीवी की मिसाल देने की?

कुछ लोग कहते हैं कि राम थे ही नहीं। अगर नहीं थे तो लोगों के दिलों में उनके लिए इतनी मौहब्बत कैसे हुई? बनी बनाई कहानी इतना नहीं बढ़ती कि आज हिन्दुस्तान के कोने कोने में उस नाम से मौहब्बत है। इज्जत और जिल्लत खुदा के हाथ में है। जब तक खुदा किसी नाम को बढ़ाने में मदद न करे वो किसी का भी नाम हो नहीं बढ़ सकता। क्या राम की जिन्दगी आप को किसी पैगम्बर यानी अवतार का पैगाम नहीं देती?

जब नूह ने खुदा के हुक्म से किश्ती बनाई और पैगाम दिया खुदा का कि आओ जो इस किश्ती पर सवार हो जाएगा वो बच जाएगा नही ंतो तूफान आएगा और सबको बहा कर ले जाएगा उस वक्त खुदा का मकसद यही था कि जो कौम खुदा का पैगाम नहीं मान रही है उसको गर्क कर दिया जाए और ईमान वाले बचा लिए जाएं। जो भरोसा कर रहे थे कि नूह की जबान से जो कलाम निकल रहा है वो खुदा का कलाम है वो बच गए और जिन्होंने नूह के पैगाम को आम इंसान का पैगाम माना और खुदा का पैगाम देने वाले को झूटा क्हा वो पानी में डूब कर मर गए। इन लोगों को खुदा के कलाम से ज्यादा अपनी बात की सच्चाई पर यकीन था। ऐसे लोग हर दौर में खुदा के नजदीक ईमान वालों की लिस्ट से बाहर कर चले जाएंगे, चाहे वो खुदा नूह का बेटा ही क्यों न हो। उस ने उस पैगाम को अपने बाप की बात माना और खुदा का कलाम नहीं माना, तो वो भी गर्क हुआ।

जब भी कोई पैगम्बर आया, लोगों ने उससे मौहब्बत शुरू कर दी और यह भूल गए कि खुदा अपने बन्दों तक अपना पैगाम देने के लिए पैगम्बर भेजता है। मौहब्बत खुदा और उसके कलाम से करना चाहिए न कि खत्म होने वालो जिस्मों से। जो जिस्मानी रिश्तों की मौहब्बत में पड़ गया वही ईमान से दूर होता चला गया। यानी असली ईमान खुदा और उसका पैगाम है चाहे वो किसी भी पैगम्बर के माध्यम से आए हों। हजरत आदम हों या जनाबे मूसा, ईसा हों या इब्राहीम - राम हों या मौहम्मद।

इसी तरह राम जी जिन्हें लोग राजा कहते हैं अस्ल में रूहानी बादशाह थे जिन्होंने दिलों पर हुकूमत की थी रूह के जरिए, इसीलिए धोबी के घर को तबाह नहीं किया बल्कि अपने घर को तबाह कर लिया। बुराई से बचिए, यह खुदा का पैगाम दिया, अपनी खुशियों को मिटा कर, जिसकी वजह से उस कुरबानी को खुदा ने बेकार नहीं करना चाहा और उस नाम को मिटने नहीं दिया।

इसी तरह इमाम हुसैन ने जो कुरबानी दी थी वो औलाद की कुरबानी थी यह दिखाने के लिए कि अल्लाह की राह से न हटो चाहे कोई पैसा देकर भी हटाना चाहे या चाहने वालों की जानों की धमकियां देकर - यहां तक कि औलाद की जानों तक भी बात आ जाए - यह न देखो ये मेरा छह महीने का बच्चा मां की गोद में नहीं रहेगा, यह ने देखो अभी तो मेरे इस जवान बच्चे की शादी भी नहीं हुई और खुदा का पैगाम बचाने के लिए यह भी न सोचो मेरे बाद मेरे घर वालों का क्या होगा, सिर्फ यह दिखा दो कि मुझे अल्लाह के पैगाम से ज्यादा किसी की मौहब्बत नहीं, जो पैगाम पैगम्बरे खुदा ने दिया है कुरआन के माध्यम से, क्योंकि पैगम्बरे खुदा की वफात के बाद फिर से मजहब बनने लगे थे जिस्मों और नामों को चाह कर इसलिए यह शहादत थी इस दुनिया को यह पैगाम देने के लिए कि खुदा की राह दिखाने के लिए अपने घर अपनी औलाद को भी न देखो - फिर भी भूल गई यह दुनिया और समझ में न आ सका कि असली मकसद हुसैन की कुरबानी का क्या था।

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