Saturday, 14 December 2013

सब ही भटके हुए



हरी रोकणम ने पंडित महेंद्र पाल आर्य की एक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए लिखाः

‘‘किसी काम के होने के बारे में, यदि कोई आपसे यह कहे कि, राम कहते है, यदि राम की कृपा हो जाए, ईसा मसीह कहते हैं, यदि ईसा मसीह की अनुकम्पा हो, और खुद इश्वर कहता है, ईश्वर की इच्छा हो, तो यह काम हो सकता. तो आपको उस व्यक्ति की यह बातें उसी तरह मूर्खता पूर्ण लगेंगी, जैसे कोई यह कहे की मैं अपने ही कन्धों पर बैठता हूँ .

लेकिन जब आपको बताया जाये कि अल्लाह खुद कहता है "यदि अल्लाह चाहे (إن شاء الله" (अरबी में "इंशा अल्लाह) तो सोचेंगे कि अल्लाह "मैं चाहूँ "की जगह यदि अल्लाह चाहे क्यों कह रहा है. फिर दूसरा अल्लाह कौन है?

इस पहेली को हल करने के लिए आपको पहले इस्लाम में अल्लाह और कुरान के बारे में जो मान्यताएं है, उनकी जानकारी देना जरूरी है. मुसलमान कुरान को अल्लाह के वचन मानते हैं, जिसमे कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, और होगा. इस विषय को स्पष्ट करने के लिए आपको कुरान से हवाले दिए जा रहे हैं. फिर लेख पढ़ने के बाद निर्णय आपको करना होगा. देखिये -

1-
कुरान अल्लाह की वाणी है

अल्लाह खुद कुरान को अपना उपदेश, अपना कथन कहता है, बल्कि एक एक शब्द अपने द्वारा कहा हुआ बताता है, जैसे

"
हे लोगो तुम्हारे पास यह अल्लाह का उपदेश (कुरान) आगया है " सूरा-यूनुस 10 :57

"
यह मानव के लिए अल्लाह का साफ साफ आदेश है, और इसलिए भेजा गया है की इस से लोगों को सचेत किया जाये "सूरा .इब्राहिम 13 :52 "

"
यह अल्लाह की सर्वोत्तम बातें हैं, जिसके सभी हिस्से आपस में परस्पर मिले हुए हैं, और बार बार दुहराए गए हैं "सूरा -अज जुमुर 39 :23”

आगे हरि रोकणम लिखते हैंः

"2 -कुरान कितने लोगों पर उतरा गया था ?

मुसलमान यह दावा करते है कि अल्लाह ने कुरान सिर्फ मुहम्मद के ऊपर ही नाजिल की थी . लेकिन हम दी गयी आयत को ध्यान से पढ़ें तो, पता चलता है कि. अल्लाह ने कुरान को कई लोगों पर नाजिल किया था. देखिये

"
वह अत्यंत बरकत वाला है, जिसने यह फुरकान (कुरान) अपने बन्दों पर उतारा है, ताकि वह संसार के लिए सचेत वाला हो "

सूरा-फुरकान .25 :1

3 -
अल्लाह कौन से अल्लाह की तारीफ करने को कहता है.

कुरान में अल्लाह अक्सर "मेरी "की जगह "उस "अल्लाह की तारीफ करने को कहता है, ऐसा लगता है जैसे कोई दूसरा भी अल्लाह है. देखिये

"
प्रशंसा तो "उस "अल्लाह के लिए है "जो " हर चीज का मालिक है, जो आसमान और जमीन में है "सूरा-सबा 34 :1

"
प्रशंसा "उस" अल्लाह के लिए है, जो आकाशों और धरती का स्रष्टा है, और फरिश्तों को सन्देश वाहक नियुक्त करने वाला है "

सूरा -फातिर 35 :1

"
सारी तारीफ़ "उस "अल्लाह के लिए है "जो "आकाशों और धरती का रब है "सूरा -अल साफ्फात 37 :182

"
तारीफ़ तो सिर्फ "उस "अल्लाह के लिए है आकाशों और धरती का रब (पलक) है "सूरा -अल जासिया 45 :36

अगर यह खुद अल्लाह के वचन हैं, तो फिर अल्लाह किस अल्लाह की तारीफ़ कर रहा. और कौन सा दूसरा अल्लाह है जो आसमानों और जमीन का मालिक है, और स्रष्टा भी है ?"

