Thursday, 14 November 2013

जरा बताओ कौन सी रौशनी बेहतर है


एक लाईट हाउस से इलाके के तमाम घरों में बिजली पहुंचती थी। बिजली का घर तो लाईट हाउस था लेकिन रस्सी रूपी तारों से बिजली जिस घर में पहुंचती उसी घर को रौशन कर देती और अंधेरे को दूर कर देती। घर रौशन हुए तो कुछ घर के बाशिन्दों ने रौशनी का उपयोग अपनी जिन्दगी को बेहतर बनाने, ज्ञान प्राप्त करने और अपने बाल बच्चों की तरबियत करने के लिए किया। परन्तु कुछ घर ऐसे भी थे जिन्हें अंधेरा ही पसन्द था। वह क्या जानते रौशनी की असलियत और अहमियत। उन्होंने आपस में बहस शुरू कर दी, मेरे घर की रौशनी बेहतर है कि तुम्हारे घर की रौशनी बेहतर है। मेरा घर ज्यादा रौशन है कि तुम्हारा घर ज्यादा रौशन। इस मुद्दे पर ही आपस में लड़ बैठे। जरा बताओ कौन लोग ज्यादा अकलमंद हैं? किस की रौशनी ज्यादा बेहतर है?

ईश्वर अर्थात अल्लाह ने जब एक नूर पैदा किया तो उसका सम्बंध हमारी आत्मा से रखा। दूसरी ओर उसने जुलमत रूपी अंधकार भी पैदा किया जिसका सम्बंध भी हमारी आत्मा से है। वही नूर है जो हमारे शरीर रूपी घर को प्रजव्लित करता है। अपनी आत्मा को जुलमत के हवाले कर दोगे तो अंधकार में ही जीवन व्यतीत हो जाएगा। उन लोगों की भांति जिन्होंने अपने घर प्रजव्लित होने पर उसका उपयोग अपनी जिन्दगी को बेहतर बनाने, ज्ञान प्राप्त करने और अपने बाल बच्चों की तरबियत करने के लिए किया, जिन लोगों ने अपने अन्दर मौजूद नूर रूपी आत्मा को परमात्मा तक ले जाने के लिए किया वह आगे बढ़ गए और मोक्ष अर्थात निजात प्राप्त करके हमेशा की जिन्दगी पा ली। पर यदि तुम आज भी सांसे ले रहे हो इसका अर्थ यह है कि तुम अब तक मोक्ष पाने लाएक नहीं बन पाए। फिर किस बात का घमण्ड है? फिर क्यों तुम अपने को सब से बड़ा ज्ञानी समझते हो। चाहे तुम हो, तुम्हारे बीच घूम रहे ज्ञानी हों या धर्मगुरू हों, उनमें से अधिकतर आज मानव शरीर में हैं तो इसका अर्थ यह है कि वे आज तक निजात अर्थात मोक्ष पाने में असक्षम रहे।

ईश्वर अर्थात अल्लाह ने जब एक लाईट हाउस रूपी नूर पैदा किया तो उसका मकसद हमारी आत्माओं को जुलमत अर्थात अंधकार से निकाल कर नूर के रास्ते पर लाना था। एक नूर से कई नूर प्रजव्लित हुए जो उपनिषद और पैगम्बर मौहम्मद की हदीस के अनुसार उस एक नूर के समान थे जो सब से पहले विष्णू अर्थात कुरान के अनुसार ‘अल्लाह के चेहरे’ ने पैदा किया। पृथ्वी के विभिन्न भागों में जहां भी और जिस समय भी आवश्यकता हुई इस नूर से रौशन हुआ कोई न कोई नूर जो पहले नूर के समान था पाक शरीरों में अवतरित होता रहा। उपनिषद ने इस को ईश्वर की रस्सी कहा और पैगम्बर मौहम्मद ने कहा कि अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़े रहो।

