Thursday 14 November 2013

आज 10 मौहर्रम है।



आज 10 मौहर्रम है। इस दिन को रोजे आशूर के नाम से जाना जाता है। यह वह दिन है जिस में पैगम्बर मौहम्मद के नाती और पंजेतन - पांच तन - में से पांचवे - हुसैन अर्थात वेदों के अग्नि देव को, उनके भाईयों, बेटों, रिश्तेदारों और साथियों के साथ तीन दिन का भूखा और प्यासा शहीद कर दिया गया था। करीब देढ़ सौ पुरूषों जिनमें बच्चे और बूढ़े शामिल थे उनका सामना कम से कम 30000 और दूसरी रिपोर्ट के अनुसार कई लाख की फौज से था। मरने वालों में मुस्लिम बिन औसजा और हबीब जैसे बूढ़े थे तो 5 वर्ष का हसन का बेटा और छह महीने का हुसैन का बेटा अली असगर भी था। अली असगर वह आखिरी कुरबानी थी जिस के बाद हुसैन तनहा रह गए और आखिरकार हुसैन को भी ऐसी हालत में शहीद किया गया कि वह ईश्वर के आगे नतमस्तक थे। अपने भाई बहनों के समान अली असगर भी कई दिन का भूखा और प्यासा था यहां तक कि उसकी मां का दूध भी सूख गया था कि वह छह महीने के बच्चे को पिला सकती। अली असगर हुसैन की गोद में था कि यजीद की फौज के एक सिपाही ने निशाना लेकर तीर मारा और छह महीने का बच्चा भूखा प्यासा बाप के हाथों पर शहीद हो गया। मारने वाली तमाम फौज अपने को मुसलमान कहती थी लेकिन अपने ही रसूल के नाती और उसके साथियों को कत्ल कर दिया।

10 मौहर्रम को मुसलमान जगह जगह पानी की सबील लगाते हैं ताकि करबला की प्यास को याद कर सकें। लोग सिर पर पानी के बर्तन रखकर जुलूसों में चलते हैं ताकि सब को पानी पिला सकें। दिन भर हुसैन की कुरबानी की याद बाकी रखने के लिए जुलूस निकाले जाते हैं।

हम पहले ही बता चुके हैं कि वेदों और उपनिषद में हुसैन को अग्निदेव कह कर बुलाया गया है जो जब मानव शरीर में पैदा हुआ तो हुसैन कहलाया। केवल अग्निदेव बल्कि दूसरे देवताओं का मानव शरीर में धरती पर आने का वर्णन है। हम ने अनेक उदाहरण दिए हैं परन्तु एक उदाहरण यहां प्रस्तुत है।

प्रोफैसर मैक्स मुल्लर के अनुवाद के अनुसार ब्रहदअराण्यका उपनिषद का मंत्र 4 कहता हैः

The Maruts according to their want assumed again the form of new born babes.
(V.H. Page 141)

जब सबूत के तौर पर इस प्रकार के मंत्र मैं सामने रखता हूं तो कुछ लोग कहते हैं कि अंग्रेजों के अनुवाद पर जाएं क्योंकि यह अनुवाद झूठे हैं। इन लोगों को पता होना चाहिए कि जब इन ईसाईयों ने अनुवाद किए थे तो उन्हें सपने में भी नहीं पता था कि वे अनुवाद किन हस्तियों की ओर इशारा कर रहे हैं।

मंत्र 4 से पहले के मंत्र यदि हम पढ़ते हैं तो पता चलता है कि वे इंद्र और मारूत के सृष्टि के प्रारंभ में पैदा किए जाने की बात कर रहे हैं। उपनिषद साफ शब्दों में कहता है कि यह भी ईश्वर की पूजा करते थे। इससे साबित हो जाता है कि खुदा का वर्णन नहीं हो रहा है बल्कि उनका जो समय आने पर बच्चों के रूप में पैदा होंगे। शब्द श्ंहंपदश् का उपयोग बताता है कि पहली पैदाईश जो नूर की शक्ल में थी के बाद फिर से पैदाईश होगी जो पैदा हुए बच्चे के रूप में होगी।

इस तथ्य को समझ पाने के कारण ऋषि दयानंद सरस्वती ने इसका अनुवाद जैसे किया है वह आपके सामने पेश हैः

“After the heat of the sun, the winds bear the water-carrying form. Before the rain, the winds (monsoons) are full of watery vapours.”   