मौहम्मद अलवी लिखता हैः हरि रोकणम, यह तो मानना पड़ेगा कि तुम ने जो तर्क दिए हैं उनका अकली जवाब आज के मुसलमानों के पास नहीं है। तुम ने वाकई कुरान को पढ़ने की कोशिश की है। परन्तु यदि एक वर्ग विशेष को जलील करने, उसकी किताब को कमतर साबित करने और जाकिर नायक जैसों को जवाब देने के लिए कुरान को पढ़ा होता और सच्चे मन से पढ़ा होता तो तुम्हारी जैसी अकल रखने वाले की समझ में बहुत से कुरानी राज आते। मेरी तुम से गुजारिश है कि कुरान को पढ़ना छोड़ दो और इसी तनमयता से वेद, उपनिषद और गीता को पढ़ो। वेद, उपनिषद और गीता यदि कुरान और मौहम्मद की ओर इशारा करते नजर आएं तो कुरान और मौहम्मद के विषय में पढ़ना अन्यथा पढ़ना। वेद, उपनिषद और गीता भी उस एक मार्ग की ओर ही इशारा कर रहे हैं जिस पर चलकर हमारा उत्थान और मोक्ष है।

मुझे आज तुम्हारे इस लेख को पढ़कर खुशी इसलिए हुई कि जो बात मैं वर्षों से साबित करने की कोशिश कर रहा हूं वह तुम ने, मुसलमानों की दुश्मनी में ही सही, पर कह डाली। तुम ने जो प्रश्न उठाए हैं उनका तसल्ली बख्श जवाब जाकिर नायक के पास भी नहीं है। सत्य तो यह है कि इन प्रश्नों का तसल्ली बख्श उत्तर सुन्नी और शिया उलमा में से किसी के पास भी नहीं है। जब तुम अपने तर्क उनके सामने रखोगे तो या तो वह मौहम्मद के दौर से पहले की कुछ कविताओं का उदाहरण देकर केवल यह कहेंगे कि उस दौर में अरब में यह प्रथा थी कि अपनी बात पर अधिक जोर देने के लिए वक्ताहमका प्रयोग करते करतेउसका प्रयोग करता था याउसका प्रयोग करते हुएहमका प्रयोग करता है। और या यह कहेंगे कि गैरमुस्लिम को कुरान की समझ हो ही नहीं सकती। दिल पर हाथ रखकर बताओ मुसलमानों के यह तर्क गले से उतरते हंै? आज के इस युग में जब हर किताब इंटरनेट पर उपलब्ध है तो तुम कैसे उम्मीद कर सकते हो कि हिन्दु कुरान नहीं पढ़े या मुसलमान गीता नहीं पढ़े।

मैं बार बार कहता रहा हूं कि मुसलमानों को अभी कुरान को पूरी तरह समझना बाकी है। अहलेबैत और उनके नूरी रोल को समझे बिना, जिसका उल्लेख वेद और उपनिषद में भी है, मुसलमान कुरान को नहीं समझ सकते ठीक उसी तरह जैसे देव गण मानव शरीर में पधारे और अहलेबैत कहलाए तो उनकी जिन्दगी में क्या कुछ हुआ यह पढ़े बिन हिन्दु वेद और उपनिषद को नहीं समझ सकते। दूसरे शब्दों में कहूं तो वेद, उपनिषद और गीता को समझे बिना कुरान समझ में नहीं आएगा और कुरान समझे बिना वेद, उपनिषद और गीता समझ में नहीं आएंगे। और सबको खुले मन से एक ही ईश्वर की ओर से आई किताबें समझ कर पढ़ना होगा तब उलझी हुई गुत्थियां सुलझेंगी, छिपे हुए राज सामने आएंगे।

कुरान में जैसा प्रतीत हो रहा है कि अल्लाह ने कभीहमकह कर बात की है और कभीवहऔरउसकह कर बात की है, इसका समाधान चाहते हो तो तुमको गीता को ईश्वरीय किताब मानते हुए पढ़ना होगा और उससे पहले ईश्वर, परमात्मा और देवताओं के बारे में वह तमाम जानकारी प्राप्त करना होगी जो वेद, उपनिषद और गीता दे रहे हैं।

मुसलमानों, यदि तुम ध्यान से देखो तो जो तरीका मौहम्मद पर कुरानी आयतें आने का था वही कृष्ण के साथ भी हुआ। मौहम्मद आम इंसानों की तरह बात करते थे परन्तु कभी अकेले में और कभी सब के बीच उनके मुख से वह कलाम निकलने लगता था जिनमेंतुमकह कर मौहम्मद से बात हो रही थी औरहमऔरवहकह कर कोई मौहम्मद से बात कर रहा था। यही कृष्ण के साथ महाभारत के युद्ध के दौरान हुआ। वह आम आदमियों की तरह अर्जुन से बात कर रहे थे कि अचानक उन्होंनेहमसे ऐसे बात करना प्रारंभ कर दी जैसे परमात्मा बोल रहा हो। यह ऐसे ही अचानक हुआ कि यदि तुम गीता ध्यान से पढ़ोगे तो अर्जुन भी कुछ देर तक कृष्ण को आम मनुष्य ही समझते रहे और थोड़ी देर बात उन्हें अंदाजा हुआ कि यह कुष्ण नहीं बल्कि परमात्मा बोल रहा है और तब अर्जुन के हाव भाव ही बदल गए।

