Saturday, 14 December 2013

व मकरू व मकरललाह व अल्लाहु खैरूल माकिरीन



आप जानते हैं कि पंडित महेंद्र पाल आर्य अपनी सारी कोशिशें इस ओर लगा रहे हैं कि वे यह साबित करें कि कुरान कलामल्लाह अर्थात अल्लाह का कलाम नहीं है और यह कि मौहम्मद ने कुरान को अल्लाह से जोड़ कर पाखंड किया था। जब मैं ने उनका उत्तर दिया तो जहां भी वह निरूत्तर हुए उन्होंने मेरी पोस्ट को डिलीट कर दिया। अन्यथा उनके समर्थकों की ओर से प्रश्न आने लगे। उनके मित्र दिनेश शर्मा ने लिखाः ‘‘यही तो खराबी है तुम सिर्फ ईमान लाते हो बिना जाने। पर हम आर्य बिना समझे, जाने उसे अमल नहीं करते भाई। जब तक वह तर्क से सिद्ध हो, जिस का एक प्रमाण डालता हूं देख लेना, अच्छे से पढ़ ले।’’

‘‘ मकरू मकरललाह अल्लाहु खैरूल माकिरीन। अर्थात मकर करते हो तुम और मैं भी मकर करता हूं और मैं तुम से ज्यादा मकर करने वाला हूं। मकर माने धोका। तो भला यह बता जा अल्लाह अपने बंदों के साथ धोका कर सकता है तो हम बंदों का क्या होगा। जरा सोच के बता भाई। इसलिए आज मुल्ला दुख में हैं और सिर्फ धोका ही करते हैं। अल्लाह का ज्ञान जीरो।’’

आदरणीय मित्र के उत्तर में मौहम्मद अलवी ने लिखाः आप ने दो बातें की हैं। एक यह कि हम बिना जाने ईमान लाते हैं। हमारे हर बच्चे को बचपन में बताया जाता है कि पांच बातों को उस को अकल से समझना है। यदि अकल से नहीं समझा और केवल मान लिया तो वह मुसलमान नहीं। पांच बातें यह हैंः पहले, तौहीद अर्थात एक ईश्वर है जो सारी सृष्टि का बनाने वाला और चलाने वाला है। दूसरे अदल अर्थात वह केवल इंसाफ करता है। क्योंकि यदि वह इंसाफ करे तो कोई अच्छे कर्म क्यों करे और पाप से क्यों बचे। तीसरे नुबूवत, अर्थात उसने विश्व की हर आबादी में और हर समय में अवतार भेजे - जो गीता में कृष्ण ने भी क्हा है - और यह अवतार ईश्वरिय संदेश देते रहे। इन में अंतिम अवतार मौहम्मद थे। चैथे, इमामत अर्थात परमात्मा की ओर से भेजे हुए गुरू हैं जो पुरूषोत्तम हैं और जिन्होंने परमात्मा द्वारा बताए पथ पर स्वयं चल कर हमारा मार्गदर्शन किया कि कैसे हम उस रास्ते पर चल कर परमात्मा तक पहुंच सकते हैं। पांचवें कयामत, अर्थात एक दिन आएगा जिस दिन जिन लोगों के कर्म का हिसाब नहीं हुआ है वह होगा, और फिर उनको उसकी सजा या जजा दी जाएगी। फिर जब अकल से मान लिया  कि ईश्वर एक है, वह हमेशा इंसाफ करता है, मौहम्मद और अन्य अवतार उसकी ओर से ही शिक्षा देने आए हैं, और उसकी ओर से ही बनाए गए गुरू हैं जिन के पथ पर चल कर मोक्ष है तो यदि मुसलमान आंख बंद करके उनके बताए मार्ग पर चलता है तो क्या गलत करता है? मार्गदर्शक को पहचानने में अकल लगाने के बाद फिर उसके बताए मार्ग पर आंख बंद करके चलने में क्या गलती है? आप ने कितने ही गुरू देखे हैं जिन के पथ पर आप आंख खोल कर चल रहे थे, परन्तु समय आया तो आप ने जाना कि वह गुरू स्वयं पथभ्रष्ट था। कितनों के बारे में आप जान भी नहीं पाते और वह परलोग सिधार जाते हैं। जब हमारे मार्ग दर्शन के लिए ईश्र की ओर से आए गुरू हैं - जिन को आप ने देखा कि वेद और गीता ने भी पहचनवाया है - तो हम उनके बताए रास्ते में भी यह कहें कि इस को मानेंगे उसको नहीं? आप से भी निवेदन है कि अपनी सारी अकल, सारी शक्तियां लगा दें वेद और गीता को समझने के लिए और जब समझ जाएं कि वह क्या संदेश दे रहे हैं तो अपनी अकल नहीं लगाएं, आंख बंद करके शिक्षा पर चलें। यही मुसलमान कहता है कि वह करता है!