क्या कुछ भी समझ में आया? क्या यही बताने के लिए ईश्वर ने वेद भेजे थे?

देखिए कुछ अन्य सबूत। साफ शब्दों में इंद्र को नूर के रूप में स्वर्ग के वास से धरती पर बुलाया जा रहा है।

From Yonder, O traveler (Indra) come hither, or from the light of heaven, the singers all yearn for it.

मंत्र 10 में इंद्र से सहायता मांगी जा रही है चाहे वह स्वर्ग में हो या धरती पर हों या आसमानों में हों। मैक्स मुल्लर अनुवाद करते हैः

We ask Indra for help from here, or from heaven, or from above the earth, or from the “Great sky.”

और मंत्र 1.2.5 में साफ शब्दों में कहा जा रहा है कि जिस समय यह देवता धरती पर चमक रहे हों तो उस समय जो इनके लिए आहुती अर्थात कुरबानी पेश करेगा तो वह कुरबानी उसे वहां ले जाएगा जहां इन देवताओं का एक खुदा हैःरू

Whosoever performs works, makes offerings, when these are shining and at the proper time, these in the form of the rays of the sun lead him to that where the one lord of the devas abide.

मंत्र 1.2.6 में कहा जा रहा है कि हमारी आहुती इन्हें बुलाती है कि आओ आओ और आहुती देने वाले को ब्रहमा के स्वर्ग तक ले जाओ। इससे भी साफ हो जाता है कि इन देवताओं के द्वारा ही ब्रहमा के स्वर्ग तक पहुंचा जा सकता है। अर्थात इनके मार्ग पर ही मोक्ष हैरू

The radiant offerings invite him with the words, ‘come, come,’ and carry the sacrificer by the rays of the sun, honouring him and saluting him with pleasing words: ‘This is your holy world of Brahma won through good deeds.’

साफ शब्दों में देवताओं का ब्रहमा से सम्बंध और उनका हमारी मोक्ष प्राप्ति से सम्बंध बताया जा रहा है। यह भी साफ है कि पिछले जमाने के लोगों को देवताओं के रोल की पहचान थी परन्तु समय के चलते लोग इस ज्ञान को भूल गए और वेद केवल औपचारिकता बनकर रह गए।

तथ्य यही है कि उपनिषद और वेद बार बार बता रहे हैं कि इन देवताओं को आसमान से मानव रूप में धरती पर आना था और जब वह आएंगे तब इनका साथ देने का आहवान किया जा रहा है। अग्निदेव की कुरबानी की चर्चाएं भी उस समय आम थीं और उस समय के लोगों ने विभिन्न प्रकार की आहुती इसी कुरबानी की याद को बनाए रखने के लिए दी थी। वेदों को फिर से समझने की कोशिश होगी तो आप जान जाएंगे कि अली असगर तक की कुरबानी का उसमें वर्णन है। जिस प्रकार आज अली असगर के प्यासे मारे जाने की याद बनाए रखने के लिए आज लोग पानी की सबील लगाते हैं और सिर पर पानी के बर्तन रखकर लोगों को पानी पिलाते हैं ठीक उसी तरह उस समय के लोगों ने इस कुरबानी की याद को ताजा रखने के लिए गंगा तक पैदल जा कर वहां से पानी लाने की रस्म बनाई ताकि लोग भूल जाएं कि जब वह समय आएगा कि हुसैन के साथियों पर पानी बंद किया जाएगा तो हम पानी लाकर उनकी प्यास को दूर करेंगे। आज भी असंख्य कावड़ी कई कई दिन की पैदल यात्रा करके गंगा जल लेने जाते हैं और जल को लेकर आते हैं। जैसा मैं पहले बता चुका हूं कि उस समय के ज्ञानी लोगों ने कपड़ों के भीतर जनेउ पहनने की रस्म इसलिए बनाई थी कि आने वाले समय में लोग उस रस्सी को भूल जाएं जो उन्हें ईश्वर तक पहुंचाएगी उसी प्रकार यह रस्म भी बनाई गई ताकि लोग अग्निदेव को भूल जाएं और जब वह मानव शरीर में आएं और असुर उन्हें घेर लें तो ईश्वर की याद दिलों में रखने वाले सनातन धर्मी उनकी सहायता के लिए जाएं।

