अल्लाह के अतिरिक्त किसी दूसरे के सामने हाथ फैलाना गुनाह है। लेकिन कोई तुम्हारे सामने हाथ फैलाए और तुम यदि उसकी मदद कर सकते हो तो तुम्हारे लिए उसकी मदद करना जरूरी है।
तुम कह सकते हो कि यह कैसा कानून! एक ओर भीख मांगने को मना किया जा रहा है और दूसरी ओर तुम पर वाजिब किया जा रहा है कि अगर कोई तुम्हारे सामने मदद के लिए हाथ फैलाए तो तुम उसकी मदद जरूर करो।
जानते हो ऐसा क्यों! ऐसा इसलिए क्योंकि हालांकि किसी गैरअल्लाह से मांगना गलत है लेकिन तुम्हें नहीं मालूम कि मांगने वाले की क्या हालत है। ऐसा तो नहीं कि उसके बच्चे भूख से मर रहे हों और मजबूरी की हालत में वह हाथ फैलाने तुम्हारे सामने आया हो। अगर तुम उसके विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हो तो करो परन्तु नहीं कर सकते तो किसी मांगने वाले के सवाल को रद्द न करो।
ऐसा इसलिए क्योंकि आलमे इस्तेरार में हुक्म बदल जाता है। अर्थात जब इंसान मरने के करीब है और सब रास्ते बंद हो जाएं तो चूंकि जान बचाने की कोशिश करना वाजिब है इसलिए हराम हराम नहीं रहता और कानून बदल जाता है।
करबला में हुसैन ने जैसे हर इस्लामी अहकाम पर अमल करके दिखाया उसी प्रकार इस कानून पर भी अमल किया। 2 मौहर्रम से पानी बंद था, 7 मौहर्रम से जो कुछ पानी था वह समाप्त हो गया। लेकिन 7 मौहर्रम, 8 मौहर्रम, 9 मौहर्रम और दस मौहर्रम तक हुसैन की ओर से किसी ने भी पानी नहीं मांगा। यहां तक कि भूखे प्यासे लड़ते रहे और मारे जाते रहे। लेकिन शाम होने से कुछ पहले 6 माह का अली असगर जिसका मां का दूध भी सूख चुका था और जो ऐसा निढाल हो चुका था कि उसकी आंखे उलट चुकी थीं और प्यास से मौत सामने दिखाई दे रही थी उसको हुसैन हाथों पर उठा कर यजीद की फौजों के सामने लाए और क्हा कि यदि तुम्हारी नजर में मैं गुनाहगार हूं तो यह बच्चा तो मासूम है, तुम इसे तो पानी पिला सकते हो। परन्तु उन जालिमों ने बच्चे को भी तीर मार के शहीद कर दिया।
कुरान का हुक्म है कि जब जान जाने को हो और कोई सूरत न हो तो तुम मुरदा जानवर का मास भी खा सकते हो। पैगम्बर मौहम्मद के जमाने की बात है कि एक औरत मरी हुई मुर्गी काट रही थी। लोग उसे पकड़ कर पैगम्बर के सामने लाए। पैगम्बर ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने क्हा कि मेरे बच्चे भूख से मर रहे हैं। पैगम्बर ने क्हा कि ऐसी हालत में जब कोई रास्ता न हो मुरदार मास खाना जाएज है।
याद रखो तुम्हें जो कुछ दिया गया है उसमें से जितना कुछ भी तुम अपने रब की खुशी के लिए दो वह तुम्हारे हिसाब में लिखा जाएगा। इस्लाम द्वारा इंसाफ और अदालत यह नहीं है कि यदि तुम्हारे पास 5 करोड़ रूप्ये हैं और तुम उसमें से 5000 किसी को दो तो वह बेहतर है इससे कि तुम्हारे पास 5 रूप्ये हैं और तुम उसमें एक रूप्या अपने रब की खुशनूदी के लिए दे दो।
कुरान में सूरह बक़रः कह रहा है कि यह किताब मार्गदर्शन है उन डरने वालों के लिए जो गैब पर ईमान लाते हैं और जो कुछ हम ने उन को अता किया है उसमें से खैरात करते हैं ऐसे लोग अपने रब की ओर से सीधे मार्ग पर हैं और यही सफलता पाने वाले हैं। दूसरी ओर गीता कह रही है कि जो कुछ हमने तुम को अता किया उसमें से यदि कुछ हमारी राह में वापिस नहीं देते तो तुम चोर हो।
क्या गीता और कुरान एक ही बात नहीं कर रहे। हां, एक ही बात कर रहे है क्योंकि गीता और कुरान दोनों एक ही परमात्मा की ओर से हैं। खेद का विषय यह है कि गीता और कुरान के कई ज्ञानियों ने यह तो दिखाने की कोशिश की कि गीता और कुरान की शिक्षा एक समान है परन्तु किसी ने यह नहीं दिखाने की कोशिश की कि जब कुरान और गीता दोनों में ‘हम’ शब्द का प्रयोग हुआ तो यह ‘हम’ एक ही परमात्मा हो सकता है जिसने किसी समय जमीन पर वेद और गीता भेजी और दूसरे समय किसी और स्थान पर कुरान भेजा।
हालत इतनी खराब है कि जब मैं इस्लाम में औरतों के रोल पर लेख लिखता हूं तो कोई व्यक्ति यह बोल उठता है कि तुम इस्लाम हमारे सामने पेश कर रहे हो तो अब मनुस्मृति की भी सुनो। अरे, मैं तो वेदों, उपनिषद और गीता से भी तुम्हें सही मार्ग दिखाने की कोशिश कर रहा हूं। मुसलमान खिलकत के अनेक राज समझ ही नहीं सकते जब तक वेद, उपनिषद और गीता को न पढ़ें क्योंकि परमात्मा ने सब से पहले अपनी किताबों में खिलकत के राज ही बताए हैं जो उसने बाद की किताबों में नहीं बताए। दूसरी ओर तुम अपनी जिन्दगी के लिए बेहतरीन कानून जान ही नहीं सकते यदि तुम मौहम्मद के उपदेश और कुरान को न जानो।
