Thursday, 28 November 2013

कुछ समय पूर्व तक हम दूसरे धर्मों के पूजनीय व्यक्तियों का आदर किया करते थे

फेसबुक पर जिस प्रकार की पोस्ट देखने को मिल रही हैं उन्हें देख कर मन पीडि़त हो उठता है। कुछ समय पूर्व तक हम दूसरे धर्मों के पूजनीय व्यक्तियों का आदर किया करते थे। आज भी अधिकतर लोग ऐसा कर रहे हैं। परन्तु एक सोची समझी साजिश के तहत दो बड़े धर्मों के बीच दूरियां पैदा करने की कोशिश की जा रही है ताकि अपने धर्म से प्रेम करने वाला बेचारा आम आदमी इनकी चालों में ग्रस्त होकर एक दूसरे का दुश्मन बन जाए। इंसान जुलमत के साए में ऐसा भटक गया है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है भले ही उसका अगला जीवन अंधकारमय हो जाए।

इनमें कई फेसबुक आईडी ऐसी हैं जो हिन्दुओं के नाम से बनी हैं और वह मौहम्मद और उनके धर्म पर ऐसी ऐसी टिप्पणियां करते हैं जिनका सत्य से कोई सम्बंध नहीं। यही नहीं यह लोग कई प्रख्यात किताबों का भी उल्लेख करते हैं जिनको हिन्दु तो दूर मुसलमानों ने भी नहीं पढ़ा। कहते हैं यह हदीस उक्त किताब से है परन्तु यह केवल झूट पर आधारित बातें होती हैं।

दूसरी ओर मुसलमान नाम की आई डी से ऐसी बेहूदी बातें की जाती हैं जो हिन्दु देवताओं और देवियों के प्रति घोर अपमान है। तमाम सीमाएं लांघ कर यह ऐसी घृणित बातें करते हैं कि मैं उनको नकल करने की सोच भी नहीं सकता।

जानना चाहते हो अचानक ऐसा क्यो शुरू हो गया? आज तक जुलमत अर्थात अंधकार की ताकत हर धर्म के मानने वाले को ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग से भटकाती आई है। उसने हिन्दुओं को सत्य मार्ग से दूर किया, फिर दूसरों को और अंत में मुसलमानों को भटका दिया इस हद तक कि मुसलमानों को पता ही नहीं कि अहलेबैत का रोल ईश्वर की इस सृष्टि में क्या है। परन्तु सत्य सामने आया तो धर्मों की दीवारों गिरने लगी और ईश्वर का सीधा रास्ता सामने दिखाई देने लगा। जुलमत के पास कोई चारा नहीं बचा सिवाय इसके कि वह विभिन्न धर्म की पूजनीय हस्तियों पर ही हमला प्रारंभ करा दे। परन्तु उसे क्या पता कि ऐसा होगा इसकी भी भविष्यवाणी उपनिषदों ने पहले से कर दी थी। ब्रहद अराण्यका उपनिषद बताता है कि कैसे हर हमले में देवता प्राजित होते दिखे परन्तु अंत में उनकी जीत हुई।

मेरे पोस्ट “The True Content of the Vedas (Part – V) में मैंने लिखा थाः

Third Brahmana of Brhad-aranyaka Upanishad talks of the knowledge related to the Divine Creation Plan. It says that this knowledge is so important that even the devas used this knowledge to gain victory over demons. Demons who did not chant the Udgitha and tried to replace it with evil, perished in the end. Says Anandagiri: “The fact that this knowledge is the Udgitha can be understood by word ‘proksitam’ meaning sanctified, mantra-samskrtam.” Unfortunately, this knowledge has remained lost to us till now and the perishing of demons that has been talked about has not happened yet but will happen in the near future when the true knowledge about the true path surfaces.

This Brahmana starts with the description of demons and the devas. It clearly states how the fight between men of demonic character and devas has continued in all times. Evil men have tried to corrupt this knowledge again and again, and the devas have tried to fight them, and have not refrained from sacrifices, even if it meant giving their lives.

It is unfortunate that commentators have taken this to mean some prehistoric occasion when devas and demons fought a prolonged battle. Once this meaning was understood, several myths grew around this, thus substantiating the aforementioned view. Truth is that at all times, it is we men, and the evil among us, who have fought with the devas and killed them. This fight between good and bad is still going on in this world. The devas are ceaselessly trying to lead us to God, while the demons representing the Force of Darkness (zulmat) wants us to corrupt that knowledge so that we do not come close to the straight path that leads to God.

See how the fight between devas and demons is described in this Brahmana.

I.III.1
There were two classes of the descendants of Prajapati, the devas and the demons.” “The gods (read devas) said, come, let us overcome the demons at the sacrifice through the Udgitha.

I.III.2:
They said to speech, chant (the Udgitha) for us; ‘so be it’, said speech and chanted for them. Whatever enjoyment there is in speech, it secured for the devas by chanting: that it spoke well was for itself. The demons knew, verily, by this chanter, they (devas) will overcome us. They rushed upon it and pierced it with evil. That evil which consists in speaking what is improper, that is that evil.

It is evident from aforementioned verse that some speech was given to the men; the devil among them realized immediately that they would be defeated because of this speech. Therefore, they corrupted the speech with evil, so that nobody could recognize the true face of the teachings. We will prove later that the Udgitha too stands for the 14 devas. Therefore, it is clear that the demons pierced the speech, so much so that none takes the name of the 14 devas now. Likewise, they did the same to life-breath, as is described in I.III.3.

I.III.3:
Then they said to the life-breath, chant (the Udgitha) for us. ‘So be it’, said the life-breath and chanted for them. Whatever enjoyment there is in the life-breath, it secured for the devas by chanting; that it smelt well was for itself. The demons knew, ‘verily, by this chanter, they will overcome us.’ They rushed upon it and pierced it with evil. That evil which consists in smelling what is improper, that is that evil.