इन सब नूर का सीधे सम्बंध विष्णू अर्थात अल्लाह के चेहरे से था। परन्तु यह मानव शरीर में अवतरित हुए तो आम इंसान इस नूर की असलियत नहीं समझे। गीता में साफ कहा गया था कि जब जब धरती पर अंधकार बढ़ जाता है तब तब मैं अर्थात विष्णू अवतरित होता हूं। जिस शरीर में यह नूर अवतरित हुआ उसकी अहमियत इसलिए अवश्य थी कि वह पाक शरीर था परन्तु तुम ने शरीर से तो मौहब्बत करना शुरू दी परन्तु उस नूर के मकसद को भुला दिया। यह तुम्हारी रजसिक सोच थी जो तुमने ऐसा सोचा। शरीर तो आम इंसानों के समान समाप्त हो जाने वाला था। इन अवतारों का शरीर तो परमात्मा के आफिस समान था। इस आफिस को धरती के विभिन्न इलाकों में खोला गया ताकि उन इलाके के लोगों को सही रास्ते का ज्ञान दिया जाए। परन्तु इनके द्वारा दिए जा रहे ज्ञान को भुला कर तुम इन के शरीरों से ऐसी मौहब्बत करने लगे कि प्रश्न करने लगे कि राम और कृष्ण बड़े कि ईसा या मौहम्मद। ठीक वैसे जैसे लाईट हाउस से घरों में आ रहे उजियाले पर लोग आपस में बहस करने लगे कि मेरे घर की रौशनी बेहतर या तुम्हारे। हिन्दुओं ने चूंकि राम और कृष्ण दोनों को माना तो दोनों को विष्णू का अवतार मान लिया। यह क्यों न सोचा कि विष्णू केवल भारत के लिए नहीं हैं बल्कि पूरे ब्रहमाण्ड में उनकी हुकूमत है।

तुम यदि कृष्ण का सम्बंध परमात्मा से मानते हो तो क्यों तुम ने लाईट हाउस रूपी परमात्मा के कृष्ण के मुख से दिए जा रहे पैगाम को नहीं माना। माना होता तो आज तुम्हारा शरीर इस धरती पर विचरता न दिखाई दे रहा होता और तुम मोक्ष प्राप्त करके जिन्दगी के मकसद को हासिल करने में कामयाब हो गए होते। तुम कृष्ण और राम के नाम पर लड़ने को तो तैयार हो, परन्तु बताओ क्या मर्यादाओं का पालन करने में तुम राम जैसे बने, क्या आत्मा के ज्ञान को प्राप्त करके उसको परमात्मा तक पहुंचाने की कोशिश में तुम निरंतर लगे रहे जैसा कि कृष्ण ने बताया था।

मुसलमानों तुम मानते हो कि मौहम्मद सब से अफजल हैं। फिर तुम क्यों भूल गए कि तुम्हारा रसूल कह रहा था कि अगर अल्लाह से मौहब्बत करते हो तो मेरी पैरवी हो। पैगम्बर मौहम्मद भी निजात की राह बताने हेतु ही आए थे परन्तु तुम ने उनकी पैरवी की होती अर्थात उनके बताए रास्ते पर चले होते तो तुम आज सब से जलील न समझे गए होते। अल्लाह की राह पर आगे बढ़े होते तो तुम्हें याद होता कि जो उस राह पर चला वह मुर्दा नहीं है बल्कि जिन्दा है और अल्लाह की ओर से उसे खाना मिलता है। ठीक ऐसी ही बात उपनिषद ने भी की। परन्तु फिर भी तुम ने उस लाईट हाउस तक पहुंचने की कोशिश नहीं की जो तुम्हारे घरों को रौशन करने का जिम्मेदार था। तुम ने परमात्मा के धरती पर बनाए गए आफिस से ही मौहब्बत शुरू कर दी और उस आफिस द्वारा भेजे जा रहे पैगाम को भुला दिया। वैसे ही जैसे कुछ लोग झगड़ा कर रहे थे कि किस के घर की रौशनी बेहतर है तुम ने उन अवतारों के नाम पर धर्म बना लिए और भूल गए कि उन सब नूर का स्त्रोत परमात्मा था, अल्लाह का चेहरा था।

No comments:

Post a Comment