वेद, उपनिषद और मनुस्मृति में यदि तुम औरतों या इंसानों के हुकूक ढूंढोगे तो ढूंढते ही रह जाओगे और कुछ न पाओगे। परन्तु कुरान में यदि तुम खिलकत के राज जानना चाहोगे तो तुम ढूंढते ही रह जाओगे। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों परमात्मा की ओर से हैं और दोनों को मानना और उनसे ज्ञान प्राप्त करना तुम्हारे लिए आवश्यक है। दूसरे शब्दों में यह कि जमीन पर भेजी गई सारी किताबें उस एक किताब का हिस्सा हैं जो आकाश पर है। इसलिए यह तो हो ही नहीं सकता कि दोनों अलग अलग पथ दिखाएं।
उदाहरण यह कि यदि तुम उपनिषद में जिंदगी का कानून जानना चाहोगे तो पाओगे कि छंदोग्या उपनिषद कहता है कि सब से बड़े गुनाह यह हैंः ब्रहमण का वध करना, सोने की चोरी करना, गुरू की पत्नी से रिश्ता बनाना, शराब पीना और जो कोई भी यह चार कुकर्म कर रहा है उससे सम्बंध रखना। क्या साफ नहीं है कि कानून साजी अपने प्रारंभिक दौर में है। परन्तु यदि तुम को यह जानना हो कि ईश्वर ने सृष्टि क्यों बनाई, उसका सृष्टि प्लान क्या है, उसमें और परमात्मा में क्या रिश्ता है, परमात्मा और देवताओं में और देवताओं में और इंसानों में क्या रिश्ता है और तुम कैसे परमात्मा द्वारा पेश किए गए मार्गदर्शकों के पथ पर चल कर अपना उद्धार कर सकते हो तो वेद और उपनिषद से ज्ञान प्राप्त कर लो।
अर्थात यह कि कुरान कह रहा है कि अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थामे रहो और तुम जानना चाहते हो कि अल्लाह की यह रस्सी जिसको पकड़ कर तुम इस दुनिया से जीवन से निकल कर परमात्मा तक पहुंच सकते हो तो उपनिषद और वेद पढ़ो। उपनिषद और वेद के बिना तुम इंसान और ईश्वर का रिश्ता और उसतक पहुंचने का मार्ग नहीं पहचान सकते और कुरान के बिना तुम वह कानून नहीं जान सकते जो परमात्मा ने कलयुग के इंसान के लिए पेश किया है।
जान लो सत्ययुग में तुम्हें गुनाह और सजा बताने की आवश्यकता नहीं थी इसलिए तुम्हें नहीं बताई गई। केवल सत्य मार्ग दिखाया गया और मनुष्य ने उस पर चलना प्रारंभ कर दिया। पर यदि तुम कलयुग में जी रहे हो तो इसका अर्थ यह है कि तुम सत्ययुग में मोक्ष अर्थात निजात पाने लाएक नहीं थे। कलयुग के इंसान के लिए आवश्यक था कि उसे बताया जाए कि क्या करे, कैसे करे, उसे दुआएं और इबादत का तरीका तक बताया गया और जिन्दगी के हर क्षेत्र में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए सब को एक कानून के तहत बांधने की कोशिश की गई। इसलिए क्योंकि तुम्हारी आत्मा यदि आज्ञाकारी रही होती तो सत्ययुग में ही परमात्मा से जा मिली होती।
कुरान का सूरह बकरः कह रहा है कि तुम्हें एक विशेष समय तक धरती पर रहना है और गुजर बसर करना है। इससे निकलने का एक ही मार्ग है और वह ईश्वर द्वारा दिखाए गए मार्गदर्शन को अपना कर आत्मा को उस मार्ग पर आगे ले जाना है जहां निजात अर्थात मोक्ष है।
कुरान का सूरह बकरः कह रहा है कि ‘हमारी ओर से जो मार्गदर्शन तुम्हारे पास पहुंचे और जो लोग उस मार्गदर्शन पर चलेंगे उनके लिए किसी भय और दुख का मौका न होगा और जो उसे स्वीकार करने से इंकार करेंगे और हमारी आयतों को झुटलांएगे तो उनके लिए आग है जहां वह हमेशा रहेंगे।’
क्या तुम समझते हो कि यह मार्गदर्शन केवल अमुक अवतार ने भेजा जिसको तुम मानते हो। तुम अपने को मूर्ख बना रहे हो हालांकि गीता भी कहती है कि जब जब धरती पर असत्य फैल जाता है तब तब मैं अवतार भेजता हूं। और मुसलमान तुम भी अपने को मूर्ख बना रहे हो जब तुम यह तो मानते हो कि अल्लाह ने हर जमाने में और हर धरती पर पैगम्बर भेजे पर तुम उन पैगम्बरों द्वारा भेजे गए पैगाम को ढूंढने और पहचानने की कोशिश नहीं करते। यही कारण हैं कि कुरान के अनेक राज हैं जो आज तक तुम नहीं समझ पाए। तुम समझ ही नहीं सकते जब तक तुम इसकी कुंजी अर्थात पहले आई किताबों को नहीं समझोगे।
कुरान कह रहा है कि असत्य का रंग चढ़ा कर सत्य को संदिग्ध न बनाओ और न जानते बूझते सत्य को छिपाने का प्रयास न करो।
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