After this, in I.III.4-6, it is described that demons did the same to eye, ear and mind. Every time the Udgitha was chanted, they pierced the knowledge with evil thereby effacing the true teachings of devas from the eye, ear and mind.

I.III.7:
Then they said to the vital breath in the mouth: ‘Chant (the Udgitha) for us.’ ‘So be it,’ said this breath and chanted for them. They (the demons) knew, ‘verily, by this chanter, they will overcome us.’ They rushed upon him and desired to pierce him with evil. But as a clod of earth would be scattered by striking against a rock, even so they were scattered in all directions and perished. Therefore the devas became and the demons were crushed. He who knows this becomes his true self and the enemy who hates him is crushed.

The men of demonic character, who had corrupted the real position of devas and obliterated their names from speech, life breath, eye, ear and mind, failed when they tried to remove their names from the vital breath. Consequently, the demons themselves vanquished.

This shows the lofty position of devas in relation to our life. We know now that the cosmos was created after the creation of the devas. But what we do not know yet is the fact that the cosmos was created out of the noor or light of the devas and they continue to be an important constituent of the entire cosmos, including us. Upanishads that explicitly describe how the 14 devas – the fourteen guardians of the spheres and the rulers of our organs of senses and action – are part of our beings, so much so that when the last of the deva on earth is killed, the entire cosmos will be destroyed. That the world is heading towards dissolution is evident from the fact that 13 of the Ahlulbayt have already been killed and only the last remains, waiting for the suitable time when Vishnu would ask him to appear. That day is not very far away.

तुम्हें पता होना चाहिए मौहम्मद कौन हैं? इंद्र ही वह देव हैं जो जब धरती पर आए तो मौहम्मद कहलाए। क्या तुम जानते हो भोले नाथ कौन हैं? शिव ने जब मानव शरीर में धरती पर जन्म लिया तो अली कहलाए। विष्णू ईश्वर अर्थात अल्लाह की वह पहली खिलकत है जिसे कुरान ने अल्लाह का चेहरा बताया। कृष्ण के शरीर में विष्णू द्वारा बनाया गया नूर अवतरित हुआ। अली के बेटे हुसैन का सिर काटा गया तो शिव के बेटे गणेश अर्थात अग्निदेव का भी सिर काटा गया।

आज हिन्दु मुसलमानों की किताबों से मुसलमानों के धर्म पर हमले कर रहे हैं तो मुसलमान हिन्दुओं की किताबों से हिन्दुओं पर हमले कर रहे हैं। तुम जानना चाहते हो इस प्रकार की भ्रमित बातें किताबों में क्यों आ गईं। इस लिए कि पहले दिन से जुलमत अर्थात अंधकार की ताकत नहीं चाहती थी कि लोग नूर के रास्ते आकर विष्णू तक पहुंचे क्योंकि ऐसा होना ही जुलमत की हार थी। जुलमत ने कोई कसर नहीं छोड़ी कि नूर के पथ से लोगों को भ्रष्ट करे और हकीकत के आगे ऐसे जाल डाल दे कि कोई हकीकत तक न पहुंच सके। जब मौहम्मद और अली के शरीर में नूर अवतरित हुआ तो भी जुलमत ने हर कोशिश की कि ऐसी क्हानियां प्रचलित करा दे कि लोग उनके मार्ग से विचलित हो जाएं। जरा सोचो, जिस प्रकार की कहानियां इंद्र के लिए प्रचलित हैं उसी प्रकार की क्हानियां मौहम्मद के लिए प्रचलित हैं। क्यों? क्योंकि दोनों एक ही हैं। जुलमत की ताकत जो इनके विरूद्ध काम कर रही है वह भी एक ही प्रकार के हमले कर रही है। मौहम्मद के जाने के कुछ समय बाद से तमाम मुस्लिम दुनिया की हर मस्जिद से जुमे के खुतबे में अली को बुरा भला कहा जा रहा था। क्या सोचा जा सकता है कि इस जमाने में किताबों में उल्टी सीधी हदीसें नहीं डाली गई होंगी?

दूसरा कारण यह है कि सच्चाई को समझ न पाने के कारण लोगों ने विभिन्न प्रकार की क्हानियां गढ़ लीं। तुम जानते हो कि पैगम्बर मौहम्मद के देहांत के बाद मुसलमानों ने अली के घर के दरवाजे में आग लगा दी, उनकी पत्नी फातिमा अर्थात देवी के गर्भ में बच्चे को शहीद कर दिया और अली के गले में रस्सी का फंदा डाल कर उन्हें खींचते हुए मस्जिद तक ले गए। गले में फंदा डाल कर खींचने का वर्णन वेद ने पहले ही कर दिया था। परन्तु उस समय कौन समझ सकता था कि वह देवता जिनके अधीन सारी सृष्टि है उनको कोई गले में रस्सी डाल कर खींचेगा। यह किसी को नहीं पता था कि वही देवता जब मानव शरीर में आएंगे तो आम इंसानों जैसा व्यवहार करेंगे। वेद के मंत्र में देवता का नाम, रस्सी, फंदा, दुश्मन, आदि शब्द आए थे। तो वेद के ज्ञानियों ने अनुवाद किया कि देवता रस्सी के फंदे से दुश्मनों को पकड़ते हैं।

हकीकत वेदों में ही छिपी है। परन्तु अहलेबैत की जीवनी को जानते हुए वेदों को फिर से पढ़े बिना तुम हकीकत को पहचान नहीं सकते। कुरान कहता है तुम ने एक चाल चली, हम ने एक चाल चली, अल्लाह से बेहतर चाल कौन चल सकता है।

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