जब गीता में ही परमात्मा कह रहा था कि मैं बार बार अवतरित होता हूं तो गीता के मानने वालों को चाहिए था कि देखें कि उसी तर्ज में बात करने वाला और कोई नजर आता है कि नहीं। और जब कुरान पहले की किताबों के बारे में कह रहा है कि उनको और कुरान को एक जानो और यह सब किताबे जो ईश्वर की ओर से आई हैं यह उस किताब अर्थात फुरकान का हिस्सा हैं जो आसमान पर है तो मुसलमानों को चाहिए था कि ढूंढने की चेष्टा करते कि अन्य किताबें कौन कौन सी हो सकती हैं परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और कुरान को दूसरी किताबों के सामने ला खड़ा किया। अतः हिन्दु और मुसलमान दोनों ही अंधेरे में भटकते रहे। 

हमारे आदरणीय मित्र कुरान पर तो आक्षेप लगा रहे हैं कि इसमें कभीहमकह कर और कभीवहकह कर बात हो रही है परन्तु उन्होंने शायद गीता को ध्यान से नहीं पढ़ा वर्ना ऐसा नहीं कहते। गीता में भी कृष्ण जब आम मानव की तरह बात करते करते अचानक परमात्मा के लहजे में बात करने लगते हैं तो कृष्ण के मुख से जो वाणी निकलती है वह ऐसे जैसे परमात्माहमकह कर बात कर रहा है। परन्तु गीता भी कम से दो जगहउसकह कर ईश्वर की बात करती है ठीक वैसे जैसे कुरान मौहम्मद पर नाजिल हुआ तो मौहम्मद आम आदमी की तरह बात करते करते कुरानी आयात पढ़ने लगते थे तो उनके मुख सेहमअर्थात परमात्मा बात करने लगता था और बार बार ईश्वर की बात होती थी तोउसयावहकहा जाता था।

गीता को फिर से पढ़ें। समझ में ठीक से आए तो मुझ से कहें मैं उदाहरण सहित आपके सामने पेश करूंगा। गीता में भी परमात्मा नेउसके साथ ईश्वर अर्थात अल्लाह की बात की पर हिन्दुओं ने नहीं समझा और मुसलमानों पर यह आरोप लगाते रहे कि यह अल्लाह को मानते हैं हम परमात्मा को। ठीक उसी ढंग से मुसलमानों की किताब मेंहमऔरउससे बात हुई तो मुसलमानों ने दोनों का मतलब अल्लाह माना और कुरान में अनेक इशारे होने के बाद भी परमात्मा के वजूद को नकार दिया। फलस्वरूप आज अनेक प्रश्न हैं जिनके उत्तर हिन्दुओं के पास नहीं और अनेक प्रश्न हैं जिनके उत्तर मुसलमानों के पास नहीं। दोनों पक्षों में से कुछ लोग अंधों की तरह अपने धर्म को सही मानते हैं और दूसरे के धर्म में त्रुटी ढूंढते फिरते हैं। अपने धर्मग्रंथों को सही से समझने की कोशिश की होती तो वह स्वयं दूसरे के धर्मग्रंथों की ओर ले जाते परन्तु तब तुम्हारी आंखें खुली होतीं और तुम्हारे मन में अहंकार, घृणा अथवा नफरत के भाव नहीं होते बल्कि तुम और अधिक अपने ईश्वर अर्थात अल्लाह के आगे नतमस्तक होते जाते।

ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर अर्थात अल्लाह का प्लान ही यह था कि जब तुम मजहब की दीवारें खूब मजबूत कर लो, जब तुम दूसरे धर्म के प्रति नफरत और द्वेष में इस कदर ग्रस्त हो जाओ कि अपने धर्मग्रंथों को पढ़ने की जगह दूसरे के धर्मग्रंथों में त्रुटियां ढूंढो और जब हर धर्म में ऐसे प्रचारक पैदा हो जाएं जो दूसरे के धर्म को नीचा दिखा कर अपने ज्ञान का लोहा मनवाना चाहें तो कलयुग के इस आखिरी दौर के मानव के सामने सत्य ऐसे जाए कि सब उसको अपनी अपनी किताबों से पहचानें और किसी धर्म, पंथ अथवा फिरके को इस बात पर नाज करने का मौका रह जाए कि हमारे विचार सही थे और अन्य सब गलत थे। सब सत्य के करीब हों परन्तु सब ही भटके हुए हों।

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