दूसरी बात जो आप कह रहे हैं दिनेश शर्मा जी वह यह है कि अल्लाह कुरान में कह रहा है किअगर तुम मकर करते हो, जो मैं मकर करता हूं, और अल्लाह सब से बेहतर मकर करने वाला है।इसका अर्थ आप ने यह निकाला कि ईश्वर अपने बंदों के साथ मकर धोका करता है। पर कुरान ने यह तो लिखा नहीं कि अल्लाह अपने बंदों के साथ मकर करता है, बल्कि यह लिखा है कि जो लोग धर्मभ्रष्ट हैं और धोका देने की कोशिश करते हैं तो अल्लाह उन से बढ़ कर मकर करने वाला है, जो उनके धोके का बदला उनको देता है। हां, क्योंकि कुरान में है, इस लिए मैं मानता हूं कि अल्लाह उन लोागों के साथ मकर करता है जो उसके साथ मकर करते हैं। इसका एक उदाहरण मैं देता हूं। महाभारत का युद्ध हो रहा है। नियम के हिसाब से सूर्य ढलते ही युद्ध समाप्त हो जाना है। परन्तु अल्लाह चाहता है कि कौरव का एक योद्धा मारा जाए। तो वह दिन को लंबा कर देता है। सूर्य ढलता ही नहीं है, यहां तक कि वह योद्धा मारा नहीं जाता। दूसरा उदाहरण। तुम में से जो अपने को आर्य समाजी कहते हैं उनके गुरूओं ने वेद के अर्थ तक ही बदल डाले। शायद इसलिए कि वेद देवताओं की बात कर रहे थे और तुम्हारे गुरू जान गए थे कि यह देवता कौन हैं। तुम ने कहा कि देवता कुछ हैं ही नहीं, और तुम ने उस में मैडम क्यूरी का अविश्कार, स्टीम इंजन और हवाई जहाज और जाने क्या क्या ढूंढ निकाला। पर भारत भर में फैले देवताओें के मंदिर नहीं हटा पाए। वह गाथाएं बदल पाए जो अवाम में प्रचलित हैं। आज भी हर हिन्दू देवताओं के मंदिर में आस्था रखता है। तुम ने वेद की कमेंटरी क्यों बदली कि वह कुछ कह कुछ रही है और तुम समझना और समझाना कुछ और चाह रहे थे? तुम को चाहिए था कि तुम समझने की कोशिश करते कि वेद बार बार देवताओं का उल्लेख करके क्या पैगाम देना चाह रहे हैं। आखिर तुम वेद को ईश्वर की ओर से आई किताब मानते हो, जो कि वह हैं। फिर क्यों उन में अपने अर्थ पहनाने की कोशिश करते हो? तुम ने मुसलमानों के खिलाफ भी मोर्चा खोला। पर तुम यह नहीं जान पाए कि जिन वेद कि कमेंटरी बदल कर तुम उन में देवताओं के नाम को निकाल देना चाहते थे, वह देवता और मुसलमानों के अहलेबैत में कोई अन्तर नहीं है। तुम में से कुछ ने मकर किया, ईश्वर ने उस से भी बढ़ कर मकर किया और दिखा दिया कि जिन मुसलमानों और हिन्दुओं में तुम दूरी पैदा करना चाहते थे, उन दोनों की किताबों में कोई अन्तर नहीं है। दोनों का स्त्रोत एक ही है! तीसरा मकर जो ईश्वर ने नहीं किया, वह कर सकता है और हम को पता भी नहीं करेगा यदि वह करेगा, वह यह है कि जब पंडित महेंद्र पाल आर्य और उनके तमाम समर्थक मुसलमानों के खिलाफ घृणा और नफरत को कुछ लोगों के दरमियान चरम सीमा तक पहुंचा दें, करोड़ों इंसानों में आपस में दूरियां पैदा कर दें जिसके फलस्वरूप अनेक महिलाओं को विधवा और बच्चों को अनाथ बना दें तो कुछ समय पश्चात ईश्वर पंडित महेंद्र पाल आर्य और उनके तमाम साथियों को मुसलमानों के घर में पैदा कर दे। उसके लिए यह कठिन नहीं, यह आप जानते हैं।

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