देखिए कैसे ब्रहद अराण्यका उपनिषद बता रहा है कि यह सारे देवता एक समान हैं। पैगम्बर मौहम्मद भी बार बार कहते रहे कि हम 14 के 14 अहलेबैत एक समान है।

I.5.13: These are all alike, all endless. Verily, he who meditates on them as finite, wins a finite world. But he who meditates on them as infinite wins an infinite world.

जो उन्हें असीमित मानता है वह असीमित दुनिया पाता है जो सीमित मानता है वह सीमित दुनिया पाता है। प्रश्न उठता है कि यह कैसे हो सकता है कि वे सीमित भी हैं और असीमित भी। उत्तर उपनिषदों में कई दूसरे स्थानों पर दिया गया है। नूर के रूप में यह देवता असीमित शक्तियों के मालिक हैं परन्तु जब यह मानव शरीर में धरती पर आएंगे तो सीमित शक्तियां लेकर। आज के मुसलमान इन्हें उसी रूप में जानते हैं जब यह धरती पर जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्हें इनका असीमित रूप जानना है तो उन्हें वेद और उपनिषद पढ़ने होंगे। यह रूप जानकर ही उन्हें असीमित दुनिया मिल सकती है अर्थात स्वर्ग का वह स्थान मिल सकता है जहां से कोई वापसी नहीं है।

पुराने समय के लोग इस प्रतीक्षा में थे कि देवता मानव शरीर में पृथ्वी पर आएं तो वह उनकी सहायता कर सकें। पर जब कोई व्यक्ति मरने लगता था तो वह अपने पुत्रों से कहता था कि मेरे समय में तो वे नहीं आए परन्तु यदि तुम्हारे समय में आएं तो उनके लिए कुरबानी देना अर्थात उनकी सहायता करना। ऐसा करके पुत्र अपने पिता को भी मोक्ष दिला पाएगा।

I.5.17: When a man thinks that he is about to depart, he says to his son, ‘you are Brahman, you are the sacrifice and you are the world.’ The son answers, ‘I am Brahman, I am the sacrifice, I am the world.’ Verily, whatever has been learnt, all that taken as one is knowledge. Verily, whatever sacrifices have been made, all those, taken as one are the world. All this is indeed this much. Being thus the all, let him preserve me from this world, thus. Therefore, they call a son who is instructed ‘world-procuring’ and therefore they instruct him. When one who knows this departs from this world he enters into his son together with his breaths. Whatever has been done by him, son frees him from it all, therefore he is called a son. By his son a father stands firm in this world. Then into him enter those divine immortal breaths.

समय के साथ यह ज्ञान लुप्त हो गया। और कुरबानी की याद दिलाने वाले मंत्र केवल तेल में आहुती देने के लिए प्रयोग होने लग गए।

I.5.21: In whatever family is a man who knows this, they call that family after him. And whoever strives with one who knows this shrivels away and after shriveling dies in the end.

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